कूट-कूटकर भरी हुई है। पैसा कमाने का यह लोग कोई भी मौका हाथ से जाने नहीं देते, भले ही चाहें इन्हें कोई कितना बुरा क्यों न ही कहें?
बस्ती। जिला कृषि अधिकारी, लेखाकार, पटल सहायक, प्रक्षेत्र अधीक्षक और संयत्र प्रभारी मिलकर कर सरकारी धन का बंदरबांट कर रहें है। भ्रष्टाचार की गंगा राजकीय कृषि फार्म से षुरु हो कर बीज विद्यायन संयत्र और बीज प्रमाणीकरण तक बह रही, इस भ्रष्टाचार की गंगा को रोकने वाले अधिकारी खुद बहती गंगा में डुबकी लगा रहें हंै।
चूंकि इस पर न तो मीडिया और न प्रषासन की नजर जाती, और न कोई षिकायत ही करता, इस लिए यहां पर बड़े पैमाने पर ‘साइलेंट एकोनामिक क्राइम’ होता, सब कुछ यहां पर फर्जी होता, फर्जी बिल, फर्जी मस्टरोल, फर्जी बीज प्रमाणीकरण और अमानक नमूने को पास करवाने का खेल होता है। अगर कृषि फार्म पर मानक से अधिक पैदावार होता हैं, तो उसे खुले बाजार में अधिक दामों में बेच दिया जाता, और अगर मानक से कम हुआ तो बाजार से कम दर में खरीदकर मानक को पूरा कर दिया जाता। कृषि विभाग का बीज बाजार दर से सौ गुना अधिक में मिलता। कई बार नमूना अमानक पाए जाने के बाद भी प्रक्षेत्र अधीक्षक के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई, वसूली तक नहीं हुई।
नियमानुसार अगर अमानक बीज की नीलामी होती है, तो विभाग को 100 रुपये के स्थान पर मात्र 60 रुपया ही मिलता हैं, सरकार का जो 40 रुपये का नुकसान हुआ, उसकी भरपाई प्रक्षेत्र अधीक्षक से करने का प्राविधान है। हाल में प्रक्षेत्र अधीक्षक रहे कौषल किषोर के विरुद्व आठ लाख की वसूली के आदेष हुए, लेकिन जब रिटायर होने लगे तो तत्कालीन जेडीए ने मोटी रकम लेकर बरी कर दिया, सरकार की जो क्षति हुई, उसकी भी पूर्ति नहीं करवाया, और सारे देयों का भुगतान भी हो गया। ईमानदारी और नियम तो यह कहता है, कि तत्कालीन जेडीए को प्रक्षेत्र अधीक्षक और संयत्र प्रभारी के खिलाफ अनुषासनिक कार्रवाई करने के लिए लिखा पढ़ी करनी चाहिए थी, लेकिन लिखा पढ़ी करने के बजाए सौदा कर लिया।
