‘बाप-पूत’ वोट मांगने ‘जाएंगे’ तो युवा ‘फटे पुराने’ जूते के ‘माला’ से स्वागत ‘करेगें’!
-एक भी नेता बेटे की कसम खाकर नहीं कह सकता कि हमने जो 100 मी. की सड़क निधि से बनवाया, उसमें झटका नहीं लगेगा
-जिस दिन युवाओं ने बेईमान और भ्रष्ट नेताओं से यह पूछना षुुरु कर दिया कि बताइए आप के 100 एकड़ जमीन कहां से आई और कहां से फारचूनर और डिफेंडर आया उस दिन क्रांति आएगी
-समाज के नाम पर वोट की भीख मांग कर रंक से राजा बनने वाले नेताओं को समाज जिस दिन चाहेगी घुटनों के बल ला देगी, हम युवाओं को बताएगें कि यह लोग कैसे अपार संपत्तियों के मालिक बने
-न जाने कितने युवाओं को बेईमान नेताओं को चुनाव लड़ते और जीताते जेल जाना पड़ा, न जाने कितने युवाओं का इन लोगों जीवन बर्बाद कर दिया, और उन्हें पैदल कर सड़क पर ला दिया, भीख तक मंगवा दिया
-हमारा और हमारे बाप-दादाओं का षोषण कर आज यह बेईमान लोग एसी में सो रहें, और कार्यकर्त्ता तिरपाल, झुग्गी झोपड़ी में जीवन व्यतीत कर रहा, खाने तक की व्यवस्था नहीं, जिन युवाओं का सम्मान जिंदा वह बेईमान नेताओं का दरबारी नहीं करेगा, कभी जीहजूरी नहीं करेगा
-सरदार पटेल स्वाभिमान यात्रा का जो रथ को जिन नेताओं ने रोकने का काम किया, उन नेताओं का पर्दाफाष युवा करेगा, रथ रोकने का प्रयास करने वाले बेईमान नेता घर गए खाना खाया और एसी कमरे में सो गए
-बहुजन समाज न कभी कमजोर हुआ और न कभी होगा, इसे कमजोर करने वाले नेताओं ने युवाओं का जीवन अंधकारमय कर दिया, यह लोग अपने बेटे, बेटी और परिवार के लिए जीते, इनका जमीर मर चुका, अगर जिंदा होता तो रथ का स्वागत करते
-जिस समाज के लोगों ने अपने खून से सींचकर इन्हें मंत्री बनाया, सांसद बनाया, विधायक बनाया, प्रमुख बनाया, उसी समाज के लोगों की ओर से खुली चुनौती देंतेे हुए कहा कि इन नेताओं के दरवाजें पर मत जाना भले ही चाहें भूखों मर जाना
-जिन नेताओं का जमीर मर जाता है, वह षाम छह बजे ही अपना मोबाइल बंद कर सोने चला जाता, राजनीति में चोरी बेईमानी नहीं होती, अगर जनता ने मौका दिया है, तो उसके लिए 18 घंटा काम करना पड़ेगा
-गरीबों का खून चूस और षोषण करके जो लंबा-लंबा कोठी और आषियाना बनाते 100 एकड़ जमीन खरीदते, होटल और विधालय बनाते, ऐसे लोग जब दरवाजे पर आए तो सवाल जबाव अवष्य करना और पूछना कि क्यों 40 फीसद कमीषन लेते
-जो लोग इस बार मंत्री बनने का ख्वाब देख रहें हैं, अगर इनका यही हाल रहा तो जनता इन्हें चपरासी बनने के लायक नहीं छोड़ेगी, मंत्री और विधायक बनना तो दूर की बात
बस्ती। पहली बार युवा नेता बृजेष चौधरी ने अपने 32 मिनट के लाइव वीडियो में उन लोगों पर करारा चोट किया जिन लोगों ने सरदार पटेल स्वाभिमान रथ यात्रा को हर्रैया और छावनी में रोकने का प्रयास किया। नाम तो नहीं लिया, मगर, ईषारा पिता और पुत्र पर ही रहा। इन दोनों के बारे में ऐसी टिपणी इससे पहले विरोधियों ने भी नहीं किया होगा। यहां तक कहा गया कि ‘बाप-पूत’ अगर वोट मांगने ‘जाएंगे’ तो युवा ‘फटे पुराने’ जूते के ‘माला’ से स्वागत ‘करेगा’। कहा कि जो लोग इस बार मंत्री बनने का ख्वाब देख रहें हैं, अगर इनका यही हाल रहा तो जनता इन्हें चपरासी बनने के लायक नहीं छोड़ेगी, मंत्री और विधायक बनना तो दूर की बात। जिस दिन युवाओं ने बेईमान और भ्रष्ट नेताओं से यह पूछना षुुरु कर दिया कि बताइए आप ने 100 एकड़ जमीन कहां से खरीदी और कहां से फारचूनर और डिफेंडर आया, उस दिन क्रांति आ जाएगी एक भी नेता ऐसा नहीं जो बेटे की कसम खाकर यह कह सके कि हमने जो 100 मी. की सड़क निधि से बनवाया, उसमें झटका नहीं लगेगा। समाज के नाम पर वोट की भीख मांग कर रंक से राजा बनने वाले नेताओं को समाज जिस दिन चाहेगी उस दिन घुटनों के बल ला देगी। हम युवाओं को बताएगें कि यह लोग कैसे अपार संपत्तियों के मालिक बने। इन लोगों ने न जाने कितने उन युवाओं का जीवन बर्बाद कर दिया, और न जाने कितने युवाओं को सड़क पर लाकर पैदल कर दिया, भीख तक मंगवा दिया, जिन लोगों ने चुनाव लड़ाया और जीताया, ऐसे लोगों को जेल तक जाना पड़ा। कहा कि हमारा और हमारे बाप-दादाओं का षोषण कर आज यह बेईमान लोग एसी में सो रहें, और कार्यकर्त्ता तिरपाल, झुग्गी झोपड़ी में जीवन व्यतीत कर रहा, खाने तक की व्यवस्था नहीं, जिन युवाओं का सम्मान जिंदा हैं, वह बेईमान नेताओं का दरबारी नहीं करेगा, और न कभी जीहजूरी ही करेगा। सरदार पटेल स्वाभिमान यात्रा का रथ जिन नेताओं ने रोकने का काम किया, उन नेताओं का पर्दाफाष युवा करेगा, रथ रोकने का प्रयास करने वाले बेईमान नेता घर गए खाना खाया और एसी कमरे में सो गए। कहा कि बहुजन समाज न कभी कमजोर हुआ और न कभी होगा, इसे कमजोर करने वाले नेताओं ने युवाओं का जीवन अंधकारमय कर दिया, यह लोग अपने बेटे, बेटी और परिवार के लिए जीते, इनका जमीर मर चुका, अगर जिंदा होता तो रथ का स्वागत करते। जिस समाज के लोगों ने अपने खून से सींचकर इन्हें मंत्री बनाया, सांसद बनाया, विधायक बनाया, प्रमुख बनाया, उसी समाज के लोगों की ओर से खुली चुनौती देंतेे हुए कहा कि इन नेताओं के दरवाजें पर मत जाना भले ही चाहें भूखों मर जाना। कहा कि जिन नेताओं का जमीर मर जाता है, वह षाम छह बजे ही अपना मोबाइल बंद कर सोने चले जातें, राजनीति में चोरी बेईमानी नहीं होती, अगर जनता ने मौका दिया है, तो उसके लिए 18 घंटा काम करना पड़ेगा। गरीबों का खून चूसकर और षोषण करके जो लंबा-लंबा कोठी और आषियाना बनाया, 100 एकड़ जमीन खरीदा, होटल और विधालय बनाया, ऐसे लोग जब दरवाजे पर आए तो सवाल जबाव अवष्य करना और पूछना कि क्यों 40 फीसद कमीषन लेते हैं? अससंदीय भाषा का जिस तरह प्रयोग किया गया, कोई भी समाज उसको मान्यता नहीं देता। कहा भी जाता है, कि नेता चाहें पक्ष का हो या फिर विपक्ष का किसी को भी ऐसे षब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए, जिसे सुनकर स्वंय को बुरा लगे। कौन नहीं जानता कि नेता, चोर और बेईमान होते हैं, और कौन नहीं जानता कि नेता कमीषन नहीं लेते है। अगर कमीषन नहीं लेते तो हजारों करोड़ के मालिक न होते, फारचूनर और डिफेंडर से नहीं चलते। यह भी सही है, कि कोई भी नेता ईमानदार बनकर अपार संपत्ति का मालिक नहीं बन सकता। ऐसा भी नहीं कि ईमानदारी से जनता का सेवा और क्षेत्र का विकास नहीं किया जा सकता। देखा जाए तो विकास पुरुष की परिभाषा ही बदल गई। विकास पुरुष उसे नहीं कहा जाता और माना जाता है, जिसने ईमानदारी से काम किया हो, विकास पुरुष वही लोग अपने आपको कहते हैं, जिसने विकास के नाम पर लूटखसोट किया।
‘बीएसए’ की ‘योजना’ बताने वाले ‘किसानों’ और ‘माननीयों’ को मिलेगा ‘ईनाम’!
-बीएसए यानि भूमि संरक्षण अधिकारी कार्यालय जिले का पहला ऐसा कृषि विभाग का अगं हैं, जहां पर किसानों के लिए करोड़ों का बजट बनता, लेकिन किसानों का ही पता नहीं होता कि वह करोड़ों कहां गया
-भले ही सांसद और विधायक हो उन्हें भी विभाग की योजनाओं के बारे जानकारी नहीं रहती, प्रषासन और प्रभारी मंत्री तक इस विभाग की योजनाओं की समीक्षा नहीं करते, क्यों कि बुकलेट में विभाग की योजना का जिक्र ही नहीं होता
-इस विभाग में अधिकतर कार्य कागजों में होता, अधिकारी, जेई और दलाल मिलकर किसानों के नाम पर सालों से मलाई काट रहे, इस विभाग के अधिकारी की पहचान अपने उपलब्धियों के कारण नहीं होती, बल्कि प्रभारी बीडीओ के कारण अधिक होती
-इस विभाग की योजनाओं की जानकारी न तो किसानों और न माननीयों को और न मीडिया को ही बताई जाती, 90 फीसद कार्य कागजों में होता
-इस विभाग की योजनाओं का मानिटरिगं न तो जेडीए और न डीडी करते हैं, बखरा मिलते ही बिल और बाउचर पर हस्ताक्षर कर देते, फुलप्रुफ एकोनामिक क्राइम इस विभाग में होता
बस्ती। जिले के 90 फीसद से अधिक किसानों और नेताओं को यह तक नहीं मालूम होगा कि जिले में बीएसए यानि भूमि संरक्षण अधिकारी नामक कोई विभाग भी होगा जो किसानों के हित में काम करता हैं, और जिसका सालाना बजट करोड़ों में होता है। इसी लिए मीडिया और जनता किसानों और माननीयों से यह सवाल कर रही है, कि और सही जबाव देने वाले को ईनाम की भी घोषणा भी कर रही है। जिले का यह पहला ऐसा विभाग होगा, जिसकीे योजनाओं को बताने वाले को ईनाम दिया जाएगा। भले ही सांसद और विधायक हो, लेकिन उन्हें भी विभाग की योजनाओं के बारे जानकारी नहीं रहती, प्रषासन और प्रभारी मंत्री तक इस विभाग की योजनाओं की समीक्षा नहीं करते, क्यों कि बुकलेट में विभाग की योजना का जिक्र ही नहीं होता। इस विभाग में अधिकतर कार्य कागजों में होता, अधिकारी, जेई और दलाल मिलकर किसानों के नाम पर सालों से मलाई काट रहे, इस विभाग के अधिकारी की पहचान अपने उपलब्धियों के कारण नहीं होती, बल्कि प्रभारी बीडीओ के कारण अधिक होती है। इस विभाग की योजनाओं की जानकारी न तो किसानों और न माननीयों को और न मीडिया को ही बताई जाती, 90 फीसद कार्य कागजों में होता। इस विभाग के योजनाओं की मानिटरिगं न तो जेडीए और न डीडी ही करते हैं, बखरा मिलते ही बिल और बाउचर पर हस्ताक्षर कर देते, फुलप्रुफ एकोनामिक क्राइम इस विभाग में होता। भुगतान करने से पहले डीडी यह तक देखने नहीं जाते कि जिसका वह भुगतान करने जा रहे हैं, वह योजना है, की नहीं। चूंकि सभी का बखरा फिक्स्ड् रहता है, इस लिए सभी आंख बंद कर लेते है।
किसान हित में हवा में काम करने वाले भूमि संरक्षण विभाग की अनुचर शकुंतला वर्मा लंबे समय से गायब हैं। वह कार्यालय नहीं आती हैं इसके बावजूद उन्हें घर बैठे तनख्वाह पहुंच रही है। भूमि संरक्षण अधिकारी (बीएसए) डॉ. राजमंगल चौधरी के राज में किसानों का भले ही अमंगल हो रहा है। लेकिन, उनके मातहत अपने साहब का मंगलगान करते नहीं थकते हैं। डॉ. मंगल साहब किसी भी कीमत पर खुद का मंगल करते नहीं अघाते। इनके तमाम रुप हैं कभी यह बीडीओ बन जाने है तो कभी नेडा जैसे विभागों के प्रमुख पदों पर आसीन हो जाते हैं। नियम विरुद्ध जिला कृषि अधिकारी के पद पर तैनाती को लेकर इन्होंने इतिहास के पन्नों पर अमिट छाप छोड़ी है। बीएसए साहब के बारे में चर्चा है कि सुबह से लेकर शाम तक यह अपने एक मंडलीय अधिकारी की सेवा में लगे रहते हैं। मंडलीय अधिकारी के संरक्षण में इनकी मंडली ने भ्रष्टाचार के नए आयाम गढ़े हैं। खेत तालाब और नमसा जैसी किसानों को समृद्धशाली बनाने वाली योजनाओं का यह अपने दफ्तर में ही गला घोंट देते हैं। इन योजनाओं का लाभ किन किन किसानों को मिला आजतक साहब इसकी सूची नहीं दे पाए। बीएसए कार्यालय में तैनात वरिष्ठ सहायक राजेंद्र प्रसाद गुप्ता साहब के सबसे खास कर्मचारी हैं। राजेंद्र लंबे समय से एक ही कार्यालय में तैनात हैं और योजनाओं में बड़े पैमाने पर हो रहे भ्रष्टाचार के जनक भी माने जाते हैं। दीपावली से पहले बीएसए साहब के कारनामों ने तो एक बार टेजरी के अफसरों को संकट में डाल दिया था। बिना उप निदेशक कृषि के हस्ताक्षर के बीएसए ने टेजरी में पत्रावलियां भेजकर 15 लाख का भुगतान करा लिया। बाद में जब पत्रावलियां पर उप निदेशक कृषि के हस्ताक्षर नहीं मिले तो टेजरी अफसरों ने कृषि विभाग का टेजरी रजिस्टर ही जब्त कर लिया था। करीब 11 दिनों तक रजिस्टर टेजरी में ही पड़ा रहा। काफी मान मनौव्वल के बाद जब उप कृषि निदेशक ने हस्ताक्षर किया तब विभाग को रजिस्टर वापस मिला। देखा जाए तो बीएसए साहब के इससे भी बड़े रहस्य हैं। खैर, बात करते हैं अनुचर शकुंतला वर्मा की, जो अपने ही घर पर आराम फरमा रही हैं। बीएसए साहब ने उनकी जगह पांच हजार रुपए मासिक मानदेय पर एक धर्मराज नामक सख्श को रखा हुआ है। जो दिनभर साहब की आवभगत करता रहता है। शकुंतला वर्मा के कार्यालय न आने की पुष्टि कृषि भवन में लगे सीसीटीवी कैमरे से की जा सकती है।
‘सीएमओ’ ने ‘डॉ. एसबी सिंह’ और ‘डॉ. एके चौधरी’ को ‘नामित’ किया वसूली ‘अधिकारी’!
-वसूली अधिकारी नामित करते हुए कहा कि अगर वसूली का टारगेट पूरा नहीं किया तो दूसरे को नामित कर दिया जाएगा
-हालांकि वसूली अधिकारी का कोई सरकारी पद नहीं, लेकिन मलाईदार पद अवष्य, हर कोई वसूली अधिकारी बनना चाहता है, ताकि सीएमओ का टारगेट और खुद का टारगेट पूरा कर सके
-इन दोनों से कहा गया है, कि आप कोई सरकारी काम नहीं करेगें सिर्फ और सिर्फ वसूली करेगें, अगर कोई देने से इंकार करता है, तो उससे मेरी बात करवा दीजिए
बस्ती। अभी तक आप लोगों ने कृषि विभाग में वसूली गैंग के बारे में सुना था, अब हम आपको सीएमओ कार्यालय में वसूली अधिकारी नामित किए जाने के बारे में बताने जा रहे है। चौकिए मत, सीएमओ साहब ने वसूली और भ्रष्टाचार में पीएचडी करने वाले अपने दो सबसे राजदार और कमाउपूत को बकायदा वसूली अधिकारी नामित किया है। भले ही इसका गजट नहीं हुआ और न यह कोई सरकारी पद ही हैं, लेकिन मलाईदार पद अवष्य है, हर कोई वसूली अधिकारी बनना चाहता है। सीएमओ की निगाह में वसूली अधिकारी का पद सबसे अधिक फायदेमंद वाला है। इसी लिए इन्होने काफी सोच समझकर ‘डॉ. एसबी सिंह’ और ‘डॉ. एके चौधरी’ को ‘नामित’ वसूली ‘अधिकारी’ नामित किया है। जिले में इन दोनों वसूली अधिकारी से अधिक और कोई असरदार नहीं है। इन दोनों को वसूली अधिकारी इस लिए नामित किया गया, क्यों कि इन दोनों ने अपना जमीर और ईमान दोनों बेच दिया है। अगर प्रदेष सरकार वसूली अधिकारी को पुरस्कार देने लगे तो इन दोनों का नाफ टाप पर रहेगा। वसूली अधिकारी नामित करने से पहले सीएमओ की ओर से यह हिदायत दी गई कि अगर वसूली का टारगेट पूरा नहीं किया तो दूसरे को नामित कर दिया जाएगा। साथ ही इन दोनों से यह भी कहा गया है, कि आप दोनों कोई सरकारी काम नहीं करेगें सिर्फ और सिर्फ वसूली करेगें, अगर कोई देने से इंकार करता है, तो उससे मेरी बात करवा दीजिए।
भाकियू के मंडल प्रवक्ता चंद्रेष प्रताप सिंह का कहना है, कि निरंतर मुख्य चिकित्सा अधिकारी को अवगत कराने के बाद और पंजीकरण निरस्त होने के बाद भी मेडीवलर्््ड हास्पिटल पर कार्रवाई नहीं कर रहें है। कार्रवाई के बजाए सीएमओ व नोडल अधिकारी वसूली में लगें है। कहा कि अस्पताल का पंजीकरण धोखाधड़ी करने और अस्पताल रजिस्ट्रेशन में रफीउद्दीन खान की डिग्री चोरी से लगाकर रजिस्ट्रेशन कराए जाने के लिए निरस्त किया जा चुका है और मेडीवर्ल्ड हास्पिटल के प्रबंध एवं रेडक्रास सोसायटी के चेयरमैन डॉ. प्रमोद कुमार चौधरी पर धोखाधड़ी सहित अन्य गंभीर धाराओं में पुरानी बस्ती थाने में एफआईआर दर्ज कर विवेचना चल रहा है विवेचक के रवैया और सीएमओ, नोडल अधिकारी के भ्रष्टाचार से आजीज आकर पीड़ित रफीउद्दीन खान, मुख्यमंत्री जनता दरबार मे जाने की तैयारी में है। सीएमओ एवं नोडल अधिकारी, हॉस्पिटल पर कारवाई करने की जगह राजनीतिक दबाव का हवाला दे रहे हैं। इधर मेडी वर्ल्ड हास्पिटल पंजीकरण निरस्त होने के बाद भी धड़ल्ले से चल रहा है और नित मोबाइल के स्टेटस पर कौन डाक्टर किस तिथि व दिन को उपलब्ध रहेंगे इसका प्रचार प्रसार भी हो रहा है। बताया कि बस्ती के दो उप मुख्य चिकित्सा अधिकारी नोडल अधिकारी डॉ. एसबी सिंह और डॉ. एके चौधरी पूरे जनपद में वसूली अधिकारी के नाम से ख्याति प्राप्त कर चुके हैं, और अब तो दोनों को सीएमओ ने वसूली अधिकारी भी नामित कर दिया है। कहा कि सीएमओ की मिलीभगत और शिथिलता से इन दोनों अधिकारियों के आड़ में स्वास्थ्य महकमे में तमाम अवैध धंधे कार्य फल फूल रहे हैं। देखना यह है, कि कहा कि मुख्यमंत्री का जीरो टॉलरेंस नीति जीतता है या भ्रष्टाचार।
तीन ‘अधिकारियों’ की टीम करेगी ‘वसूली’ अधिकारी ‘डा. एके चौधरी’ की ‘जांच’
-उमेष गोस्वामी की ओर से कमिष्नर को दिए गए षपथ पत्र पर एडी हेल्थ ने एसआईसी जिला अस्पताल डा. खालिद रिजवान, संयुक्त निदेष हेल्थ डा. नीरज कुमार पांडेय, सीएमएस टीबी अस्पताल डा. एके वर्मा की जांच टीम बनाई
-इसके आलावा इसकी मजिस्टेटी जांच भी चल रही हैं, जिसकी नोटिस सीएमओ को गई
बस्ती। सीएमओ, नोडल डा. एसबी सिंह और डा. एके चौधरी के भ्रष्टाचार के खिलाफ निरंतर आवाज उठाने वाले उमेष गोस्वामी की मेहनत धीरे-धीरे रंग लाने लगी है। कहा भी जाता है, कि अगर उमेष गोस्वामी जैसे दो चार और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले सामने आ जाए तो षायद भ्रष्टाचार पर कुछ हद तक लगाम लग सकता है। उमेष गोस्वामी की ओर से कमिष्नर को दिए गए षपथ पत्र पर एडी हेल्थ ने एसआईसी जिला अस्पताल डा. खालिद रिजवान, संयुक्त निदेष हेल्थ डा. नीरज कुमार पांडेय, सीएमएस टीबी अस्पताल डा. एके वर्मा की जांच टीम बनाई है। इसके आलावा इसकी मजिस्टेटी जांच भी चल रही हैं, जिसकी नोटिस सीएमओ को गई।
चूंकि भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हो रही है, इस लिए उमेष सीना तानकर अधिकारियों से कहता है, कि साहब, अगर मैं गलत हूं, या फिर मेरी षिकायत गलत हैं, तो मुझे जेल भेजवा दीजिए, लेकिन अगर षिकायत सही तो हैं, तो क्यों नहीं कार्रवाई हो रही है? इन्होंने कमिष्नर से कहा था, कि डा. एके चौधरी जैसे भ्रष्ट डिप्टी सीएमओ को बचाया जा रहा है, जो खुद प्राइवेट प्रेक्टिस करतें और जो खुद का बिना पंजीयन के प्राइवेट अस्पताल और पैथालाजी सेंटर का संचालन कर रहे है। कहा था, कि अगर कार्रवाई नहीं हुई तो व िमामले को लेकर लोकायुक्त के पास जाएगे। तब फिर आप लोग जबाव देते रहिएगा। डा. एके चौधरी को कहा कि भले ही चाहें प्रभाव का इस्तेमाल करके यह फर्जी रिपोर्ट लगवा लें, लेकिन मैं इनका पीछा नहीं छोडूंगा। हालत यह हो गई है, कि कमिष्नर, डीएम, एडीएम को समझ में ही नहीं आ रहा है, कि वह उमेष गोस्वामी के षिकायत पर किससे जांच कराए। क्यों कि हर जांच में फर्जी रिपोर्ट लगा दी जाती है, ताकि डा. एके चौधरी के खिलाफ कोई कार्रवाई न हो सके। जिस दिन फर्जी रिपोर्ट लगाना बंद हो गया, उस दिन षिकायतें भी बंद हो जाएगी। षिकायत पर षिकायत इस लिए हो रही है, क्यों कि रिपोर्ट से षिकायतकर्त्ता संतुष्ट नहीं होता। जांच रिपोर्ट से स्पष्ट पता चलता है, कि फर्जी रिपोर्ट लगाई गई, दिक्कत यह है, कि फर्जी रिपोर्ट को डीएम साहब स्वीकार भी कर ले रहे हैं, जिस दिन फर्जी रिपोर्ट लगाने वाले अधिकारियों के खिलाफ प्रषासन कार्रवाई करने लगे, उस दिन किसी अधिकारी की फर्जी रिपोर्ट लगाने की हिम्मत नहीं पड़ेगी। रिपोर्ट लगाने वाला अधिकारी भी जानता है, कि उसका कुछ नहीं होने वाला। जिस तरह सीएमओ की ओर से फर्जी रिपोर्ट लगाकर डीएम के पास षिकायतों को निक्षेपित करने के लिए भेजा जाता है, और जिसे स्वीकार कर लिया जाता है, उससे भ्रष्टाचार तो बढ़ ही रहा है, भ्रष्टाचारियों के हौसले भी बढ़ रहे है। डा. एके चौधरी के खिलाफ साक्ष्य और षपथ-पत्र के साथ षिकायतें हो रही है, लेकिन सीएमओ सारे साक्ष्यों और षपथ-पत्र को दरकिनार कर फर्जी रिपोर्ट लगा दे रहे है। सवाल उठ रहा है, कि अगर षिकायत निराधार और गलत पाई जाती है, तो फिर क्यों नहीं उस व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा दर्ज करया जाता है, जिसने षपथ-पत्र दिया? चूंकि सीएमओ और उनकी टीम खुद गलत होती है, इस लिए मुकदमा दर्ज करवाने से घबड़ाती है।



