‘करोड़ों’ के ‘टेंडर’ में ‘एसपी’ कार्यालय पर उठे ‘सवाल?
-ठेकेदार जब निविदा फार्म लेने सुबह 10 बजे पुलिस अधीक्षक कार्यालय गए तो बाबू ने कहा फार्म की बिक्री क्लोज हो गई, जब कि विज्ञापन में सात नवंबर 25 तक फार्म की बिक्री 12 बजे और उसी दिन में 12 तक निविदा डालने का समय बताया गय
-59 आवासीय/अनावासीय भवनों के अनुरक्षण एवं मरम्मत के लिए विभाग ने 29 और 30 अक्टूबर 25 को विज्ञापन के जरिए निविदा आमंत्रित किया, लेकिन फार्म बिकने और निविदा डालने से पहले ही विडों क्लोज कर दिया गया
-नाराज ठेकेदार डीआईजी से भी मिलने गए और उन्हें ज्ञापन देते हुए टेंडर को निरस्त करने और पारदर्षी टेंडर प्रक्रिया अपनाए जाने की अपील की, काम कितने धनराषि का, कितना सुरक्षा राषि जमा करना होगा, का भी जिक्र विज्ञापन में नहीं किया गया
-विभाग को ओपेन टेंडर कराने में आर्थिक लाभ हो सकता, क्यों कि जितना अधिक फार्म बिकेगा, उतना अधिक राजस्व मिलेगा, और बिलो रेट डालने से भी विभाग को राजस्व का भारी लाभ हो सकता
बस्ती। कहा जाता है, कि जो विभाग टेंडर के मामले में जितना टेंडर प्रक्रिया को जितना अधिक सरल और पारदर्षी बनाता हैं, उस विभाग को उतना ही राजस्व का लाभ होता है। जितना अधिक निविदा फार्म बिकेगा, उतना अधिक राजस्व मिलेगा, और जितना अधिक ठेकेदार टेंडर प्रक्रिया में भाग लेग,ें उतना अधिक धन सरकार के खजाने में जाएगा, क्यों कि कंप्टीषन होने की स्थित में बिलो रेट डालने की संभावना 100 फीसदी रहती है। जिसका लाभ विभाग को मिलता है। उदाहरण के तौर पर पीडब्लूडी को लिया जा सकता है, चूंकि यहां पर पूरी पादर्षिता बरती जाती है, ओैर प्रयास होता है, कि अधिक से अधिक निविदा फार्म बिके ताकि अधिक से अधिक ठेकेदार भाग ले सके, और जब अधिक ठेकेदार भाग लेगें तो टेंडर पाने की चाहत में 30 से 35 फीसदी बिलो रेट भी डालेगें। जैसा कि हर्रैया विधानसभा को छोड़कर अन्य विधानसभाओं में हो रहा है। बिलो रेट में ही विभाग को हर साल 100 करोड़ से अधिक का राजस्व प्राप्त होता है। जाहिर सी बात है, कि अगर कोई टेंडर 10 करोड़ का फाइनल होता है, तो विभाग को सिर्फ बिलो रेट में ही साढ़े तीन करोड़ से अधिक का राजस्व लाभ हुआ। इसी लिए सरकार हर टेंडर में कंप्टीषन पैदा करना चाहती है, ताकि उसे बिलो रेट के जरिए राजस्व का लाभ हो सके। वहीं पर कुछ ऐसे विभाग भी है, जो इच्छित ठेकेदारों को ठेका देने का प्रयास करती है, भले ही चाहें इसके लिए राजस्व का नुकसान ही क्यों न हो। ऐसे विभागों के लोग नहीं चाहते कि सरकार को राजस्व का लाभ हो, ऐसे लोग ठेकेदारों को अधिक से अधिक लाभ पहुंचाना चाहते हैं, ताकि उन्हें अधिक से अधिक लाभ हो सके, भले ही उनके थोड़े से लाभ के चलते सरकार को भारी राजस्व का नुकसान ही उठाना ही क्यों न पड़े? टेंडर के मामले में अक्सर सबसे अधिक उंगलियां बाबू पर ही उठती है। इसी तरह के अनेक मामले पीडब्लूडी, आरईडी और सिंचाई विभाग के सामने आ चुकें है, जहां पर टेंडर बाबूओं ने जैसा चाहा वैसा किया, नहीं चाहा तो किसी को निविदा फार्म नहीं मिला, और चाहा तो नियम कानून तोड़कर चहेतें ठेकेदारों को फार्म मिल गया। कुछ इसी तरह का मामला एसपी कार्यालय का सामने आया। 59 आवासीय/अनावासीय भवनों के अनुरक्षण एवं मरम्मत के लिए विभाग ने 29 और 30 अक्टूबर 25 को विज्ञापन के जरिए निविदा आमंत्रित किया, लेकिन निर्धारित फार्म की बिक्री के समय से पहले ही विंडो को क्लोज कर दिया गया। ठेकेदार जब निविदा फार्म लेने सुबह 10 बजे पुलिस अधीक्षक कार्यालय गए तो पटल सहायक अजय पांडेय ने कहा कि फार्म की बिक्री क्लोज हो गई, यही बात पटल सहायक ने मीडिया से भी कहा। जब कि विज्ञापन में सात नवंबर 25 तक फार्म की बिक्री 12 बजे और उसी दिन में 12 बजे तक निविदा डालने का समय बताया गया। कहा जाता है, कि जिस नेचर के काम के लिए टेंडर आंमत्रित किया गया, उसमें ठेकेदार को अधिक लाभ हाने की संभावना रहती है। नाराज ठेकेदार संजय कुमार श्रीवास्तव डीआईजी से भी मिलने गए और उन्हें ज्ञापन देते हुए टेंडर को निरस्त करने और पारदर्षी टेंडर प्रक्रिया अपनाए जाने की अपील की, कहा कि पटल सहायक ने कुछ ठेकेदारों से सांठगांठ करके फार्म देने से मना कर दिया, जिसके चलते टेंडर प्रक्रिया में भाग लेने से वंचित होना पड़ा। काम कितने धनराषि का, कितना सुरक्षा राषि जमा करना होगा, का भी जिक्र विज्ञापन में नहीं किया गया। ठेकेदारों का कहना है, कि ओपेन टेंडर कराने में विभाग को आर्थिक लाभ होता हैं, क्यों कि जितना अधिक फार्म बिकेगा, उतना अधिक राजस्व मिलेगा, और जितना अधिक ठेकेदार टेंडर डालेगें उतना अधिक बिलो रेट होगा, जिसका राजस्व का भारी लाभ विभाग को मिलता है। अगर यही टेंडर आनलाइन होता तो कोई ठेकेदार सवाल नहीं खड़ा करता, और न पटल सहायक को यह कहने की आवष्कता पड़ती, कि क्लोज हो गया।
'डीओ' और 'आइटम' के 'कदम' क्यों हैं 'होने' लगी 'खाद' की 'कालाबाजारी'?
-क्यों इन दोनों के जिले में कदम रखने के बाद ही कृषि विभाग के पटल सहायक और एआर के सचिव का बैंक बैलेंस बढ़ा? क्यों नहीं जेडीए/डीडी जिला कृषि अधिकारी और पटल सहायकों पर लगाम लगा पा रहे हैं,? और क्यों नहीं डीआर अपनी भूमिका निभाया?
-आखिर मजबूत प्रषासन क्यों नहीं जिम्मेदारी निभा रहा? यह सभी किसानों की तरक्की और खुषहाली के रास्ते में बाधक बने हुए, किसानों का कहना है, कि जब तक दोनों भ्रष्ट अधिकारी जिले से बाहर नहीं जाएगें, तब तक खाद की कालाबाजारी और धान/गेहूं घोटाला होता रहेगा
-मुख्यमंत्री और कृषि मंत्री की तो बात ही मत कीजिए, भाषणों में इन्हें किसानों का हितेैषी माना जा रहा, असल में किसान इन दोनों को अपना सबसे बड़ा दुष्मन मान रहा, और कह रहा, जो सीएम और मंत्री भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई न कर सके, किसानों को खाद की कालाबाजारियों से मुक्ति न दिला सके, उन्हें हम लोग न तो मुख्यमंत्री मानते और न कृषि मंत्री
-यह तो तय है, कि 27 में दोनों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा, योगीजी तो किसी तरह जीत जाएगें, लेकिन षाहीजी का जीतना मुस्किल होगा, क्यों कि बस्ती का किसान ही नहीं षाहीजी के क्षेत्र का किसान भी रो रहा
-किसान हितों में लंबी लंबी डींग हांकने वाली कृषि मंत्री अपने घर देवरिया जाते समय बस्ती तो रुकते जरुर हैं, लेकिन क्यों नहीं उन्हें कोई खामी नजर नहीं आती है?
बस्ती। किसान सवाल कर रहा है, कि आखिर क्यों ‘डीओ’ और ‘एआर’ के ‘कदम’ रखते ही जिले में बड़े पैमाने पर ‘खाद’ की ‘कालाबाजारी’ होने लगी? इन दोनों के आने से पहले क्यों नहीं खाद की कालाबाजारी हो रही थी? क्यों इन दोनों के जिले में कदम रखने के बाद ही कृषि विभाग के पटल सहायक और एआर के सचिव का बैंक बैलेंस बढ़ा? क्यों नहीं जेडीए/डीडी जिला कृषि अधिकारी और पटल सहायकों पर लगाम लगा पा रहे हैं,? और क्यों नहीं डीआर अपनी भूमिका निभाया? सबसे बड़ा सवाल, आखिर मजबूत प्रषासन क्यों नहीं जिम्मेदारी निभा रहा? देखा जाए तो यह सभी किसानों की तरक्की और खुषहाली के रास्ते में बाधक बने हुए हैं। किसानों का कहना है, कि जब तक दोनों भ्रष्ट अधिकारी जिले से बाहर नहीं जाएगें, तब तक खाद की कालाबाजारी और धान/गेहूं घोटाला होता रहेगा। रही बात जनप्रतिनिधियों की तो तो अगर यह मजबूत होते तो क्या अधिकारी मनमानी कर पाते? मुख्यमंत्री और कृषि मंत्री की तो बात ही मत कीजिए, भाषणों में इन्हें किसानों का हितेैषी माना जा रहा है। असल में किसान इन दोनों को अपना सबसे बड़ा दुष्मन मान रहा है, और कह रहा है, जो सीएम और मंत्री भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई न कर सके, और किसानों को खाद की कालाबाजारियों से मुक्ति न दिला सके, उन्हें हम लोग न तो मुख्यमंत्री मानते और न कृषि मंत्री। यह तो तय है, कि 27 में दोनों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा, योगीजी तो किसी तरह जीत जाएगें, लेकिन षाहीजी का जीतना मुस्किल होगा, क्यों कि बस्ती का किसान ही नहीं षाही के क्षेत्र का किसान भी रो रहा है।
कृषि विभाग में इतने बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और अनियमितता के बावजूद जिला कृषि अधिकारी (डीएओ) पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है? मंडल मुख्यालय होने के बाद भी कोई अधिकारी डीएओ पर कार्रवाई की जहमत क्यों नहीं उठा रहा है? किसान हितों में लंबी लंबी डींग हांकने वाली सरकार के कृषि मंत्री अपने घर देवरिया जाते समय बस्ती तो रुकते जरुर हैं, लेकिन क्यों नहीं उन्हें कोई खामी नजर नहीं आती है? विभाग की महत्वाकांक्षी योजना किसान सम्मान निधि से भ्रष्टाचार शुरू होकर यंत्रीकरण, लाइसेंस, खाद, बीज, रसायन तक में दलाली खा-खाकर अधिकारी व बाबू थुलथुल हो रहे हैं। इसके बावजूद कोई कार्रवाई न होना सरकार की पारदर्शी मंशा पर पानी फेर रहा है। प्रति बोरा उर्वरक के नाम पर कमीशन खाने वाले जिला कृषि अधिकारी का साम्राज्य फैलता जा रहा है। डीएम और मंडलायुक्त की नाक के नीचे किसान उर्वरक के लिए दर दर की ठोकरें खा रहा है। किसान, कहता हैं कि प्रदेश में बाबा की सरकार आने के बाद खाद की कभी कोई कमी नहीं हुई। लेकिन डीओ आरबी मौर्य और एआर आषीष कुमार श्रीवास्तव के जिले में कदम रखते ही मानों खाद का अकाल पड़ गया हो। ऊंचे दामों में बेची जा रही डीएपी और यूरिया की शिकायत भी करो तो कोई कार्रवाई नहीं होती है। डीएओ व उनके बाबू आरोपी दुकानदार से मोटी मलाई खाकर मामले को रफा-दफा कर देते हैं। उल्टे किसान, दुकानदार के दुश्मन बन जाते हैं। यही दुकानदार बाद में संबंधित किसान को उर्वरक बेचने से मना कर देते हैं। जिले के किसान, अब नाउम्मीदी में जी रहे हैं। वह कहते हैं कि न अधिकारी सुन रहे हैं, और न दुकानदार, सरकार भी चुप्पी साधे बैठी हुई है। नेताओं का क्या कहना, वह भी सिर्फ भाषणों में ही अन्नदाता को याद करते हैं। इस नाउम्मीदी के माहौल में अब किसानों का बस भगवान पर ही भरोसा है।
‘पारिवारिक’ लाभ का ‘अपवित्र’ गठजोड़ ‘बना’, कप्तानगंज का ‘मदरसा’!
-विवाद प्रशासनिक सत्य, राजनीतिक संलिप्तता और जांच की अनिवार्यता
बस्ती। भाजपा नेता एवं जिला सहकारी बैंक के चेयरमैन राजेंद्रनाथ तिवारी का कहना है, कि जिले के कप्तानगंज क्षेत्र में चल रहे मदरसा विवाद ने न केवल स्थानीय प्रशासन की कार्यशैली पर प्रश्नचिह्न लगा दिया। बल्कि यह प्रदेश में धार्मिक संस्थानों की पारदर्शिता पर भी गहरी बहस छेड़ता है। कहते हैं, कि यह मामला एक साधारण विवाद नहीं, बल्कि संस्थागत कब्जा, पारिवारिक नियुक्तियों और प्रशासनिक सांठगांठ का जटिल ताना-बाना है। मामले की जड़ें उस समय से जुड़ी हैं, जब कप्तानगंज के एक मदरसे में एक अध्यापक को पद से हटाकर उसके स्थान पर संबंधित मौलाना के दामादों की नियुक्ति की जाने लगी। अब तक पाँच दामादों की नियुक्ति पूरी हो चुकी है, और छठंे की तैयारी चल रही है। यह प्रवृत्ति शिक्षा के क्षेत्र में धर्म और पारिवारिक लाभ के अपवित्र गठजोड़ का उदाहरण बन गई है। मदरसे के नाम पर जिस संस्था को धार्मिक और शैक्षिक उत्थान का केंद्र होना चाहिए था, वहाँ परिवारवाद और आर्थिक हितों का जाल बुना जा रहा है
प्रशासन की भूमिका और निक्षेप की विडंबना, सबसे चिंताजनक तथ्य यह है कि जब यह मामला उत्तर प्रदेश सरकार के उच्च स्तर तक पहुँचा, तो जिला प्रशासन ने इसे ‘निक्षेपित’ करने का निर्णय ले लिया, अर्थात जांच को स्थगित या शांत कर देने जैसा कदम उठाया। यह निर्णय न केवल शासन को गुमराह करने वाला था, बल्कि स्थानीय स्तर पर प्रशासनिक निष्पक्षता पर भी गंभीर प्रश्न उठाता है। कप्तानगंज का यह प्रसंग दिखाता है कि किस तरह स्थानीय दबाव, राजनीतिक संपर्क और धार्मिक प्रभाव के बीच प्रशासन अपने मूल कर्तव्य, निष्पक्ष, जांच से भटक जाता है। जो अधिकारी और तंत्र जनता के हित में कार्य करने के लिए नियुक्त हैं, अगर वे पक्षपातपूर्ण रुख अपनाएँगें, तो न्याय और व्यवस्था दोनों की जड़ें हिल जाती हैं। सरकारी जमीन पर कब्जा और बंजारा निर्माण, मामले का एक और पहलू सरकारी भूमि पर मदरसे के विस्तार और बंजारों के निर्माण का है। यह कृत्य भूमि राजस्व कानून और वक्फ अधिनियम दोनों के उल्लंघन की ओर संकेत करता है। ऐसे में प्रशासन की मौन स्वीकृति या निष्क्रियता भ्रष्टाचार का अप्रत्यक्ष समर्थन बन जाती है। कहते हैं, कि यदि किसी धर्मस्थल या मदरसे के नाम पर सार्वजनिक जमीन पर अवैध निर्माण होता है, तो यह केवल राजस्व हानि नहीं बल्कि कानूनी और धार्मिक दुरुपयोग का गंभीर उदाहरण है। यह स्थिति प्रदेश में चल रहे “राज्य बनाम संस्था” संतुलन को अस्थिर करती है।
कप्तानगंज का यह प्रकरण इस प्रश्न को फिर उठाता है, कि क्या धार्मिक शिक्षा संस्थान राज्य से अनुदान लेकर भी स्वयं को जवाबदेही से मुक्त समझ सकते हैं? यदि किसी संस्था को सरकारी सहायता प्राप्त होती है, तो उसे सरकारी नैतिकता और पारदर्शिता के मानकों का पालन करना अनिवार्य है। अन्यथा यह शासन और धर्म दोनों के साथ विश्वासघात है। कप्तानगंज का यह मामला केवल एक व्यक्ति या मदरसे तक सीमित नहीं है। यह उस प्रणाली की ओर इशारा करता है जो धर्म के नाम पर आर्थिक हित, नियुक्ति में पारिवारिक लाभ और प्रशासन में राजनीतिक दबाव को सामान्य बना चुकी है। यदि इस प्रकरण में एटीएस या शासन की उच्च स्तरीय जांच होती है, तो यह केवल एक दोषी को दंडित करने की बात नहीं होगी, यह एक संदेश होगा कि कानून और धर्म के बीच कोई समझौता नहीं हो सकता। यही जांच प्रदेश के अन्य जिलों के लिए भी आदर्श बनेगी कि शासन को गुमराह करने और सार्वजनिक संपत्ति पर कब्जा करने की कोई भी कोशिश अंततः उजागर होकर रहेगी। कहते हैं, कि कप्तानगंज प्रकरण उत्तर प्रदेश शासन और प्रशासन के लिए एक परीक्षा है। यदि यह मामला फिर से किसी “निक्षेप” या फाइलों के बोझ तले दफना दिया गया, तो यह न केवल प्रशासनिक नाकामी होगी बल्कि शासन की नैतिक हार भी। यह समय है जब शासन “राजदंड” के साथ-साथ “धर्मदंड” भी सक्रिय करे, जहाँ न्याय केवल कानूनी न रहे, बल्कि नैतिक भी हो। कप्तानगंज जैसे मामलों में यही “नैतिक न्याय” उत्तर प्रदेश की प्रशासनिक आत्मा को पुनर्जीवित कर सकता है। कहते हैं, कि हर जिले में खलीलाबाद और कप्तानगंज जैसे मदरसे अपने षड्यंत्र के बल पर फल फूल रहे हैं और प्रशासनिक लापरवाही का राष्ट्र हित में इससे कोई बड़ा उदाहरण नहीं हो सकता।
‘अयाषबाजों’ पर टिका ‘अधिकांष’ होटलों का ‘कारोबार’!
-अगर होटलों में अयाषी का धंधा न हो तो बिजली का बिल जमा करना मुस्किल हो जाए, बड़े होटलों में अयाष अधिकारी एवं बड़े कारोबारी और छोटे होटलों में अधिकांष प्रेमी और प्रेमिका मौजमस्ती करने जाते
-होटल वाले भी बहुत चालाक हो गए पुलिस से बचने के लिए अलग-अलग कमरा देते, बुक प्रेमी को अगर 104 नंबर तो प्रेमिका को बगल वाले 106 नंबर का कमरा बुक करत, होटल वाले अच्छी तरह जानते हैं, कि दोनों अयाषबाज हैं, फिर भी गांधीजी के लिए अनैतिक कार्य करते
-जो प्रोफेषनल महिलाएं होती है, वह एक दूसरे से परिचित रहती, इस लिए कभी कभी आधार कार्ड बदल देती, सिद्वार्थनगर और संतकबीरनगर के अधिकारी दौरे के नाम पर बस्ती के होटल में मौजमस्ती करते
-षहर में पिछले कई सालों से न तो कोई बड़ा उद्योग लगा और न किसी बड़ी कंपनी का कार्यालय ही खुला, लेकिन हर गली और मोहल्ले में होटल खुल रहे, यह जानते हुए भी कि रेस्टोरेंट का तो स्कोप है, लेकिन ठहरने वाले होटल का कोई स्कोप नहीं, फिर भी व्यापारी होटल खोलने पर पैसा लगा रहा
-पिछले दिनों मालवीय रोड पर एक बड़े होटल का नाम सामने आया, जहां पर मुंबई का एक विधायक प्लेन से बस्ती आता और होटल में एक दो दिन रुक कर मस्ती करता और चला जाता, इस होटल का नाम बलात्कार की षिकार महिला ने जज के सामने लिया, रिकार्ड में भी होटल का नाम दर्ज
-अगर मोटी रकम लेकर पुलिस फाइनल रिपोर्ट न लगाती तो कई बड़े कहे जाने वाले सफेद पोष और होटल मालिक बेनकाब हो जाते, वैसे कोर्ट ने फाइनल रिपोर्ट को पीड़ित महिला के विरोध पर रिजेक्ट कर दिया
-कई होटल वाले तो बड़े डाक्टरों का पर्चा कथित पत्नी के नाम इस लिए बनवा लेते हैं, ताकि पुलिसिया जांच में यह बताया जा सके कि भीड़ अधिक होने के कारण नंबर नहीं आया, मालवीय रोड पर एक मैरिज हाल था, जिसमें पांच-छह कमरे का होटल भी था, मालिक को होटल इस लिए बंद करना पड़ा क्यों कि अधिकांष मौजमस्ती के लिए आते
बस्ती। आप लोग भी यह देख कर हैरान हो रहें होगें, कि आखिर हर मोहल्ले में इतनी बड़ी संख्या में सराय होटल क्यों खुल रहे हैं? आखिर इन होटल का खर्चा कैसे निकलता होगा, और वे कौन लोग हैं, और कहां से यह लोग होटलों में आ रहे हैं? जबकि जिले में पिछले कई सालों से न तो कोई नया उद्योग लगा और न कोई किसी बड़ी कंपनी का कार्यालय ही खुला, तो फिर इतने होटल क्यों खोले जा रहे हैं? आप लोगों को जानकर हैरानी होगी कि 80 फीसद से अधिक ऐसे होटल होगें, जिनमें लोग मौजमस्ती करने के लिए जाते। कहने का मतलब अधिकांष होटल का कारोबार अयाषबाज लोगों पर ही टिका। होटल से जुड़े एक व्यक्ति ने बताया कि अगर होटलों में गलत काम न हो तो होटल का बिजली का बिल तक जमा करना मुस्किल हो जाएगा। बंद हो चुके मालवीय रोड स्थित एक मैरिज हाल के मालिक को होटल इस लिए बंद करना पड़ा, क्यों कि उनके होटल में लोग ठहरने नहीं आते थे, बल्कि चार-पांच घंटा के लिए मौजमस्ती करने आते थे। ऐसे भी होटल मालिक हैं, जिन्हें पैसा नहीं बल्कि इज्जत प्यारी है। सवाल उठ रहा है, कि ऐसे कितने लोग हैं, जो पैसा नहीं इज्जत कमाना चाहते। पिछले दिनों मालवीय रोड पर स्थित एक बड़े होटल का नाम सामने आया, जहां पर मुंबई का एक कथित विधायक प्लेन से बस्ती आता और होटल में एक दो दिन रुक कर मस्ती करता और चला जाता, एफआईआर तक कथित विधायक के खिलाफ के दर्ज है, इस होटल का नाम बलात्कार की षिकार महिला ने जज के सामने लिया, रिकार्ड में भी होटल का नाम दर्ज हैं, अगर मोटी रकम लेकर पुलिस फाइनल रिपोर्ट न लगाती तो कई बड़े कहे जाने वाले सफेद पोष और होटल मालिक बेनकाब हो जाते, वैसे कोर्ट ने फाइनल रिपोर्ट को पीड़ित महिला के विरोध पर रिजेक्ट कर दिया। यह सही है, कि अगर होटलों में अयाषी का धंधा न हो तो बिजली का बिल जमा करना भी मुस्किल हो जाए, बड़े होटलों में अयाष अधिकारी एवं बड़े कारोबारी और छोटे होटलों में अधिकांष प्रेमी और प्रेमिका मौजमस्ती करने जाते है। होटल वाले भी बहुत चालाक हो गए पुलिस से बचने के लिए अब यह लोग एक साथ जोड़े को कमरा नहीं देते, अलग-अलग कमरा देते, अगर प्रेमी को 104 नंबर दिया तो प्रेमिका को बगल वाले 106 नंबर का कमरा बुक करते, होटल वाले अच्छी तरह जानते हैं, कि दोनों अयाषबाज हैं, फिर भी गांधीजी के लिए अनैतिक कार्य करते है। जो प्रोफेषनल महिलाएं होती है, वह एक दूसरे से परिचित रहती, इस लिए कभी कभी आधार कार्ड बदल देती, सिद्वार्थनगर और संतकबीरनगर के अधिकारी दौरे के नाम पर बस्ती के होटल में मौजमस्ती करने आते है। यह जानते हुए भी कि होटल का स्कोप नहीं, फिर भी खोले जा रहे, इतना ही नहीं सारे होटल प्रषासन की मेहरबानी से अनैतिक रुप से संचालित हो रहे हैं, बहुत कम ऐसे होटल होगें जिनका षायद ही सराय एक्ट में पंजीकरण हो। कहने का मतलब कारोबार भी गंदा और संचालन भी नियम विरुद्व। ऐसे-ऐसे सकरी रास्तों में होटल खोल दिया गया, जहां पर अगर आगजनी जैसी घटना हो जाए तो फायर बिग्रेड की गाड़ी तक नहीं जा सकती, फिर भी ऐसे होटलों पर सीएफओ और प्रषासन की नजर न जाने क्यों नहीं पड़ती? कहा जाता है, कि रेस्टोरेंट का तो स्कोप है, लेकिन ठहरने वाले होटल का कोई स्कोप नहीं, फिर भी व्यापारी होटल बनाने में पानी की तरह पैसा बहा रहे है। क्षेत्र की पुलिस ने भी छानबीन करना बंद कर दिया, क्यों कि बिना इनके हिस्सेदारी के कोई भी होटल एक दिन भी नहीं चल सकता। अगर होटलों में अयाषी का कारोबार हो रहा है, तो उसके लिए पूरी तरह क्षेत्र की पुलिस को ही जनता जिम्मेदार मान रही है।
‘सीडीओ’ ‘एडीएम’ और ‘एसडीएम’ नहीं कर ‘सकेगें’ ‘अस्पतालों’ की ‘जांच’!
-नई व्यवस्था के तहत अब कमिष्नर और डीएम को छोड़कर अन्य कोई भी प्रषासनिक और बीडीओ सीएचसी, पीएचसी, जिला अस्पताल की न तो जांच कर सकता, और न गैरहाजिर ही कर सकता
-पीएमएस सवंर्ग की आपत्ति पर स्वास्थ्य मंत्री की ओर से जारी हुआ आदेष, कमिष्नर और डीएम के आलावा एडी, जेडी, एसीएमओ एवं डिप्टी सीएमओ ही चेंकिगं कर सकेगंे
-कहा गया कि निम्न ग्रेड के प्रषासनिक अधिकारियों का उपस्थित का सत्यापन करना और निरीक्षण करना औचित्य नहीं, इस लिए कमिष्नर और डीएम के अतिरिक्त स्वास्थ्य ईकाइयों का निरीक्षण और हाजीरी का सत्यापन केवल पीएमएस सवंर्ग के वरिष्ठ अधिकारी ही करेगें
बस्ती। अगर विभागीय मंत्री का आदेष को अमल में लाया गया तो भविष्य में कमिष्नर और डीएम को छोड़कर अन्य कोई भी प्रषासनिक और बीडीओ सीएचसी, पीएचसी, जिला अस्पताल का न तो जांच कर सकेगें और न गैरहाजिर ही कर सकेगें। पीएमएस सवंर्ग की आपत्ति पर स्वास्थ्य मंत्री की ओर से जारी आदेष में कहा गया है, कि कमिष्नर और डीएम के आलावा एडी, जेडी, एसीएमओ एवं डिप्टी सीएमओ ही चेंकिगं कर सकेगंे। कहा गया कि निम्न ग्रेड के प्रषासनिक अधिकारियों का उपस्थित का सत्यापन करना और निरीक्षण करना औचित्य नहीं, इस लिए कमिष्नर और डीएम के अतिरिक्त स्वास्थ्य ईकाइयों का निरीक्षण और हाजीरी का सत्यापन केवल पीएमएस सवंर्ग के वरिष्ठ अधिकारी ही करेगें।
प्रदेष के चिकित्सा व स्वास्थ्य महानिदेषक ज्ञान प्रकाष की ओर से जारी पत्र में कहा गया है, कि पीएमएस संघ के पदाधिकारियों की प्रदेष के चिकित्सा स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्री के साथ हुई बेैठक में दिए गए निर्देषों का अनुपालन किए जाने के लिए प्रमुख सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य को लिखा गया है। कहा कि पीएमएस संघ की ओर से कहा गया अन्य विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा चिकित्सालयों द्वारा उपस्थित का सत्यापन व निरीक्षण प्रांतीय चिकित्सा व स्वास्थ्य सेवा सवंर्ग के प्रदेष, मंडल एवं जिला स्तरीय वरिष्ठ अधिकारियों से ही कराए जाने की मांग की। कहा गया कि वर्तमान में जिला अस्पताल, सीएचसी एवं पीएचसी के चिकित्सकों की उपस्थित के औचक निरीक्षण के लिए सीडीओ, एडीएम, एसडीएम, तहसीलदार, लेखपाल और कानूनो के द्वारा करा लिया जाता है, निरीक्षण के दौरान अर्मादित आचरण भी किया जाता है। कहा गया कि निदेषक, अपर निदेषक, सीएमओ, मंडलीय संयुक्त निदेषक, एसीएमओ, डिप्टी सीएमओ कार्यरत होते हैं, जिनसे चिकित्सालय प्रषासन, पिरीक्षण, अनुश्रवण एवं मूल्यांकनका कार्य संपादित कराया जाता है। कहा कि किसी भी कनिष्ठ प्रषासनिक अधिकारियों के द्वारा निरीक्षण और हाजरी सत्यापन करना, चिकित्साधिकारियों का मनोबल गिरता। इस लिए कमिष्नर और डीएम के अतिरिक्तअस्पतालों का निरीक्षण एवं हाजरी सत्यापन का कार्य केवल पीएमएस संवर्ग के वरिष्ठ अधिकारियों से ही कराया जाए।
प्रत्येक कार्यकर्ता ‘लोकतंत्र’ की ‘जड़ों’ को ‘मजबूत’ कर ‘रहा’ःविवेकानंद
बस्ती। भारतीय जनता पार्टी द्वारा मतदाता सूची के विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण अभियान के अंतर्गत दो विधानसभा स्तरीय कार्यशालाओं का आयोजन किया गया। रुधौली विधानसभा की कार्यशाला उत्सव मैरिज हॉल, रुधौली में जिलाध्यक्ष विवेकानन्द मिश्र की मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थिति में सम्पन्न हुई, जबकि बस्ती सदर विधानसभा की कार्यशाला भारतीय जनता पार्टी कार्यालय, बस्ती में आयोजित की गई, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में पूर्व जिलाध्यक्ष सुशील सिंह ने कार्यकर्ताओं को मार्गदर्शन प्रदान किया।
कार्यशालाओं का मुख्य उद्देश्य मतदाता सूची के विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण से संबंधित दिशा-निर्देशों एवं संगठनात्मक कार्ययोजना पर चर्चा करना रहा। कार्यक्रम में मतदाता सूची की जांच, अद्यतन प्रक्रिया और सुधार के विभिन्न बिंदुओं पर विस्तार से विचार-विमर्श किया गया। जिलाध्यक्ष विवेकानन्द मिश्र ने कहा कि प्रक्रिया का उद्देश्य फर्जी और डुप्लीकेट वोटरों को हटाना है। यह लोकतंत्र की असली ढाल है, जिसके माध्यम से घुसपैठियों और नकली मतदाताओं को बाहर कर सच्चे नागरिकों के मताधिकार को सुरक्षित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि भाजपा का प्रत्येक कार्यकर्ता लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने का कार्य करता है और यह अभियान उसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। पूर्व जिलाध्यक्ष सुशील सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि मतदाता सूची की शुद्धता ही लोकतंत्र की विश्वसनीयता की आधारशिला है। प्रत्येक बूथ पर कार्यकर्ताओं की सक्रियता और सजगता से ही यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि हर पात्र मतदाता सूची में जुड़ा रहे और अपात्र नाम हटाए जाएं। उन्होंने कहा कि भाजपा का संगठन बूथ स्तर पर जितना मजबूत होगा, उतनी ही प्रभावी भागीदारी जनता तक पहुंचेगी। कार्यशालाओं में बूथ स्तर पर संगठन को सशक्त बनाने, प्रत्येक मतदाता तक पार्टी की योजनाओं को पहुंचाने तथा आगामी अभियानों की तैयारी को लेकर विस्तृत कार्ययोजना तय की गई। बैठक में जिला पंचायत अध्यक्ष संजय चौधरी, दयाराम चौधरी, गोपेश्वर त्रिपाठी, संजय जायसवाल, प्रमोद पाण्डेय, पुष्करादित्य सिंह, अनूप खरे, सतेन्द्र सिंह भोलू, राकेश शर्मा, दिलीप पाण्डेय, अभिषेक कुमार, अंकुर वर्मा, रवि सिंह, मनोज ठाकुर, सुरेन्द्र त्रिपाठी, राजकुमार शुक्ल, सुजीत सोनी, आलोक पाण्डेय, धर्मेन्द्र जायसवाल, कामेंद्र चौहान, सर्वजीत भारती, श्याम नाथ चौधरी, राजकुमार चौरसिया, रामनेवास गिरी, सुधाकर सिंह, सहित मण्डल पदाधिकारी, शक्तिकेन्द्र संयोजक, बूथ अध्यक्ष तथा बीएलए 2 मौजूद रहे।
‘जंतर-मंतर’ पर ‘देषभर’ के ‘षिक्षक’ भरेंगे ‘हुंकार’ःश्रीषुक्ल
बस्ती। उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ जिलाध्यक्ष उदय शंकर शुक्ल की अध्यक्षता में प्रेस क्लब सभागार में शिक्षकों, संघ पदाधिकारियों की बैठक सम्पन्न हुई। बैठक में टेट समस्या के समाधान को लेकर आन्दोलनों की रणनीति और शिक्षकों, छात्रों की ऑन लाइन हाजिरी रोकने पर विचार किया गया। संघ अध्यक्ष उदयशंकर शुक्ल ने कहा कि अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ राष्ट्रीय नेतृत्व के आवाहन पर आगामी 11 दिसम्बर को दिल्ली के जन्तर मन्तर पर विशाल धरना प्रदर्शन का आयोजन किया गया है। इसमें देश भर के शिक्षक हिस्सा लेंगे। कहा कि शिक्षकों, छात्रों की ऑन लाइन हाजिरी के सवालों को लेकर प्रदेश सरकार द्वारा एक कमेटी का गठन किया गया है। कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद निर्णय लिया जायेगा। शिक्षक अभी छात्रों की उपस्थिति न करे।
उन्होेने शिक्षकों का आवाहन किया कि इस आन्दोलन में बस्ती की सर्वाधिक भागीदारी रहे। कहा कि ब्लाक स्तरीय अधिवेशन और पदाधिकरियों के निर्वाचन के बाद 26 दिसम्बर को जनपदीय अधिवेशन होगा। इसके पूर्व 4 दिसम्बर को जनपद स्तरीय बैठक होगी। बैठक में ब्लाक स्तरीय अधिवेशनों के नये तिथियों की घोषणा किया। बताया कि 18 नवम्बर को नगर क्षेत्र, 19 को गौर, 20 को रूधौली, 21 हर्रैया, 22 विक्रमजोत, 26 को बस्ती सदर, 27 बनकटी और 29 नवम्बर को बहादुरपुर और 1 दिसम्बर को साऊंघाट में अधिवेशन होंगे। इसी क्रम में जनपदीय अधिवेशन के लिये 4 दिसम्बर को प्रतिनिधियों की सूची जमा होगी, 5 को अनन्तिम प्रकाशन, 7 तक आपित्त, 8 को आपत्ति निस्तारण, डेलीगेट सूची का अंतिम प्रकाशन 22 को प्रेस क्लब पर नामांकन पत्र दाखिल होगा। 24 को नामांकन जांच, वापसी, 26 को जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय पर अधिवेशन और पदाधिकारियों का चुनाव होगा।
बैठक में संघ के जिला मंत्री राघवेन्द्र प्रताप सिंह, वरिष्ठ उपाध्यक्ष महेश कुमार, उपाध्यक्ष आनन्द दूबे, कोषाध्यक्ष अभय सिंह यादव, जिला प्रवक्ता सूर्य प्रकाश शुक्ल, इन्द्रसेन मिश्र, रजनीश मिश्र, रीता शुक्ला, सरिता शुक्ला आदि ने विचार व्यक्त किया। कहा कि शिक्षकों की समस्याओं का हल एकजुटता से ही निकलेगा। सरकार आज भले ही शिक्षकों की मांगों के प्रति संवेदनशील नहीं है किन्तु उसे शिक्षकों की ताकत के आगे झुकना ही पड़ेगा। प्रेस क्लब में आयोजित बैठक में मुख्य रूप से पटेश्वरी निषाद, ज्ञानदास चौधरी, ओम प्रकाश पाण्डेय, आनन्द, रामपाल चौधरी, सन्तोष शुक्ल, नरेन्द्र पाण्डेय, सतीश शंकर शुक्ल, मुक्तिनाथ वर्मा, रीता शुक्ला, सुरेन्द्र कुमार मिश्र, राजीव पाण्डेय, सुनील कुमार पाण्डेय, दिनेश कुमार वर्मा, वैभव प्रसाद, लालेन्द्र कन्नौजिया, रवीन्द्रनाथ, विनय कुमार के साथ ही अनेक संघ पदाधिकारी और शिक्षक शामिल रहे।

