‘जज’ साहब देखिए, ‘आप’ के ‘कार्यालयों’ में ‘प्राइवेट’ मुंषी ‘भ्रष्टाचार’ कर ‘रहें’

 ‘जज’ साहब देखिए, ‘आप’ के ‘कार्यालयों’ में ‘प्राइवेट’ मुंषी ‘भ्रष्टाचार’ कर ‘रहें’!

-आखिर इन्हें वेतन/मानदेय कौन देता, जब इन्हें कुछ नहीं मिलता तो यह रात दिन क्यों खपते, आखिर इनके परिवार का भरण-पोषण कैसे होता और कौन करता?

-आर्डर षीट, न्यायालयों के गोपनीय अभिलेखों एवं रजिस्टर प्राइवेट लोगों के हस्तलेख में देखे जा रहे, सरकारी बाबू अपना काम खुद नहीं करते बल्कि प्र्राइवेट लोगों के द्वारा ही करवाते, वसूली भी सही लोग करते

-जमानतदारों के कागजों का सत्यपान अभियुक्तगण/परिजनों को देने के नाम पर हजारों लेते हैं, ताकि जल्दी रिहाई हो सके, जबकि नियम यह हैं, कि सत्यपान तहसीलों और थानों को कागज भेजकर कराया जाए, लेकिन पैसा मिलते ही सारे नियम को तोड़ देते, जो पैसा देने की स्थित में नहीं रहते उनका काम नियम से होत

-पैसे वाले को सुबह को दस्ती कागज मिल जाता, और षाम तक रिहाई हो जाती, वहीं गरीबों को रिहा होने में न जाने कितने दिन लग जाता, यह खेल बड़े पैमानें पर और सभी न्यायालयों के कार्यालयों के प्राइवेट मुसियों और बाबूओ की मिली भगत से हो रहा

-मोटरवाहन एक्ट के अपराधों के मामले में भी बड़ा खेल हो रहा, इसमें भी हजारो-हजार की वसूली होती, जमा किए अर्थदंड की पक्की रसीद नहीं दी जाती, जुर्माना अधिक लगता और रसीद कम की दी जाती

-अगर बाबू और बिचौलिया खड़ा होगा, तो मामूली जुर्माना लगता, अगर कहीं वकील साहब खड़े हो गए तो जुर्माने की रकम आठ-दस हजार तक पहुंच जाती, इसी लिए अभियुक्त वकीलों के पास नहीं बल्कि बाबूओं और बिचौलियों के पास जाना पसंद करता

-जानबूझकर आन लाइन पोर्टल पर तारीख कुछ और होती और फाइलों में कुछ और होती, यह खेल इस लिए खेला जाता, ताकि मुवक्किल प्राइवेट मुंषी के पास कार्यालय जाए और सही तारीख जानने के लिए मेहनताना दें, भेंट के नाम पर मुहंमागी रकम ली जाती

बस्ती। जिस न्यायालयों के पारदर्षिता, ईमानदारी और सच्चाई के बारे में लोग जानते और समझते थे, और कहते थे, कि सबकुछ बिक सकता है, लेकिन न्यायालय नहीं, जितना विष्वास जनता को न्यायालय पर रहता आया, और है, उतना विष्वास षायद जनता पीएम पर नहीं करती। लेकिन आज जिस तरह से बड़े-बड़े न्यायाधीष सवालों के कटघरें में खड़े हो रहे हैं, और न्यायालयों और उनके कार्यालयों में धीरे-धीरे भ्रष्टाचार का समावेष हो रहा है, उससे न्यायालयों के प्रति आम लोगों का विष्वास थोड़ा डगमगाया और कम हुआ। अब तो लोग यह तक कहने लगें कि न्याय अब एक समान नहीं रह गया, न्याय पाना अब गरीबों और आर्थिक रुप से कमजोर लोगों के लिए उतना आसान नहीं रहा, जितना सबल और पैसे वालों के लिए। पैसे वालों को तो बड़े से बड़ा वकील मिल जाता, लेकिन कमजोर और गरीबों को सरकारी वकीलों पर ही निर्भर रहना पड़ता। जाहिर सी बात हैं, अधिकांष बड़े वकील सरकारी वकीलों पर भारी पड़ते नजर आतें हैं, इसी लिए अब सामान्य अभियुक्त भी प्राइवेट वकीलों की तरफ भाग रहा है। सरकारी वकीलों के पास गरीब मुवक्किल का अनुपात दिन प्रति दिन कम होता जा रहा, इसका कारण प्राइवेट वकीलों की अपेक्षा केस में रुचि कम लेना माना जा रहा। क्यों कि इन्हें अच्छी तरह मालूम हैं, कि केस हारे या चाहें जीते वेतन/मानदेय में कोई कटौती होगी। अगर इनका मानदेय केस जीतने पर आधारित हो जाए तो रुचि बढ़ सकती है।

अधिकांष अधिवक्तताओं का कहना है, कि अगर न्यायालयों से भेंट समाप्त हो जाए और प्राइवेट मुसियों को न्यायालय से मुक्त करा दिया तो जनता पर 101 फीसद विष्वास न्यायालयों पर बढ़ जाएगा। कहते हैं, कि जिन न्यायालयों के कार्यालयों को प्राइवेट मंुसी चला रहे हो, उन न्यायालयों में भ्रष्टाचार बढ़ेगा ही। अनेक अधिवक्ताओं का कहना और मानना है, कि कमाई के मामले में 100 अधिवक्ता के बराबर एक प्राइवेट मुंसी है। अधिवक्ता को तो दो रुपया फीस मिलता हैं, लेकिन एक मुंसी डेली हजारों रुपया फाइल उलटने-पलटने और सही तारीख बताने के नाम पर कमा लेता है। यह भी कहते हैं, कि जो अधिवक्ता मुवक्किल का मुकदमा लड़ता हैं, उसे न्याय दिलाता है, उस अधिवक्ता को फीस देने के लिए मुवक्किल के पास पैसा नहीं रहता, लेकिन मुंसी और भेंट देने के नाम पर उसके पास पैसा अवष्य रहता है। एक वकील साहब का कहना है, कि मुवक्किल से अगर फीस मांगों तो वह बहाना बनाता है, लेकिन अगर साहब के नाम पर पैसा मांगों को वह आसानी से दे देता। यह सवाल सिर्फ जिले के न्यायालयों के लिए नहीं बल्कि सभी न्यायालयों के लिए उठ रहा कि आखिर प्राइवेट मुंसियों को वेतन/मानदेय कौन देता? और जब इन्हें कुछ नहीं मिलता तो यह रात दिन क्यों खपते? आखिर इनके परिवार का भरण-पोषण कैसे होता और कौन करता?। आर्डर षीट, न्यायालयों के गोपनीय अभिलेखों एवं रजिस्टर, प्राइवेट लोगों के हस्तलेख में देखे जा सकते हैं, सरकारी बाबू अपना काम खुद नहीं करते बल्कि प्र्राइवेट लोगों के द्वारा ही करवाते, वसूली भी यही लोग करते है। जमानतदारों के कागजों का सत्यपान अभियुक्तगण/परिजनों को हाथों-हाथों देने के नाम पर हजारों लेते हैं, ताकि जल्दी रिहाई हो सके, जबकि नियम यह हैं, कि सत्यापन तहसीलों और थानों को कागज भेजकर कराया जाए, लेकिन पैसा मिलते ही सारे नियम को तोड़ देते, जो पैसा देने की स्थित में नहीं रहते उनका काम नियम से करते। पैसे वाले को सुबह दस्ती कागज मिल जाता, और षाम तक रिहाई हो जाती, वहीं गरीबों को रिहा होने में न जाने कितने दिन लग जातें, यह खेल बड़े पैमानें पर और सभी न्यायालयों के कार्यालयों के प्राइवेट मुसियों और बाबूओं की मिली भगत से हो रहा। मोटरवाहन एक्ट के अपराधों के मामले में भी बड़ा खेल हो रहा, इसमें भी हजारों-हजार की वसूली होती, जमा किए अर्थदंड की पक्की रसीद नहीं दी जाती, जुर्माना अधिक लगता और रसीद कम की दी जाती। अगर बाबू और बिचौलिया खड़ा होता, तो मामूली जुर्माना लगता, लेकिन अगर कहीं वकील साहब खड़े हो गए तो जुर्माने की रकम आठ-दस हजार तक पहुंच जाती, इसी लिए अभियुक्त वकीलों के पास नहीं बल्कि बाबूओं और बिचौलियों के पास जाना पसंद करतें। जानबूझकर आन लाइन पोर्टल पर तारीख कुछ और होती और फाइलों में कुछ और होती, यह खेल इस लिए खेला जाता, ताकि मुवक्किल, प्राइवेट मुंषी के पास कार्यालय जाए और सही तारीख जानने के लिए मेहनताना दें, भेंट के नाम पर मुहंमागी रकम ली जाती।



मैडम, ‘हजार’ दो ‘हजार’ पकड़ने ‘वाले’ को ‘जांच’ न ‘दीजिए’

-कहा कि मैडम, जो नोडल डा. एके चौधरी और डा. एसबी सिंह खुले आम जांच, पैथालाजी

अल्टासाउंड और अस्पतालों से पैसा लेकर लाइसेंस देने पर मोहर लगाता हो और आपको बदनाम करता हो, उन्हीं दोनों को सीएमओ क्यों जांच अधिकारी बनाते, पूछा कि मैडम, क्या मेडिकल स्टोर की जांच दोनों नोडल करेगें, अगर यह करेगें तो डीआई किस लिए

-तब जाकर मैडम ने डीआई को जांच करने को लिखा, मामला डा. रमेष चंद्र कन्नौजिया के मेडिकल स्टोर की जांच कराने की मांग पर डीएम को भाकियू भानु गुट के उमेष गोस्वामी ने दोनों नोडल के बारे में कहा

बस्ती। अगर कोई व्यक्ति नवागत डीएम मैडम के पास जाकर यह कहे, कि मैडम हजार दो हजार पकड़ने वाले नोडल डा. एके चौधरी और डा. एसबी सिंह को जांच अधिकारी न बनाइए, तो आप समझ सकते हैं, कि एक डीएम दोनों नोडल के बारे में क्या सोच रही होगी? एक डीएम को सुनकर षर्म आ सकती है, लेकिन सीएमओ और उनके दोनों वसूली अधिकारी को न जाने क्यों नहीं षर्म आ रही है? दूसरा कोई नोडल होता तो वह तो वह चूल्लूभर पानी में में डूब मरता या फिर तबादला करवा अन्यंत्र चला जाता, या फिर वीआरएस के लिए आवेदन कर देता। बार-बार सवाल उठ रहा है, कि क्या डिप्टी सीएमओ रैंक पर बैठे हुए व्यक्ति का कोई मान-सम्मान नहीं? क्या ऐसे लोगों के लिए सबकुछ पैसा है? यह भी सही है, कि जो टीम पैसे के लिए कप्तानगंज एमओआईसी डा. अनूप कुमार चौधरी के मृत बच्चे के साथ सौदा कर सकती है, वह टीम पैसे के लिए कुछ भी कर सकती। आज जो जिलेभर में जो लोग अवैध तरीके से अस्पताल, अल्टासांउड और पैथालोजी का संचालन कर रहे हैं, वे इा लिए कर रहे हैं, क्यों कि इन्हें अच्छी तरह मालूम हैं, कि जब तक दोनों भ्रष्ट नोडल रहेगें किसी का कुछ भी नहीं हो सकता, भले ही चाहे कोई अस्पताल किसी गरीब मरीज की जान ही क्यों न ले ले? इसी लिए बार-बार कहा जा रहा है, कि सीएमओ और उनके दोनों वसूली अघिकारी को जिले से बाहर जाना आवष्यक है। हो सकता है, कि इन तीनों के जाने से न जाने कितने गरीब मरीजों की जान बच जाए। पीड़ित परिवार को समझ में ही नहीं आता कि आखिर वह न्याय के लिए किसके पास जाएं, डीएम के पास जाते हैं, तो सीएमओ को जांच के लिए लिख देते है, और जब डीएम का पत्र सीएमओ के पास जाता है, तो वह उन्हीं दोनों नोडल में से एक को जांच अधिकारी बना देते हैं, जिनके संरक्षण में अवैध करोबार हो रहा है। जाहिर सी बात हैं, यह जांच न्याय दिलाने के लिए नहीं बल्कि वसूली के लिए कराई जा रही है। चूंकि कोई नेता आवाज नहीं उठाता, इस लिए प्रषासन भी कार्रवाई करने से परहेज करता।

कहा कि मैडम, जो नोडल डा. एके चौधरी और डा. एसबी सिंह खुले आम जांच, पैथालाजी

अल्टासाउंड और अस्पतालों से पैसा लेकर लाइसेंस देने पर मोहर लगाता हो और आपको बदनाम करता हो, उन्हीं दोनों को सीएमओ क्यों जांच अधिकारी बनाते, पूछा कि मैडम, क्या मेडिकल स्टोर की जांच दोनों नोडल करेगें, अगर यह करेगें तो डीआई किस लिए है। तब जाकर मैडम ने डीआई को जांच करने को लिखा, मामला डा. रमेष चंद्र कन्नौजिया के मेडिकल स्टोर की जांच कराने पहुंचे भाकियू भानु गुट के उमेष गोस्वामी ने डीएम से दोनों नोडल के बारे में कहा। कहा कि डा. एके चौधरी भ्रष्टाचार का वह सर्प हैं, जिस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। कहा कि सबसे बड़ा वसूलीबाज डा. ऐके चौधरी और डा. एसबी सिंह है। बताया कि जिस मेडिकल स्टोर पर पूजा पांडेय नामक महिला का प्रमाण-पत्र लगा हुआ, वह कभी नहीं बैठती। इन्होंने अपनी डिग्री को कहां कहां लगा रखा हैं, इसकी भी जांच होनी चाहिए।



एमेच्योर खो खो संघ की हुई बैठक

बस्ती। एमेच्योर खो खो संघ,बस्ती की एक आवश्यक बैठक संघ के महामंत्री रमाकांत शुक्ल जी के निवास पर संघ के सचिव संतोष कुमार जायसवाल के नेतृत्व में की गयी। बैठक में गोरखपुर में 21 नवम्बर 2025 से सीनियर खो खो प्रतियोगिता एवं हरदोई में 28 नवम्बर 2025 से जूनियर खो खो प्रतियोगिता में बस्ती जनपद की खो खो टीम भेजनें के बारे में विचार विमर्श किया गया। संघ के अध्यक्ष राम जी पाण्डेय ने कहा कि बस्ती जनपद की सर्वश्रेष्ट महिला एवं पुरुष टीमों का चयन कर प्रतियोगिता में भाग लेनें के लिए भेजी जायेगी।


महामंत्री रमाकांत शुक्ल जी ने कहा कि खिलाड़ियों को प्रतियोगिता में भाग लेनें के लिए कोई कमी नही रखीं जायेगी।संघ के संगठन मंत्री श्री अखिलेश यादव जी एवं उपाध्यक्ष श्री सुरजीत कुमार जी नें प्रतियोगिता में भाग ले रही टीमों के उत्कृष्ट प्रदर्शन पर संघ द्वारा पुरस्कृत करनें की जानकारी दी।बैठक में मुख्य रूप से संघ के मुख्य संरक्षक श्री कैलाश दूबे जी,वरिष्ठ उपाध्यक्ष प्रज्ञा सिंह जी,उपाध्यक्ष संदीप श्रीवास्तव, शम्भू श्रीवास्तव, कोषाध्यक्ष अजय श्रीवास्तव एडवोकेट सहित अनेक लोग उपस्थित रहे।संघ के पदाधिकारियों नें हरदोई में 28 नवम्बर 2025 से हो रही प्रतियोगिता में बालक वर्ग की जनपदीय खो खो टीम से भाग लेनें वाले खिलाड़ियों सैनी, शिवम, इरशाद अली, अंश्क पासवान, युवराज सिंह, हर्ष मौर्या, कृष्णा सिंह, अरपित, अंकित सोनी, दीपांकर, मोहम्मद कैफ, अफजल, मनीष का चयन किया जो कि प्रतियोगिता में भाग लेगी। टीम मैनेजर रौनक राजभर जी एवं टीम कोच आनन्द जी का चयन संघ द्वारा किया गया



‘विकलांग’ प्रमाण पत्र में ‘फंसे’ एनआरएचएम ‘संदीप राय’

बस्ती। एआरएचएम के चर्चित पटल सहायक संदीप राय विकलांग प्रमाण-पत्र के मामले में फंसते नजर आ रहे है। बताते चले की कार्यालय मुख्य चिकित्सा अधिकारी बस्ती मे तैनात पटल सहायक संदीप राय के विकलांगता प्रमाण पत्र पर उनके द्वारा विभिन्न मदों के भुगतान व कार्यों की निविदाओ में को जा रही अनियमिताओ के सम्बन्ध में कांग्रेस पार्टी सांऊघाट के ब्लाक अध्यक्ष संजीव त्रिपाठी जांच की मांग की गई थी, श्रीत्रिपाठी ने प्रमुख सचिव चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण उवप्रवव निदेशक (चिकित्सा उपचार )चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं उवप्रव सहित अन्य अधिकारियो के भेजे पत्र मे यह लिखा था कि कार्यालय मुख्य चिकित्सा अधिकारी बस्ती में तैनात

एनआरएचएम पटल सहायक संदीप राय जिन्होंने अपने विकलांगता प्रमाण पत्र के आधार वर्ष-2023-24 में अपना स्थान्तरण जनपद-बाराबंकी से जनपद बस्ती के मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय में कराया था इनके द्वारा प्राप्त विकलागता प्रमाण पत्र मे यह अंकित है की संदीप राय लोकोमोटर विकलांगता ( चलन संबन्धी अक्षमता जिसमें व्यक्ति को हड्डीयो, जोडो, या मांस पेसियो की समस्या के कारण चलने-फिरने या शरीर के अंगो की गतिविधियों में भारी बाधा आती है) से ग्रसित है। जिसमे विकलागता का प्रतिशत 50ः भी दर्शाया गया है (विकलांगता प्रणाम पत्र सलग्न) बावजूद इसके संदीप से मुख्य चिकित्सा अधिकारी- बस्ती द्वारा एन० आर० एच०एम०पटल सहायक का कार्य लिया जा रहा है जो कि संदेहस्पद है जिससे यह प्रतीत होता है। कि इनके विकलांगता का प्रतिशत काफी कम है और यह 50 फीसद के प्रमाण पत्र का आधार पर तमाम लाभ ले रहे है। साथ ही यह भी अगवत करना है कि संदीप राय ने जब से एन. आर. एच. एम पटल सहायक का कार्य प्रारम्भ किया है तब से इनके पटल पर होने वाली निविदाओ की अनियमितताओ के मामले को लेकर अक्सर समाचार पत्र व सोशल मिडिया मे चर्चाओ मे बने रहते है संदीप राय के द्वारा कार्यालम में सम्बद्ध वाहनों के संचालन मैं बड़े पैमाने पर अनियमितता कर भुगतान किया गया। (समाचार पत्र की छायाप्रति) साथ इनके द्वारा अपनी चहेती फर्मो को लाभ पहुंचाने के लिए निविदाओं में भी अनियमिताए की जाती है। इसकी शिकायत माननीय पूर्व विधायक संजय जयसवाल जी द्वारा की गई थी जिसमें यह भी बताया गया था संदीप राय द्वारा 2023-24 में लगभग साठ लाख का भुगतान बैगर सामान आपूर्ति हुए कर दिया गया था। लेकिन संदीप राय द्वारा अपने ऊंचे रसूख के बल पर सभी शिकायतों को दबवा कर अपनी अनियमितताओ की कार्यशैली से राजकीय कोष की क्षति निरंतर की जा रही है। संदीप राय के विकलांगता का पुनः परीक्षण तथा इनके कार्यकाल मे हुए सभी भुगतान व निविदा की गहनता से जांच कराये जाने की मांग की थी जिसको गंभीरता से लेते हुए अपर निदेशक चिकित्सा उपचार ने सचिव राज्य चिकित्सा परिषद लखनऊ को पत्र प्रेषित कर संजीव त्रिपाठी के पत्र के प्रश्नगत प्रकरण मे नियमानुसार कार्यवाही करते हुए कार्यवाही से महानिदेशालय को अवगत करने को भी कहा


‘डा. प्रमोद चौधरी’ का मामला मानवधिकार ‘पहुंचा’

-षासन-प्रषासन और सीएमओ से निराष पीड़ित रफीउदीन ने एफआईआर और नोटिस सहित 27 पेज के अभिलेखों के साथ न्याय की लगाई गुहार

बस्ती। रेडक्रास सोसायटी के चेयरमैन और मेडीवर्ल्ड हास्पिटल के संचालक डा. प्रमोद कुमार चौधरी के मामले में भले ही टीम के एक-दो सदस्यों पर कार्रवाई कराने के मामले में षिथिलता बरतने का आरोप लग रहा हैं, लेकिन पीड़ित रफीउदीन ने मामले को मानवाधिकार आयोग में ले जाकर चर्चा को विराम देते हुए कहा कि भले ही कोई मेरा साथ दे या न दे लेकिन मामले को अंजाम तक ले जाकर ही दम लूंगा। प्रषासन, सीएमओ और पुलिस विभाग पर आरोप लगाते हुए कहा कि जिस तरह दोषी डा. प्रमोद चौधरी को बचाने का खेल खेल रहे हैं, उसमें वह सफल नहीं होगें। आज नहीं तो कल कार्रवाई तो होनी ही है। कहा कि डा. प्रमोद चौधरी ने उनकी डिग्री लगाकर मेरे और विभाग सहित पूरे समाज के साथ फ्राड किया है, और इस फ्राड में सीएमओ और नोडल डा. एसबी सिंह पूरी तरह षामिल है। यह लोग मरीजों के जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं, जिस अस्पताल को सील और नोडल की ओर से एफआईआर दर्ज होना चाहिए, उसे खुला छोड़ दिया गया। कहते हैं, कि डा. प्रमोद चौधरी ने पैसे से सबको खरीद लिया, माननीयगण भी ऐसे डाक्टर का साथ दे रहे हैं, जो सबका दुष्मन हो। सवाल करते हैं, कि जब सीएमओ ने पंजीकरण निरस्त कर दिया तो क्यों नहीं अस्पताल को सील और एफआईआर दर्ज किया? जब कि उन्होंने अपने पत्र में विधिक कार्रवाई करने को लिखा भी है। अन्याय के खिलाफ जिस तरह टीम ने अपनी मजबूती दिखाई, वह अब नहीं दिखाई दे रही है, ऐसा टीम के कई सदस्यों का मानना और कहना है। डीएम से मिलने के बाद टीम का सक्रिय न होना चर्चा का विषय बना हुआ। टीम के सदस्यों को यह नहीं भूलना चाहिए, इस लड़ाई में कई लोगों का भविष्य दांव पर लगा हुआ है। कहा भी जा रहा है, कि अगर टीम किसी कारण विखर गई तो कई लोगों की इज्जत चली जाएगी। जिस तरह टीम ने अपनी मजबूती और एकता दिखाई, उसे आगे भी दिखाने की आवष्यकता है। इसी में सबका मान और सम्मान छिपा। क्यों कि यह लड़ाई किसी एक व्यक्ति के लाभ और हानि से नहीं जुड़ा, बल्कि कईयों का मान और सम्मान जुड़ा है। टीम ही नहीं पूरा जिला चाहता है, कि रेडक्रास सोसायटी की नई कार्यकारिणी का गठन हो और हास्पिटल का संचालन पूरी तरह बंद हो।


‘पत्रकार’ का ‘समाज’ से ‘सीधा’ संपर्क ‘होता’ःडीआईजी


-मीडिया दस्तक संस्थान के निरन्तर प्रगति कीःराजेंद्रनाथ तिवारी

-धारा के विपरीत चलना बहुत कम लोगों के बूते की बात होतीःअवधेष त्रिपाठी

-मीडिया जिसे चाहे उसे फर्श से अर्श और अर्श से फर्श पर पहुंचा सकतीःडा.श्रेया

बस्ती। मीडिया दस्तक न्यूज़ नेटवर्क प्रा.लि. का 11 वां स्थापना दिवस मालवीय रोड स्थित बादशाह मैरेज हाल के सभागार में धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर 44 पेज की मल्टीकलर मैग्जीन ‘‘स्मारिका 2025’’ का विमोचन भी किया गया।

मुख्य अतिथि बस्ती परिक्षेत्र के डीआईजी संजीव त्यागी ने कहा पत्रकार का समाज से सीधा संपर्क होता है। उसके द्वारा लिखे समाचारों का समाज पर सीधा असर भी पड़ता है। ऐसे में क्या लिखें, क्या न लिखें यह सोचना जरूरी है। उन्होने आगे कहा कि पत्रकारों को न्यायप्रिय होना चाहिये, यही स्वतंत्र पत्रकारिता की रीढ़ है। विशिष्ट अतिथि डा. श्रेया संगीत संस्थान की डायरेक्टर डा. श्रेया ने कहा कि मीडिया जिसे चाहे उसे फर्श से अर्श और अर्श से फर्श पर पहुंचा सकती है। मीडिया बन्धुओं को चाहिये कि वे अच्छाई को प्रोमोट और बुराइयों का डिस्करेज करें। उन्होने मीडिया दस्तक परिवार को पत्रकारिता के आदर्शों पर कायम रहने केे लिये पत्रकारों का उत्साहवर्धन किया। विशिष्ट अतिथि सामाजिक कार्यकर्ता देवेश मणि त्रिपाठी ने कहा मीडिया दस्तक न्यूज जिन आदर्शों पर आगे बढ़ रहा है उन आदर्शों को मीडिया संस्थान छोड़ चुके हैं। मीडिया दस्तक न्यूज की ब्राण्ड अम्बेसडर निहारिका ने कहा कि मीडिया दस्तक को एक दिन मंजिल मिलेगी, इसके लिये मिलजुलकर प्रयास किये जायेंगे और इसे राष्ट्रव्यापी बनाने के लिये कोई कोर कसर नही छोड़ेंगे। विशिष्ट अतिथि एवं पै्रक्सिस विद्यापीठ के प्रबंधक सुशान्त पाण्डेय ने कहा कि मीडिया भीड़ का हिस्सा नही है।


इसकी कार्यशैली से पता चलता है कि यह लीक से हटकर कार्य करता है और अपने उच्च आदर्शों पर कायम रहता है। वरिष्ठ पत्रकार अवधेश कुमार त्रिपाठी ने कहा धारा के विपरीत चलना बहुत कम लोगों के बूते की बात होती है और मीडिया दस्तक लगातार धारा के विपरीत चलकर अपनीे देशव्यापाी पहचान अर्जित कर रहा है, बस्ती जनपदवासियों के लिये यह गर्व की बात है। अध्यक्षता कर रहे राजेन्द्रनाथ तिवारी ने मीडिया दस्तक संस्थान के निरन्तर प्रगति की कामना की और कहा विपरीत परिस्थितियों और कम संसाधनों मे मीडिया दस्तक आज जिस मुकाम पर खड़ा है वह दूसरों के लिये प्रेरणास्रोत है। स्थापना दिवस समारोह का संचालन भजन गायक अविनाश श्रीवास्तव ने किया। सिद्धार्थनगर से आये अमरमणि द्वारा प्रस्तुत गीत की दर्शकों ने खूब सराहना की। इस अवसर पर अतिथियों को मीडिया दस्तक परिवार की ओर से अंगवस्त्र, सम्मान पत्र व प्रतीक चिन्हे देकर सम्मानित किया गया। अवधेश सिंह, पंकज भइया, रंजीत श्रीवास्तव, जगदीश शुक्ल, अनूप खरे, सतेन्द्र सिंह भोलू, राजेश चित्रगुप्त मनीष श्रीवास्तव, अफजल हुसेन, राजेन्द्र सिंह राही आदि ने सम्बोधित किया।

अंकुर वर्मा, राधेश्याम चौधरी, अजय गोपाल श्रीवास्तव, अखिलेश यादव, रामब्रिज प्रजापति, इंजी. श्यामलाल चौधरी, हिना खातून, अतीउल्लाह सिद्धीकी, कमाल रब्बानी, मिर्जा जमीर अहमद, शम्भूनाथ गुप्ता, अजय श्रीवास्तव, महेन्द्र तिवारी, दिनेश कुमार पाण्डेय, संदीप गोयल, सतीश श्रीवास्तव, परमानंद मिश्र, मो. रफीक खान, सुरेन्द्र मिश्रा, बीपी लहरी, मुन्ना जायसवाल, दिलीप श्रीवास्तव सहित सैकड़ों लोग मौजूद रहे। विवेक मिश्र, सत्यदेव शुक्ल, जितेन्द्र यादव, अवधेश मिश्र, रत्नेन्द्र पाण्डेय ‘पंकज’, संतोष श्रीवास्तव, डा. अजय श्रीवास्तव, अनूप बरनवाल, संतोष सिंह, संतोष सिंह जिलाध्यक्ष नेशनल प्रेस क्लब, डा. अफजल हुसेन अफजल, श्रीमती अर्चना श्रीवास्तव, डा. अभिजात कुमार सर्जन नवयुग मेडिकल सेन्टर-बस्ती, डा. वी.के. वर्मा आयुष चिकित्साधिकारी, डा. प्रमोद कुमार चौधरी न्यूरो चिकित्सक को अतिथियों ने अंगवस्त्र, प्रतीक चिन्ह व सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया गया।


 


 

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