फिर ‘डा. प्रमोद चौधरी’ एंड ‘टीम’ ने दी ‘विरोधियों’ को ‘पटकनी’!
-यह टीम रेडक्रास सोसायटी के चुनाव में भी विरोधियों पर भारी पड़ी थी, और आज की लड़ाई में भी भारी पड़ी, टीम ने दिखा दिया कि कैसे विरोधियों को पटकनी दी जाती और कैसे हारी हुई बाजी को जीता जाता
-जिस टीम में डा. अनिल कुमार श्रीवास्तव जैसा कुषल रणनीतिकार और जिस टीम का साथ बेईमान सीएमओ, नोडल डा. एसबी सिंह और सांसद एवं विधायक दें, उस टीम को कौन हरा सकता
-जिस टीम का मददगार विरोधी गुट के लोग हो, उसे हारने से कौन बचा सकता, जिस विरोधी टीम के सदस्य अपने आप को सूरमा समझते थे, और विरोधियों को मिटटी में मिलाने का दंभ भरते थे, आज उन्हीं को रेडक्रास सोसायटी के चेयरमैन डा. प्रमोद चौधरी ने धन और राजनीति के बल पर उनकी असलियत बताते हुए धूल चटा दिया
-जिन्होंने राजनीति के फायदे और दबाव में आकर लड़ाई को षिथिल करने और माफी देने का काम किया, उन्होंने बहुत बड़ी भूल की, अगर यही काम टीम को विष्वास में लेकर किया गया होता तो षायद इज्जत पानी बच जाती
-जिस टीम के साथ दस में से मात्र तीन ही कार्यकारिणी के सदस्य हों, अगर वह टीम जीत जाती है, तो इसे डा. प्रमोद चौधरी एंड टीम की जीत और सात सदस्यों वाली टीम की बुरी हार मानी जाएगी
-अगर इस लड़ाई में किसी का मान-सम्मान गया तो वह विरोंधियों का ही गया, क्यों कि डा. प्रमोद चौधरी एंड टीम ने दिखा दिया, कि वह विरोधियों की तरह हवा में तीर नहीं चलाते, इन्होंने एफआईआर के बाद भी अपने अस्पताल मेडीवर्ल्ड का पंजीकरण करवाकर बता दिया कि पैसे में कितनी ताकत होती
-रही बात अविष्वास प्रस्ताव की तो उसे विरोधी भूल ही जाए तो बेहतर होगा, डा. प्रमोद चौधरी एंड टीम के लोगों का कहना है, कि भले ही विरोधी चिल्लाते रहें, लेकिन डाक्टर साहब अपने तीन साल के कार्यकाल को हर हाल में पूरा करेंगंे
-हालांकि विरोधी का खेमा कमजोर नहीं हुआ, लेकिन अपने साथी के बेवफाई से अवष्य निराष हुआ, टीम में दरार पड़ने से भी इंकार नहीं किया जा सकता, अब विरोधी टीम के अन्य सदस्यों को अपनी साख बचाने के लिए मिलकर लड़ाई लड़नी होगी
बस्ती। जो लोग रेडक्रास सोसायटी के चेयरमैन और मेडीवर्ल्ड हास्पिटल के प्रबंधक डा. प्रमोद कुमार चौधरी को लड़ाई जीतने में मददगार बने उन्हें सामाजिक और राजनीतिक रुप से नुकसान उठाना पड़ सकता है।
इसके बाद अब कोई किसी पर विष्वास नहीं करेगा और न सामूहिक लड़ाई ही लड़ेगा। जिस तरह विरोधी गुट के लोग अन्याय के खिलाफ एकजुट होकर लड़ाई लड़ रहे थे, उसकी प्रषंसा जिले भर के लोग कर रहे थे, क्यों कि हर कोई चाहता था, कि डा. प्रमोद कुमार चौधरी के खिलाफ फ्राड के आरोप में कार्रवाई हो उनका अस्पताल हमेषा के लिए बंद हो, और इन्हें चेयरमैन की कुर्सी से उतारा जाए। टीम पर और उसके सदस्यों पर जिले की जनता का बहुत भरोसा था, लेकिन टीम के एक-दो सदस्यों ने इतने लोगों के भरोसे को चकनाचूर कर दिया। कहा भी जाता है, कि अगर टीम कोई लड़ती है, तो टीम के सदस्यों को विष्वास में लेकर ही किसी को कोई निर्णय लेना चाहिए, ऐसा करने से टीम में एका बनी रहती है, और विष्वास कायम रहता है। टीम के एक-दो सदस्यों को कोई भी निर्णय लेने का अधिकार नहीं, भले ही चाहें कितना ही दबाव क्यों न हों, ऐसा भी नहीं कि टीम का हर सदस्य यहां तक कि मीडिया भी दबाव नहीं झेल रहा था।
कहा भी जाता है, कि जिस टीम में डा. अनिल कुमार श्रीवास्तव जैसा कुषल रणनीतिकार हो और जिस टीम में बेईमान सीएमओ और नोडल डा. एसबी सिंह हो, और जिस टीम की मदद सांसद एवं विधायक और पूर्व विधायक सहित अन्य चौधरी नेता कर रहे हो, दें, उस टीम को कौन हरा सकता? टीम को तो जीतना ही था। यह टीम रेडक्रास सोसायटी के चुनाव में भी विरोधियों पर भारी पड़ी थी, और आज की लड़ाई में भी भारी पड़ी, टीम ने दिखा दिया कि कैसे विरोधियों को पटकनी दी जाती और कैसे हारी हुई बाजी को जीता जाता है? और सबसे बड़ी बात जिस टीम का मददगार विरोधी गुट के लोग हो, उसे हारने से कौन बचा सकता? जिस विरोधी टीम के सदस्य अपने आप को सूरमा समझते थे, और विरोधियों को मिटटी में मिलाने का दंभ भरते थे, आज उन्हीं को रेडक्रास सोसायटी के चेयरमैन डा. प्रमोद चौधरी ने धन और राजनीति के बल पर उनकी असलियत बताते हुए धूल चटा दिया। जिन्होंने राजनीति के फायदे और दबाव में आकर लड़ाई को षिथिल करने और माफी देने जैसा काम किया, उन्होंने बहुत बड़ी भूल की, अगर यही काम टीम को विष्वास में लेकर किया गया होता तो कम से कम इज्जत तो नहीं जाती। जिस टीम के साथ दस में से मात्र तीन ही कार्यकारिणी के सदस्य हों, अगर वह टीम जीत जाती है, तो इसे डा. प्रमोद चौधरी एंड टीम की जीत और सात सदस्यों वाली टीम की बुरी हार मानी जाएगी। अगर इस लड़ाई में किसी का मान-सम्मान गया तो वह विरोंधियों का ही गया, क्यों कि डा. प्रमोद चौधरी एंड टीम ने दिखा दिया, कि वह विरोधियों की तरह हवा में तीर नहीं चलाते, इन्होंने एफआईआर के बाद भी अपने अस्पताल मेडीवर्ल्ड का पंजीकरण करवाकर बता दिया कि पैसे में कितनी ताकत होती है। रही बात अविष्वास प्रस्ताव की तो उसे विरोधी भूल ही जाए तो बेहतर होगा। डा. प्रमोद चौधरी एंड टीम के लोगों का कहना और मानना है, कि भले ही विरोधी चिल्लाते रहें, लेकिन डाक्टर साहब अपने तीन साल के कार्यकाल को हर हाल में पूरा करेंगंे। हालांकि विरोधी खेमा कमजोर नहीं हुआ, लेकिन अपने साथी के बेवफाई से अवष्य निराष हुआ, टीम में दरार पड़ने से भी इंकार नहीं किया जा सकता, अब विरोधी टीम के अन्य सदस्यों को अपनी साख बचाने के लिए मिलकर लड़ाई लड़नी होगी। कानूनी लड़ाई के जरिए ही डा. प्रमोद कुमार चौधरी एंड टीम को परास्त किया जा सकता है। जिसकी तैयारी हो भी रही है।
मैडम, ‘डा. प्रमोद चौधरी’ लगा रहंे ‘रेडक्रास सोसायटी’ पर ‘दाग’
बस्ती। भले ही चाहें एक दो लोगों की षिथिलता के कारण कारण डा. प्रमोद कुमार चौधरी एंड टीम को जीत मिली हो, लेकिन कुछ ऐसे भी जुझारु और ईमानदार लोग भी है, जिनके कारण डाक्टर के खिलाफ लड़ाई जारी है। इन्हीं में से आजीवन सदस्य इंडियन रेडक्रास सोसायटी के चंद्रेष प्रताप सिंह का नाम षामिल है। यह भी अपने साथी से बहुत आहत हैं, वैसे आहत तो कई हैं, कहते हैं, कि जिसके भीतर मान, सम्मान और अभिमान की भावना न हो, वह लड़ाई नहीं लड़ सकता। साथ देने या फिर दिखाने के लिए अवष्य रहता है, लेकिन अंजाम तक खड़ा नहीं रहता। कहते हैं, कि भले ही चाहे इस लड़ाई में कोई साथ दे या न दे, लेकिन वह इसे अंजाम तक पहुंचाकर ही रहेगें। आवष्यकता पड़ी तो वह इसे न्यायालय में भी ले जाने से नहीं हिचकेगें, और जिन लोगों ने रफीउदीन के मामले में मेडीवर्ल्ड हास्पिटल के प्रबंधक डा. प्रमोद कुमार चौधरी का अनैतिक और भारी रकम लेकर साथ दिया, उन्हें कोर्ट मक घसीटूगां, कोर्ट में सीएमओ और नोडल डा. एसबी सिंह को बताना होगा कि बिना रफीउदीन के षिकायत का निस्तारण किए कैसे मेडीवर्ल्ड का पंजीकरण कर दिया, इस मामले में सीएमओ कोई जबाव नहीं दे पाए और मामले की जांच करने को कहा। कहते हैं, मेडीवर्ल्ड के प्रबंधक ने रफीउदीन नामक टेक्निसीएन का फर्जी डिग्री लगाकर अस्पताल का लाइसेंस ले लिया, और जिसके आधार पर सीएमओ ने पंजीकरण को निरस्त भी कर दिया, लेकिन उसके बाद चोरी छिपे सीएमओ और नोडल ने भारी रकम लेकर मेडीवर्ल्ड का पंजीकरण कर दिया, जबकि इस मामले में डा. प्रमोद कुमार चौधरी के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज है। कहते हैं, कि सीएमओ और नोडल को कोर्ट को यह बताना होगा कि किन परिस्थितियों में बिना रफीउदीन के मामले को निस्तारित किए बिना अस्पताल का पंजीकरण कर दिया। नियमानुसार नोडल और सीएमओ को इस मामले को पहले निस्तारित करना था, उसके बाद पंजीकरण की कार्रवाई करनी थी, लेकिन पैसे के बल पर जिस तरह सीएमओ और नोडल ने नियम विरुद्व पंजीकरण किया, उसका खामियाजा दोनों को भुगतना पड़ेगा, जोर देकर कहते हैं, कि मैं उन लोगों में नहीं हूं, जो दबाव में आकर अपने साथियों को धोखा दें।
अपनी लड़ाई जारी रखते हुए चंद्रेष प्रताप सिंह 13 नवंबर 25 को डीएम से मिले और उन्हें एक पत्र दिया, जिसमें रेडक्रास सोसायटी के चेयरमैन के खिलाफ दिए गए अविष्वास प्रस्ताव को स्वीकार करने, पुरानी कार्यकारिणी को भंग कर नई कार्यकारिणी का गठन सहित मेडीवर्ल्ड के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की। कहा कि रेडक्रास सोसाइटी बस्ती की मौजूदा कार्यकारिणी में व्याप्त अनैतिकता, अनियमितता व सभापति के आचरण कदाचार के कारण रेडक्रास सोसायटी की पवितत्रा पर दाग लग रहा है। इस लिए कार्रवाई करना आवष्यक है। बिंदुवार षिकायत की गई।
कहा गया कि रेडक्रास सोसायटी बस्ती के दस सदस्यों का चुनाव सामान्य मतदाताओं द्वारा किया गया था उक्त चुनाव में चुने गए दस सदस्यों ने सभापति उप सभापति कोषाध्यक्ष जनपद के एजीएम व प्रदेश प्रतिनिधि (राज्य प्रबंधन समिति) का चुनाव किया था परंतु अत्यंत कष्ट व खेद के साथ अवगत कराना पड़ रहा है कि सभापति के कदाचार व अनैतिकता कार्यो के कारण उक्त चुने दस सदस्यों में से सात सदस्यों ने स्वंय की चुनी कार्यकारणी के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाया है जो अत्यंत गंभीर स्थिति है। सभापति के कार्यो कदाचारों के कारण रेडक्रास सोसायटी जैसी पवित्र संस्था पर अपवित्रता का दाग धब्बे लग रहे हैं। कहा कि सभापति डॉ प्रमोद कुमार चौधरी द्वारा अपने हॉस्पिटल मेडीवर्ल्ड निकट मनहनडीह निकट टीवी अस्पताल बस्ती के रजिस्ट्रेशन में एक्स-रे टेक्नीशियन की डिग्री चोरी व जालसाजी कर लगाया गया है। सभापति डॉ प्रमोद कुमार चौधरी के कदाचार से रेडक्रास सोसायटी जैसी पवित्र संस्था बदनाम हो रही है। रेडक्रास सोसायटी के सभापति के ऊपर एक्स-रे टेक्नीशियन की डिग्री चोरी कर लगाने का पुरानी बस्ती थाने पर अभियोग दर्ज। रेडक्रास सोसायटी के सभापति के कारण साधारण सभा या सामान्य सदस्यों का कोई प्रत्यक्ष हस्ताक्षेप नहीं रह गया और सभापति स्वयंभू बनकर रेडक्रास सोसायटी जैसे पवित्र संस्था को बदनाम कर रहे हैं। सभापति के कारण कार्यकारिणी की आंतरिक असहमति और सभापति के नैतिक आचरण से जुड़ा विकट विषय है। यूनिफॉर्म रुल्स इस विकट स्थिति पर मौन है जिससे प्रशासनिक अस्पष्टता बनी हुई है। इस विकट स्थिति में स्वाभाविक रूप से यह प्रश्न उठता है कि जब सभापति पर अनैतिक आचरण फर्जी प्रमाण पत्रों का उपयोग और अस्पताल संचालन में अनियमितताओं पंजीकरण निरस्त होने के बाद भी अस्पताल संचालन किए जाने सहित रेडक्रास में परस्पर आरोप सिद्ध हो चुका है, सीएमओ एवं नोडल अधिकारी के द्वारा कागज में ओपीडी आईपीडी बंद किए जाने का तथ्य इसका पुख्ता प्रमाण है। ऐसी दशा में ऐसे व्यक्ति को पद पर बने रहने देना न केवल रेडक्रास सोसायटी जैसे पवित्र संस्था के प्रतिष्ठा के विरुद्ध है अपितु रेडक्रास के मूल उद्देश्यों सेवा सत्य सद्भावना का भी अपमान है।
रेडक्रास सोसायटी जैसे पवित्र संस्था में सद्भाव पारदर्शिता सुचिता सर्वोपरि है यदि संस्था, संगठन के प्रमुख ही अनैतिकता भ्रष्टाचार जालसाजी विवाद व अविश्वास के प्रतीक बन जाएं तो यह न केवल कार्यकारणी अपितु समस्त सदस्यों के घोर निराशाजनक है।
जनता का शासन-प्रशासन पर तभी विष्वास बढ़ेगा, जब उन्हें योजना का लाभ मिलेगाःडीएम
बस्ती। कलेक्ट्रेट सभागार में गुरुवार को डीएम कृत्तिका ज्योत्सना की अध्यक्षता में जनशिकायत निवारण प्रणाली (आईजीआरएस) की समीक्षा बैठक आयोजित की गई। बैठक में विभिन्न विभागों के अधिकारियों ने विभागवार प्राप्त शिकायतों, उनके निस्तारण की स्थिति तथा लंबित प्रकरणों का ब्यौरा प्रस्तुत किया। डीएम ने सभी अधिकारियों को निर्देशित किया कि शासन की इस महत्वपूर्ण व्यवस्था के माध्यम से जनता को त्वरित न्याय मिलना चाहिए, इसलिए किसी भी स्तर पर लापरवाही या विलंब स्वीकार्य नहीं होगा। उन्होने अधिकारियों से कहा कि प्रतिदिन पोर्टल का अवलोकन किया जाय, जिससे षिकायतों का शीघ्र निस्तारण हो सकें।
उन्होने यह भी निर्देष दिया कि अपने विभाग से संबंधित षिकायत न रहने पर संबंधित विभाग को तत्काल प्रेषित किया जाय। इसके साथ ही षिकायतों का निस्तारण करते समय श्रेणी का विषेष ध्यान रखें। डीएम ने कहा कि अधिकारियों का यह दायित्व है कि वे प्रत्येक शिकायत का गंभीरता से परीक्षण कर उसके समाधान की दिशा में प्रभावी कार्यवाही करें। उन्होंने कहा कि केवल औपचारिक निस्तारण न किया जाए, बल्कि शिकायतकर्ता को वास्तविक समाधान मिलना चाहिए, ताकि जनता का विश्वास शासन-प्रशासन पर बना रहे। उन्होंने विभागवार समीक्षा करते हुए कई विभागों के लंबित प्रकरणों पर संबंधित अधिकारियों को शीघ्र कार्रवाई करने के निर्देश दिए। बैठक में मुख्य विकास अधिकारी सार्थक अग्रवाल, अपर जिला अधिकारी प्रतिपाल सिंह चौहान, डीएफओ डा. षिरीन, उप जिलाधिकारी शत्रुध्न पाठक, सत्येन्द्र सिंह, डीपीआरओ धनष्याम सागर, एक्सियन पीडल्यूडी अवधेष कुमार, उप निदेषक कृषि अषोक कुमार गौतम, जिला सेवायोजन अधिकारी अवधेन्द्र प्रताप वर्मा, भूमि संरक्षण अधिकारी डा. राजमंगल चौधरी, मत्स्य अधिकारी संदीप वर्मा, मुख्य पषुचिकित्साधिकारी डा. ए.के. गुप्ता, ईडीएम सौरभ द्विवेदी सहित समस्त जिला स्तरीय अधिकारी एवं संबंधित विभागों के नोडल अधिकारी उपस्थित रहे।
‘बीएलओ’ के साथ ‘बंधुवा’ मजदूर और ‘नौकरों’ जैसा ‘व्यवहार’ कर रहें ‘अधिकारी’!
-33 रुपये में बंधुवा मजदूर की तरह सुबह से देर रात तक खटा रहें, बीएलओ को मनरेगा मजदूर से भी गयागुजरा समझ रहे अधिकारी
-जब भी कोई बीएलओ अपना दर्द बताने जाता तो उसे ऐसा डांटते हैं, मानो वह अधिकारियों का नौकर हो, जिस बीएलओ को कभी उसकी पत्नी से नहीं डांटा होगा, उसे अधिकारी डांट रहा,
-अधिकारियों का बीएलओ के प्रति अच्छा व्यवहार न होने के कारण अनेक बीएलओ कंुडाग्रस्त, वह अपने मूल कार्य को नहीं कर पा रहा, अधिकारी अलग से डरा धमका रहें
-पहले एक माह त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में रात दिन खपाया और अब भरवा रहे एसआईआर, अधिकारी चुनाव के समय अपने आपको हिटलर समझने लगतें
-अधिकारी खुद तो लक्जरी गाडी में बैठकर आते हैं, और आते ही उन्हें प्यास लग जाती, वहीं प्रशिक्षण में दूर दराज से आने वाले बीएलओ को एक कप चाय तक नषीब नहीं होता
बस्ती। जो खबरें आ रही है, अगर उसे सच माना जाए तो अधिकारी बीएलओ के साथ बंधुवा मजदूर और नौकरों जैसा व्यवहार कर रहें, दर्द सुनने के बजाए उन्हें डांट डपट कर भगा देते हैं, कहते हैं, जाओ काम पूरा करो, नहीं तो एफआईआर दर्ज करा दूंगा। बेचारा बीएलओ जेल जाने के डर से चुपचाप अपमान का घुंट पीकर रह जाता है। जिस बीएलओ पर पूरा चुनाव आधारित होता हैं, अगर उसी बीएलओ को अधिकारी बंधुवा मजदूर समझकर रात दिन खटाएगें और वह भी 33 रुपये में तो असंतोष होगा ही, और जिसका प्रभाव काम पर पड़ेगा।
अब जरा अंदाजा लगाइए कि जिस बीएलओ से 33 रुपये में बंधुवा मजदूर की तरह सुबह से देर रात तक काम ले रहे हैं, अगर उस बीएलओ के साथ अधिकारी नौकरों की तरह व्यवहार करेगें तो कुंडाग्रस्त होगा ही, अधिकारी बीएलओ को मनरेगा मजदूर से भी गयागुजरा समझ रहें। जब भी कोई बीएलओ अपना दर्द बताने किसी अधिकारी के पास जाता तो उसे ऐसा डांटते हैं, मानो वह अधिकारियों का नौकर हो, जिस बीएलओ को कभी उसकी पत्नी ने नहीं डांटा होगा, उसे अधिकारी डांट रहें। अधिकारी चुनाव के समय अपने आपको हिटलर समझने लगते। चुनाव का काम हमेषा बाबू भैया कहकर कराया जाता है। अगर ऐसे में अधिकारियों का बीएलओ के प्रति अच्छा व्यवहार नही रहेगा तो अनेक बीएलओ कंुडाग्रस्त का षिकार हो जाएगें। वैसे भी वह अपने मूल कार्य को नहीं कर पा रहा, अधिकारी अलग से डरा धमका रहें है। पहले एक माह त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में रात दिन खपाया और अब भरवा रहे एसआईआर।
बीएलओ की ड्यूटी कर्मचारियों के लिए मुसीबत बन गई है। निर्वाचन कार्य में उनसे एक दो घंटे का सहयोग लेने के बजाए एक कर्मी कई तरह पूरा दिन खटाया जा रहा है। इसके एवज में उन्हें मात्र 33 रुपये की दहाड़ी दी जा रही है। जो फोटो काफी, प्रशिक्षण के लिए आवाजाही खर्च व मोबाईल डाटा का खर्च उठाने भर का भी नहीं है। प्रशिक्षण में उन्हें चाय पानी तक नहीं पूछा जाता है ।मिलता है तो कार्य किसी तरह पूरा करने कई धमकी, विभागीय कार्यवाही व मुकदमा दर्ज कराने का भय। उन्हें अपनी बात तक नहीं रखने दी जा रही है। यही कारण है कि अधिकांश कर्मी बीएलओ से ड्यूटी कटाना चाह रहे है। क्योकि उन्हें इस अतिरिक्त कार्य का जितना धन नहीं मिल रहा उससे कई गुना अधिक कार्य लिया जा रहा है। वह भी जिम्मेदारी भरा। भला सोचने वाली बात है कि 33 रुपये में पूरा दिन कौन कार्य करेगा। वह भी डर और धमकी के बीच। अधिकारी उनके कर्मचारी होने का फायदा उठा रहे हैं। बिना पूछे बीएलओ में ड्यूटी लगा दी। अब जबरन कार्य करा रहे हैं। एक दो दिन की बात हो तो किया भी जा सके। जैसे त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव का मतदाता पुनरीक्षण कार्य समाप्त किया वैसे फिर विधानसभा मतदाता सूची का एसआईआर भरने का कार्य थमा दिया । एक माह तो किसी तरह उस कार्य को लग कर बीएलओ ने पूरा किया, लेकिन यह कार्य उनके जी का जंजाल बन गया है। परिवार के सभी सदस्यों का गणना पत्रक छाटने और देने में इनका माथा पहले ही चकरा गया क्योंकि कोई सदस्य सूची में इर घाट था तो कोई बीर घाट। पहले फार्म वितरण के लिए डराया धमका गया ।किसी तरह बेचारे कार्यवाही के डर से यह कार्य पूरा किए। अब फार्म आन लाइन व आफ लाइन दोनों भरने का दबाब डाला जाने लगा है। वह भी कम से कम 50 लोगों का रोज। यह कार्य इतना कठिन है कि पूछो मत लोग अभी खेती किसानी में फंसे है। दिन भर घर पर मिलते ही नहीं । इधर कहा जा रहा है कि 20 दिन में फर्म नहीं भरे तो कार्यवाही झेलने के लिए तैयार रहना ।हम रेले जाएंगे तो तुमको भी रेलेंगे। सोचने वाली बता है कि भाई तुम्हरा तो यह कार्य है इसके लिए मोटी तनख्वाह ले रहे हो। यहां तो सात हजार की संविदा नौकरी है। बीएलओ का कहना है कि पहले उनसे सहयोगी के रुप में कार्य लिया था। वह एक दो घंटा समय हफ्ते दस दिन दे देते थे। निर्वाचन का भी कार्य हो जाता था। लेकिन अब कार्य काफी जटिल और जिम्मेदारी भरा हो गया है।एक दो घंटे से कार्य नहीं चलेगा। पूरा दिन लगना होगा ऐसे में उनका विभागीय कार्य कौन करेगा। जिसके लिए उनकी तैनती हुई है। अधिकारी जबरन अब कार्य ले रहे हैं। बीएलओ का कहना है कि महादेवा विधानसभा के कुछ अधिकारी उनसे बतमीजी पूर्ण बात करते है। अपनी बात तक नहीं रखने देते हैं।आखिर यह तानाशाही ही तो है। निर्वाचन विभाग को इन पर एक्शन लेना चाहिए। वह हमसे सहयोगी भी ले रहे हैं और इज्जत भी नहीं दे रहे हैं। लक्जरी गाडी में बैठकर आने के बाद भी खुद तो दस मिनट में प्यास जाते है। लेकिन प्रशिक्षण में दूर दराज से आने वाले बीएलओ को एक चाय तक पिलाना मुनासिब नहीं समझते। बीएलओ कहते हैं, कि भला इस तरह भी कहीं कार्य लिया जाता है क्या?
‘मरी’ बच्ची की ‘मुंह’ देखने की ‘कीमत’ 45 हजार
-राजेन्द्रा हास्पिटल के संचालक, डाक्टर के विरूद्ध कार्रवाई की मांग
-इलाज के दौरान नवजात बालिका की मौत, डाक्टर पर लापरवाही का आरोप
-बेटी का शव देेने के लिये मांग रहे थे रूपया, पुलिस के पहुंचने पर मिला शव
बस्ती। प्राइवेट अस्पतालों के संचालक और डाक्टर मरीजों और तीमारदारों के प्रति दिन प्रति दिन अमानवीय व्यवहार करने का मामला सामने आ रहा है। इससे बड़ा अमानवीय व्सवहार और क्या होगा कि मरी हुई बच्ची का मुंह देखने के लिए 45 हजार मांगा गया। बच्ची का बाडी तभी देने को कहा गया, जब तक पैसा नहीं मिलेगा।
पैसा वसूलने के लिए बच्ची की मौत को तीन दिन तक छिपाया गया। जब पुलिस आई और उसने हस्तक्षेप किया तो बच्ची की बाडी परिजन को दी गई। यह सनसनीखेज मामला राजेंद्रा हास्पिटल का सामने आया। बस्ती शहर के निजी अस्पतालों में इलाज के नाम पर मनमानी धन उगाही, मरीज के मर जाने पर भी वसूली की घटनायें लगातार बढती जा रही है। इसी प्रकार का एक और मामला बटेला चौराहा के निकट स्थित राजेन्द्रा हास्पिटल का सामने आया है। कोतवाली थाना क्षेत्र के जिगना निवासी विजय कुमार पुत्र कुश प्रकाश ने गुरूवार को पुलिस अधीक्षक को पत्र देकर राजेन्द्रा हास्पिटल में उसकी नवजात बेटी का डाक्टर की लापरवाही के कारण मौत का आरोप लगाते हुये समूचे मामले की जांच, हास्पिटल के संचालक और डाक्टर के विरूद्ध मुकदमा पंजीकृत कराकर न्याय की गुहार लगाया है।
एसपी को दिये पत्र में विजय कुमार ने कहा है कि 26 अक्टूबर 2025 को कैली अस्पताल में नार्मल डिलीवरी से बच्ची पैदा हुई जिसको गन्दा पानी की वजह से कैली अस्पताल द्वारा रेफर कर दिया गया जिसे उसने केडी अस्पताल जिगना में भर्ती कराया, वहां पर स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण वह बच्चे को लेकर राजेन्द्रा हास्पिटल बटेला चौराहा में भर्ती कराया। लगभग 15 दिनों तक स्थिति सामान्य रहा इसके बाद नौ नवम्बर की रात्रि लगभग ढ़ाई बजे सूचना दी गयी कि आपकी बच्ची की मृत्यु हो गयी हैं। डाक्टर ललित द्वारा किसी भी परिवार के व्यक्ति से मिलने नही दिया गया। पिछले तीन दिन से बच्चे के शव की की मांग की गयी तो हास्पिटल के डाक्टर द्वारा 45000 रूपये की मांग की गयी कि इतना रुपया दो तो मृतक बच्चे को देखने देगें और उसके बाद सुपुर्द कर देगें। इसके बाद विजय कुमार ने मजबूर होकर 112 पर सूचना दी। और मौके पर पुलिस आयी तो मृतक बच्चे को सुपुर्द कराया। इससे पहले भी हास्पिटल के संचालक द्वारा 1,45,000 रूपये की मांग किया गया तब उसने कहा कि इतना रुपया कहा से लाकर दें इतना कहने पर संचालक व डाक्टर द्वारा गाली गुप्ता दी गयी और वहां से उसको भगा दिया गया। पत्र में विजय कुमार ने कहा है कि बच्ची की मौत डाक्टर की लापरवाही के कारण हुआ है। इसी कारण उसे तीन दिनों तक भ्रमित किया और बच्ची की मरने की सूचना बाद में दी गयी। उसने राजेन्द्रा हास्पिटल के संचालक व डाक्टर के विरूद्ध एफआईआर दर्ज कराने की मांग किया है।
‘ट्रेजरी’ बाबू बन रिटायर ‘पुलिस’ वाले को लाखों ‘ठगा’
बस्ती। भुवर निरंजनपुर निवासी रिटायर पुलिस कर्मी को ‘ट्रेजरी’ बाबू बनकर तीन लाख ठगने का मामला सामने आया। रिटायर कर्मी लक्ष्मीकांत यादव पुत्र स्व. घुरे लाल यादव की ओर से कोतवाली में दर्ज कराए गए मुकदमे में कहा गया है, कि मेरा खाता एक्सिस बैंक बाराबंकी में है। इस खाते में वेतन पूर्व में आता था, रिटायर होने के बाद सारा पैसा खाते में आ गया। बताया कि 24 अक्टूबर 25 को ‘ट्रेजरी’ बाबू बनकर किसी ने फोन किया और वाटसअप पर एक लिंक भेजा, लिंक पर क्लिक करवाकर, मोबाइल को हैक कर दिया और 27 अक्टूबर 25 को पहले 20 हजार, फिर 75 हजार, फिर 4500 और उसके बाद दो लाख सहित कुल लगभग तीन लाख निकाल लिया। पुलिस बार-बार सचेत करती है, कि साइबर क्राइम करने वालों से सावधान रहिए। मोबाइल पर अगर कोई भी अंजान व्यक्ति चाहें वह ‘ट्रेजरी’ बाबू ही क्यों न हो कोई जबाव मत दीजिए। न तो किसी लिंक को क्लिक करिए और न ही आधार नंबर ही दीजिए। एक तरह से देखा जाए मोबाइल के चलते साइबर क्राइम का जन्म हुआ, और इसके लिए झारखंड के जामतारा के लोगों को जिम्मेदार माना जा रहा है। जामतारा में हर घर में साइबर क्राइम होता है, यहां पर साइबर काइम करने का प्रषिक्षण तक दिया जाता है। यहां के लोगों ने बताया कि किस तरह बेवकूफ बनकर रातों रात करोड़पति बना जाता है। देखा जाए तो साइबर क्राइम का दायरा दिन प्रति दिन बढ़ता जा रहा है, साइबर क्राइम सेल में अपराध से अधिक मामले सामने आ रहे है। बहुत नषीब वाले होते हैं, जिनका पैसा वापस मिलता है। क्यों कि साइबर क्राइम करने वाला पैसा खाते में नहीं रखता, जैसे ही उसने किसी को ठगा वैसे ही उसने दूसरे खाते में भेज दिया, जैसा कि थाल्हापार के नटवरलाल जितेंद्र श्रीवास्तव उर्फ नाई ने किया। यह डेली अपने खाते से 50 से अधिक लेन-देन करता था, करोड़ों का लेन-देन किया, लेकिन वर्तमान में इसके यूनियन बैंक आफ इंडिया के खाते में मात्र 29 हजार रुपया बैलेंस है। जब कि इसने 46 करोड़ से अधिक की ठगी की।




