‘बीज’ का पैसा ‘सूद’ पर ‘चला’ रहंे ‘केंद्रीय बीज भंडार’ के ‘इंचार्ज’!
-अब तक चार प्रभारियों के खिलाफ दो करोड़ के गबन के आरोप में कार्रवाई हो चुकी, 50 लाख के गबन में राम इकबाल सिंह को तो जेल भी जाना पड़ा, 35 लाख और 15 लाख के गबन के आरोपी रामनाथ षुक्ल एवं कौषल किषोर को निलंबित और परतावल पासवान के खिलाफ अनुषासनिक कार्रवाई हो चुकी
-बीज का जो पैसा दूसरे दिन सरकारी खजाने में जमा करना चाहिए, उसे महीनों जमा नहीं करते, और उस पैसे को या तो व्यक्तिगत या फिर 10-15 फीसद पर सूद पर दे देंते, खुले आम जिला कृषि अधिकारी कार्यालय के बगल में बीज के नाम पर किसानों को ठगा जा रहा, 936 के स्थान पर 1050 रुपया लिया जा रहा, मिटटी को उपजाए बनाने के नाम पर निःषुल्क जैविक खाद को 150 रुपये बोरी में बेची जा रही
-इसी को देखते हुए किसानों की ओर से यह आवाज उठ रही है, कि अगर उन्हें बीज और जैविक खाद के चोरों से बचाने वाला कोई माइकालाल हो तो वह कृष्ण भगवान की तरह प्रगट हो, और द्रोपदी के चीर हरण की तरह किसानों को भी बचा लें
बस्ती। सवाल उठ रहा ह, कि जब जिला कृषि अधिकारी, कार्यालय परिसर में स्थित केंद्रीय बीज भंडार के प्रभारी के भ्रष्टाचार को नहीं समाप्त कर पा रहें हैं, तो यह कैसे जिले के 14 कृषि बीज भंडार के प्रभारियों के भ्रष्टाचार को कैसे रोक पाएगंे? अगर केंद्रीय बीज भंडार में किसानों को बीज और जैविक खाद के नाम पर ठगा जा रहा है, तो इसके लिए सीधे तौर पर जिला कृषि अधिकारी को जिम्मेदार किसान मान रहे हैं, और कह रहे हैं, जिस अधिकारी के सरंक्षण में किसानों को ठगा जा रहा हो, उस अधिकारी का जिले में रहना किसान हित में ठीक नहीं है। किसान इन्हें अब तक का सबसे भ्रष्ट और असफल जिला कृषि अधिकारी मान रहे है। कहते हैं, कि इन्हीं के ही कार्यकाल में पटल सहायकों ने सबसे अधिक लूटपाट मचा रखा। भाकियू भानु गुट के मंडल प्रवक्ता चंद्रेष प्रताप सिंह और किसान नेता दीवान चंद्र पटेल कहते हैं, कि वर्तमान में जिला कृषि अधिकारी और पटल सहायकों ने भ्रष्टाचार की नई गाथा लिखी है। जब भी भ्रष्टाचार का जिक्र होगा, भ्रष्ट डीओ और पटल सहायकों का नाम किसान अवष्य लेगें। कहते हैं, कि इन लोगों के खिलाफ कार्रवाई इस लिए नहीं होती, क्यों कि इन पर किसी न किसी नेता का हाथ अवष्य होता है, चूंकि इन लोगों के पास बेईमानी का इतना पैसा है, कि यह जब चाहते हैं, कृषि निदेषक, जेडीए, डीडीए और डीओ को खरीद लेते है। कहते हैं, कि बिकने वाले अधिकारी, खरीदने वाले से भी महाभ्रष्ट होते है। अगर भ्रष्ट नहीं होते तो 70 लाख के गबन के दोषी के खिलाफ कार्रवाई न करके उसे मलाईदार पटल न देते। इस विभाग में किसानों को कदम-कदम पर भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों का सामना करना पड़ता हैं, किसानों को समझ में नहीं आता कि वह सरकारी कार्यालय आए हैं, या फिर चोर बाजार। कहना गलत नहीं होगा कि जिस तरह पिछले लगभग दो सालों में इस कार्यालय में भ्रष्टाचार ने जन्म लिया, उससे किसानों को इस कार्यालय का हर कोई चोर ही नजर आता। चूंकि केंद्रीय बीज भंडार एवं प्रक्षेत्र प्रभारियों को छोड़कर अन्य कोई वित्तीय घोटाला नहीं करता, इस लिए कोई पकड़ में नहीं आता, और जब से पटल सहायकों ने अवैध वसूली के लिए मुंषी पाल रखा हैं, तब से यह अपने आप को और अधिक सुरक्षित महसूस करने लगें हैं। इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है, कि जिस जिला कृषि अधिकारी कार्यालय में बजट के नाम पर एक लाख रुपया भी नहीं आता, अगर उस कार्यालय के अधिकारी और पटल सहायक करोड़ों का गोलमाल करे तो उसे हम और आप क्या कहेंगे? व्यवस्था के नाम पर यह लोग एक ही साल के खरीफ और रबी सीजन में इतना पैसा कमा लेते हैं, कि यह राजाओं जैसी जिंदगी गुजारने लगते है।
अब बात कर रहे थे, जिला कृषि कार्यालय परिसर में स्थित केंद्रीय बीज भंडार के भ्रष्ट प्रभारियों की। इन्हें इस बात का कोई डर नहीं लगता कि 50 मी. की दूरी पर जिला कृषि अधिकारी बैठते हैं, अगर वह जांच करने आ गए, तो उनका क्या होगा? यह लोग इस लिए निडर होकर किसानों का षोषण कर रहे हैं, क्यों कि इनके पाप की कमाई में अधिकारी भी हिस्सेदार रहते है। वरना, किसी प्रभारी की हिम्मत किसानों से बीज का दाम अधिक ले सके, और जेैविक खाद के नाम पर लूट सके। इस बीज भंडार का इतिहास बहुत खराब रहा। वैसे पूरे विभाग का इतिहास खराब माना जाता है, लेकिन बीज भंडार का इतिहास इस लिए सबसे अधिक खराब माना जाता है, क्यों कि यहां के चार प्रभारी या तो जेल जा चुके या फिर निलंबित हो चुके। एक-एक प्रभारी ने 50-50 लाख का गबन किया। इन चारों प्रभारियों के खिलाफ लगभग दो करोड़ के गबन के आरोप में कार्रवाई हो चुकी, 50 लाख के गबन में राम इकबाल सिंह को तो जेल भी जाना पड़ा, 35 लाख और 15 लाख के गबन के आरोपी रामनाथ षुक्ल एवं कौषल किषोर को निलंबित और परतावल पासवान के खिलाफ अनुषासनिक कार्रवाई हो चुकी। इन सभी ने बीज का पैसा सरकारी खजाने में जमा न करके या तो भारी सूद पर या फिर व्यक्तिगत खर्चा कर दिया। नियमानुसार बीज का जो पैसा दूसरे दिन सरकारी खजाने में जमा करना चाहिए, उसे महीनों जमा नहीं करते। खुले आम जिला कृषि अधिकारी कार्यालय के बगल में बीज के नाम पर किसानों को ठगा जा रहा, 936 के स्थान पर 1050 रुपया लिया जा रहा, मिटटी को उपजाए बनाने के नाम पर निःषुल्क जैविक खाद को 150 रुपये बोरी में बेची जा रही। इसी को देखते हुए किसानों की ओर से यह आवाज उठ रही है, कि अगर उन्हें बीज और जैविक खाद के चोरों से बचाने वाला कोई माइकालाल जिले में हो तो वह कृष्ण भगवान की तरह प्रगट हो, और द्रोपदी के चीर हरण की तरह किसानों को भी बचा लें।
अजूबाः ‘बिना’ दवा के ‘हुआ ‘दो लाख’ मरीजों का ‘इलाज’
-इलाज के नाम पर 22 डाक्टरों ने लिया लगभग चार करोड़ मानदेय, दवा के नाम पर हर साल लाखों आया, लेकिन कहां गया, इलाज करने वाले डाक्टरों को भी नहीं मालूम
-यह है, जिले भर के आयुष अस्पतालों का हाल, इन अस्पतालों में पिछले चार साल एक रुपया की होम्योपैथिक की दवाएं सीएमओ की ओर से नहीं उपलब्ध कराई गई, जबकि आयुष के डाक्टर अपनी और सरकार की इज्जत बचाने को जेब से दवा खरीद रहें
-मेन स्टीमंग आफ आयुष के नोडल अधिकारी डा. वीके वर्मा भी मानते हैं, कि सीएमओ की ओर से आयुष के अस्पतालों में पिछले चार साल से दवा उपलब्ध नहीं करवाई जा रही, पहली अप्रैल 24 से 31 मार्च 25 तक 22 अस्पतालों में डाक्टरों ने कुल दो लाख 18 हजार 388 मरीजों का इलाज किया
बस्ती। जानकर, सुनकर और पढ़कर हैरानी तो जरुर हो रही होगी, और आप लोग यह जरुर सोच रहें होगें कि बिना दवा के कैसे दो लाख से अधिक मरीजों का इलाज डाक्टर कर सकते है। हैरान मत, यह हुआ है, और इसे आयुष यानि होम्योपैथ के 22 डाक्टरों जिनमें 14 पुरुष बौर आठ महिला डाक्टरों ने किया। इन लोगों ने अपनी और सरकार की इज्जत बचाने के लिए अपनी जेब से पिछले चार सालों में लाखों रुपया की दवा खरीदकर मरीजों का इलाज किया। जबकि हर साल दवा के नाम पर सीएमओ के पास लगभग 35 लाख का बजट आता है, यह रुपया कहां जाता और किस मद में खर्च होता, इसकी सही जानकारी कोई नहीं दे पा रहा हैं, यहां तक कि दिषा की बैठक में जब एमएलसी प्रतिनिधि हरीष सिंह ने सवाल उठाया तो सीएमओ इसका जबाव नहीं दे पाए। सवाल आज भी सवाल बना हुआ है। इतना ही नहीं इलाज के नाम पर 22 डाक्टरों को एनएचएम से लगभग चार करोड़ का मानदेय भी दिया गया, दवा के नाम पर हर साल जो लाखों आता, वह कहां जाता, किस मद में खर्च होता इसकी सही जानकारी इलाज करने वाले डाक्टरों को भी नहीं। मेन स्टीमंग आफ आयुष के नोडल अधिकारी डा. वीके वर्मा भी मानते हैं, कि सीएमओ की ओर से आयुष के अस्पतालों में पिछले चार साल से दवा उपलब्ध नहीं करवाई जा रही, बताया कि पहली अप्रैल 24 से 31 मार्च 25 तक 22 अस्पतालों में डाक्टरों ने कुल दो लाख 18 हजार 388 मरीजों का इलाज किया गया।
सरकार की मंषा सरकारी अस्पतालों में एक ही छत के नीचे सभी पद्धति का इलाज हो, इसके तहत एनएचएम की ओर से डा. वीके वर्मा को जिला अस्पताल, डा. पारसनाथ को सीएचसी कप्तानगंज, डा. रवि प्रकाष वर्मा को रामपुर/वाल्टरगंज मरवटिया, डा. धमेंद्र कुमार को पीएचसी चिलमा सीएचसी दुबौलिया, डा. प्रदीप कुमार षुक्ल को पीएचसी सल्टौआ, डा. नफीस अीमद खान को पीएचसी मुसहा गौर, डा. सतीष चंद्र चौधरी आयुष विंग जिला अस्पताल, दिनेष सिंह कुषवाहा को पीएचसी पकड़ीचंदा मुंडेरवा, डा. धमेंद्र कुमार चौधरी को पीएचसी विषेषरगंज, डा. अनिल कुमार मिश्र को पीएचसी हरदी, डा. आमिष कुमार को पीएचसी करमहिया भानपुर, डा. जुनैद अहमद खान आयुष विंग जिला अस्पताल, डा. सुनील कुमार सौरभ को पीएचसी एकमा बनकटी, डा. वंदना मितवारी को पीएचसी सिंकदरपुर, सीएचसी परसरामपुर, डा. डिपंल वर्मा को सीएचसी परसरामपुर, डा. भावना गुप्ता को पीएचसी दयानगर रुधौली, डा. षाजिया खान को सीएचसी विक्रमजोत, डा. संगीता को सीएचसी कप्तानगंज, डा. नीलम चौधरी को पीएचसी ओड़वारा साउंघाट, डा. दीपिका सचान को पीएचसी सल्टौआ एवं डा. श्रद्धा सिंह को पीएचसी बहादुरपुर नियुक्त किया गया। मरीज देखने की जो रैंकिगं की गई, उसमें सबसे अधिक मरीज देखने का रिकार्ड जिला अस्पताल के डा. वीके वर्मा के नाम रहा, इन्होंने 28637 मरीजों का इलाज अपनी जेब से दवा खरीदकर किया। महिला डाक्टरों में पहले स्थान पर डा. वंदना तिवारी रही, इन्होंने भी अपनी जेब से दवा खरीदकर कुल 10035 मरीजों का इलाज किया।
‘मेडीवर्ल्ड हास्पिटल’ के ‘डा. प्रमोद चौधरी’ का नाम ‘दिल्ली’ में गूंजने ‘लगा’!
-श्रीराजपूत करणी सेना उ.प्र. के पूर्वांचल प्रवक्ता चंद्रेष प्रताप सिंह ने साक्ष्य सहित निदेषक डब्लू एंड पीजी स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को पत्र लिखकर मेडीवर्ल्ड हास्पिटल को पूर्ण रुप से बंद करने एवं सीएमओ और नोडल डा. एसबी सिंह के खिलाफ कार्रवाई करने की अपील की
बस्ती। अब तो मेडीवर्ल्ड हास्पिटल के संचालक एवं रेडक्रास सोसायटी के सभापति डा. प्रमोद कुमार चौधरी का नाम देष की राजधानी में गूंजने लगा। श्रीराजपूत करणी सेना उ.प्र. के पूर्वांचल प्रवक्ता चंद्रेष प्रताप सिंह ने साक्ष्य सहित निदेषक डब्लू एंड पीजी स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को पत्र लिखकर मेडीवर्ल्ड हास्पिटल को पूर्ण रुप से बंद करने एवं सीएमओ और नोडल डा. एसबी सिंह के खिलाफ कार्रवाई करने की अपील की है। श्रीसिंह का कहना है, कि भले ही चाहें इस लड़ाई में कोई उनका साथ दे या न दे, लेकिन वह इस मामले को अंजाम तक ले जाकर ही दम लेगें। भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ लड़ाई लड़ने का जो जूनून चंद्रेष प्रताप सिंह में देखने को मिल रहा है, अगर इसी तरह जूनून अन्य लोगों में भी आ जाए तो काफी हद तक गलत कामों पर लगाम लग सकता है।
लिखे पत्र में कहा गया है, कि रफीउदीन का एक्सरे टेक्निसिएन की डिग्री मेडीवर्ल्ड हास्पिटल के डा. प्रमोद कुमार चौधरी ने बिना अनुमति से फर्जी तरीके से नोटरी करवाकर लाइसेंस ले लिया। जब इसकी जानकारी रफीउदीन को हुई तो इन्होंने इसकी लिखित जानकारी सीएमओ को देते हुए कार्रवाई करने की मांग की। जिस पर सीएमओ ने मेडीवर्ल्ड को नोटिस जारी किया। नोटिस का जबाव नहीं दिया। तब सीएमओ ने नोडल एवं डिप्टी सीएमओ डा. एसबी सिंह की रिपोर्ट पर पंजीकरण निरस्त कर दिया और ओपीडी बंद करने का आदेष दिया। इसके बाद अचानक पता चला कि सीएमओ ने बिना रफीउदीन के प्रकरण को निस्तारित करते हुए पुनः दूसरे के नाम से लाइसेंस जारी कर दिया। लिखा कि मेडीवर्ल्ड का पुनः पंजीकरण करना बड़ा संदेहात्मक है। जिसतरह सीएमओ और डा. एसबी सिंह ने मिलकर नियम विरुद्ध पंजीकरण किया, उससे पता चलता हैं, कि सभी ने मिलकर रफीउदीन के साथ धोखाधड़ी किया। इस पूरे मामले ने सीएमओ, नोेडल और मेडीवर्ल्ड वाले डा. प्रमोद कुमार चौधरी की कलई खोलकर रख दी। किस तरह धन और राजनैतिक पहुंच के बल पर गलत को सही किया जाता है, उसे सीएमओ और उनकी टीम ने करके दिखा दिया। बकौल सीएमओ जहां डा. प्रमोद कुमार चौधरी के खिलाफ नोडल एफआईआर दर्ज करवाने जा रहे थे, और कहां पंजीकरण कर दिया। यह सभी लोग सरकार और समाज के दुष्मन माने जा रहे है।
मुझसे ‘शादी’ कर ‘लो’ जानू ‘रानी’ बनाकर ‘रखूंगा’
-कोर्ट मैरिज नहीं करोगो तो षारीरिक संबंध बनाने नहीं दूंगी, षारीरिक संबध बनाने के लिए मंदिर में षादी कर लिया, और जैसे ही षारीरिक संबध बनाया, वैसे ही छोड़कर चला गया
बस्ती। लक्ष्मी पूजा में भाग लेने गई लड़की जब रात को वापस घर आ रही थी, तो रास्ते में एक लड़का मिला, और उसने लड़की को पकड़ कर पहले किस यानि चुम्मा लिया, जुम्मा लेते वक्त का फोटो भी खींचा, दूसरे दिन लड़का फिर लड़की से मिला और कहा कि जानू मुझसे शादी कर लो मैं तुम्हे रानी बना के रखूगा। लड़के ने षादी का झांसा देकर लड़की के घर में ही षारीरिक संबध बना लिया, जब लड़की को यह लगा कि उसका फायदा लड़का उठा रहा हैं, तो उसने लड़के के साथ एक षर्त रखा कि अगर मेरे साथ षारीरिक संबध बनाना चाहते हो तो पहले कोर्ट मैरिज करना होगा। लड़का तैयार भी हो गया, और दिखावे के लिए उसने मंदिर में षादी भी कर लिया, जैसे ही लड़के का मकसद पूरा हुआ, तो वह लड़की को छोड़कर मुंबई भाग गया। यह कोई किसी उपन्यास का हिस्सा नहीं बल्कि हकीकत है। इसकी षिकार लड़की ने रुधौली थाने में न्यायालय के आदेष पर पोखर भिट्टी पोस्ट डड़वा कला थाना रुधौली जनपद बस्ती वीर बहादुर चौहान उम्र लगभग 23 वर्ष पुत्र रामदास, रामदास पुत्र अज्ञात लगभग 65 वर्ष, श्रीमती बासमती पत्नी रामदास उम्र लगभग 60 वर्ष, शिवकुमार उम्र लगभग 40 वर्ष, विनोद उम्र लगभग 35 वर्ष और संतोष उम्र लगभग 33 वर्ष पुत्रगण रामदास साकिनान पोखर भिट्टी पोस्ट डडवा कला थाना के खिलाफ एससीएसटी एक्ट सहित अन्य धारा में मुकदमा दर्ज किया। आजकल जिस तरह से अवैध रिष्तों का जन्म हो रहा है, उससे पूरा समाज सकते में है। जिस तरह ग्रामीण/षहरी क्षेत्रों में लड़का और लड़की सारे रिष्ते भूलकर अवैध रिष्ते बना रहे हैं, उससे परिवार के साथ समाज का माहौल भी दूषित हो रहा है। लड़की के चलते जिस तरह परिवार को बदनामी का दंष झेलना पड़ता है, वह किसी पीड़ा से कम नहीं। कहा भी जाता है, कि इज्जतदार इंसान एक वक्त की रोटी खाकर रह लेगा, लेकिन बदनामी को नहीं झेल पाएगा। यह एक ऐसी बदनामी होती है, जो जीवनभर लड़की के परिवार को सहना पड़ता। अधिवक्तताओं के पास आजकल इस तरह के इतने मामले आ रहे हैं, कि अधिवक्तागण भी परेषान हैं, और कह रहे हैं, कि यह हो क्या रहा है? कोई मासूम बच्चा लेकर आ रही है, तो कोई रोती हुई आ रही है। अधिकतर मामलों में षादी का झांसा देने का मामला आ रहा है। सवाल, उठ रहा है, कि क्या एक 20-22 साल की लड़की को कोई लड़का झांसा दे सकता है, क्या? या फिर बहलाफुसला भगा ले सकता है, क्या? जिस तरह लड़कियां अपने आप को इतनी आसानी से एक ऐसे व्यक्ति को अपनी इज्जत समर्पित करती है, जिसके बारे में वह ठीक से जानती ही नहीं, उससे गलत परम्परा का जन्म हो रहा है, और इसके लिए लड़कियों और उनके परिजन को सावधान होना पड़ेगा। परिजन को अपनी लड़कियों को खासतौर पर जो पढ़ने जाती हैं, उनकी गतिविधियों पर कड़ी नजर रखनी होगी। हालांकि बहुत कम ऐसा परिवार होता है, जो अपनी लड़कियों पर कड़ी नजर रखता हो। हर मां-बाप अपनी लड़कियों पर भरोसा करते है।

