माननीयजी, ‘अधिकारी’ और ‘ठेकेदार’ कोई ‘बंधुवा’ मजदूर ‘नहीं’!
-कि जब चाहा और जहां चाहा वहीं अपमानित कर दिया, जिसे चाहा उसे जूते से मारने को कहा, जिस अधिकारी ने ईमानदारी दिखाते हुए टेंडर निरस्त न करने की बात कही, उसे धमकी देते
-अधिकारियों और ठेकेदारों का कहना है, कि माननीयों को यह नहीं भूलना चाहिए, कि ठेकेदार और अधिकारियों की बदौलत 12 फीसद कमीषन मिलता, यह भी नहीं भूलना चाहिए कि हम लोगों के चंदे और सहयोग ही चुनाव जीतते
-बस्ती और सिद्धार्थनगर के माननीयों की ओर से हाल और पूर्व में जिस तरह अपने लाभ के लिए अधिकारियों और ठेकेदारों को अपमानित किया, उससे माननीयों का एक ऐसा चेहरा जनता के सामने आया, जिससे जनता भी हैरान और परेषान होकर पूछती है, कि क्या यही माननीयों का सच है?
-पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और जनपद बस्ती और सिद्धार्थनगर के तीन माननीय किसी न किसी रुप में ठेका निरस्त करने और ठेकेदारों के खिलाफ एफआईआर तक की कार्रवाई करने का दबाव पीडब्लूडी के अधिकारियों पर बना चुके
-इनमें एक भी माननीय अपने मकसद में सफल नहीं हुआ, बल्कि दो दिन पहले जब बस्ती के एक माननीय ने प्रांतीय खंड के एक्सईएन पर टेंडर निरस्त करने का दबाव बनाया तो अधिकारी ने कह दिया कि टेंडर तो निरस्त नहीं होगा, इसके लिए आप को सीएम से बात करनी पड़ेगी, किस माननीय की इतनी हिम्मत हैं, वह सीएम से बात करे
-लाख दबाव के बावजूद एक्सईएन ने बता दिया भले ही आप जनप्रतिनिधि हैं, लेकिन विभाग में वही होगा जो मैं चाहूंगा, क्यों कि मेरी नजर में सभी एक जैसे ठेकेदार हैं, और सबको टेंडर डालने का अधिकार
-जो टेंडर माननीयजी के दबाव में कभी जीरो फीसद बिलो पर निकलता था, वह टेंडर 33 से लेकर 38 फीसद तक बिलों में निकला, और यह सबकुछ प्रांतीय खंड के एक्सईएन संजीव कुमार की ईमानदारी के कारण हुआ
-माननीयजी का सारा गुस्सा उन ठेकेदारों पर था, जिन्होंने बिना उनकी अनुमति के टेंडर डाल दिया, जिसके चलते माननीयजी के चहेते ठेकेदारों को ठेका नहीं मिला
बस्ती। अपने लोगों को ठेकापटटी दिलाने के लिए जिस तरह माननीय अपना आपा खोते जा रहे हैं, और अधिकारियों पर टेंडर निरस्त करने और विरोधी के ठेकेदारों के खिलाफ एफआईआर तक की कार्रवाई करने का दबाव बना रहें हैं, उससे माननीयों की छवि दिन प्रति दिन धूमिल होती जा रही है, यह लोग अपनी छवि तो खराब कर ही रहे हैं, साथ ही सरकार की छवि भी धूमिल कर रहे हैं। पहले के माननीय अधिकारियों से निवेदन के लहजे में कोई काम करने को कहते थे, लेकिन आज के माननीय, अधिकारियों और ठेकेदारों को बंधुआ मजदूर समझकर काम करने का फरमान जारी करते। इन्हें यह नहीं मालूम कि आज का अधिकारी और ठेकेदार किसी का बंधुआ मजदूर नहीं रह गया। आज अगर अधिकारी माननीयों की नहीं सुन रहा है, तो उसके लिए अधिकारी नहीं बल्कि माननीयों ही जिम्मेदार हैं। अधिकारियों का कहना और मानना है, कि जिस दिन माननीयगण अनैतिक कार्यो को करवाने का दबाव बनाना बंद कर देगें, उस दिन सरकार और माननीय दोनों की छवि बनेगी। जिसके चलते माननीय दुबारा चुनाव भी जीत सकते है। कहते हैं, कि माननीयगण जब चाहें और जहां चाहें वहीं अधिकारियों और ठेकेदारों को अपमानित कर दे रहें हैं। जिसे चाहा उसे जूते से मारने की बात करते हैं, और उसका वीडियो भी वायरल करते है। कहते हैं, कि जिस अधिकारी ने ईमानदारी दिखाते हुए टेंडर निरस्त न करने या फिर ठेकेदार के खिलाफ जबरदस्ती कार्रवाई करने से इंकार किया उसे धमकी देते है। मानो हम लोग सरकार के नौकर नहीं बल्कि माननीयों के हरवाह चरवाह हैं। अधिकारियों और ठेकेदारों का कहना है, कि माननीयों को यह नहीं भूलना चाहिए, कि ठेकेदारों और अधिकारियों की बदौलत ही 12 फीसद कमीषन मिलता, यह भी नहीं भूलना चाहिए कि हम लोगों के चंदे और सहयोग ही यह लोग चुनाव जीतते हैं। जिस दिन अधिकारियों और ठेकेदारों ने हाथ खींच लिया, उस दिन माननीयों को दोनों के महत्व का पता चल जाएगा। चुनाव जीतना मुस्किल हो जाएगा, चंदा मिलना बंद हो जाएगा। बस्ती और सिद्धार्थनगर के माननीयों की ओर से हाल और पूर्व में जिस तरह अपने लाभ के लिए अधिकारियों और ठेकेदारों को अपमानित किया गया, उससे माननीयों का एक ऐसा चेहरा जनता के सामने आया, जिससे जनता भी हैरान और परेषान होकर पूछती है, कि क्या यही माननीयों का सच है? पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और जनपद बस्ती और सिद्धार्थनगर के तीन माननीय किसी न किसी रुप में ठेका निरस्त करने और ठेकेदारों के खिलाफ एफआईआर तक की कार्रवाई करने का दबाव पीडब्लूडी के अधिकारियों पर बना चुके है। हैरानी होती हैं, कि इनमें एक भी माननीय अपने मकसद में सफल नहीं हुआ, बल्कि दो दिन पहले जब बस्ती के एक माननीय ने प्रांतीय खंड के एक्सईएन पर टेंडर निरस्त करने का दबाव बनाया तो अधिकारी ने कह दिया कि टेंडर तो निरस्त नहीं होगा, इसके लिए आप को सीएम से बात करनी पड़ेगी, किस माननीय की इतनी हिम्मत हैं, वह सीएम से बात करे। लाख दबाव के बावजूद एक्सईएन ने बता दिया कि भले ही आप जनप्रतिनिधि हैं, लेकिन विभाग में वही होगा जो मैं चाहूंगा, क्यों कि मेरी नजर में सभी एक जैसे ठेकेदार हैं, और सबको टेंडर डालने का अधिकार है। माननीय के लाख न चाहते हुए भी टेंडर निकला, जिसमें सबसे अधिक नुकसान माननीय के चहेते ठेकेदारों का ही हुआ। जो टेंडर माननीयजी के दबाव में कभी जीरो फीसद बिलो पर निकलता था, आज वह टेंडर 33 से लेकर 38 फीसद तक बिलों में निकला, और यह सबकुछ प्रांतीय खंड के एक्सईएन संजीव कुमार की ईमानदारी के कारण हुआ। अनेक ठेकेदारों का कहना है, कि माननीयजी का सारा गुस्सा उन ठेकेदारों पर था, जिन्होंने बिना उनकी अनुमति के टेंडर डाल दिया, जिसके चलते माननीयजी के चहेते ठेकेदारों को ठेका नहीं मिला। ठेकेदारों के सबसे बड़ी समस्या माननीयगण ही है। कहते हैं, कि अधिकांष टेंडर निरस्त करने का दबाव इस लिए माननीयगण अधिकारियों पर बनाते हैं, क्यों कि उनके ठेकेदारों को उनके क्षेत्र का ठेका जो नहीं मिला। जनपद सिद्धार्थनगर और बस्ती में यही देखने को मिला। सवाल उठ रहा है, कि क्या किसी ठेकेदार को बिना माननीय के मेहरबानी के ठेकापटटी नहीं मिल सकता? और क्या ठेकेदार बिना क्षेत्रीय माननीय की मर्जी के गुणवत्तापरक निर्माण कार्य नहीं करवा सकता? कहते हैं, कि अगर माननीयगण आज जिस तरह अनैतिक कार्य करवाने के लिए अधिकारियों पर दबाव बना रहे हैं, उसके लिए कुछ ऐसे चापलूस ठेकेदार ही जिम्मेदार हैं। रही बात, ठेकेदारों में एकता होने की तो, जब तक लालची और चापलूस किस्म के ठेकेदार, माननीगण के आगे पीछे घूमते रहेगें तब तक एकता नहीं हो सकती, और न कोई ठेकेदार संघ का अध्यक्ष ही एकता ला सकता है। जिस दिन ठेकेदारों ने माननीयों के आगे-पीछे घूमना बंद किया और गुणवत्तापरक कार्य करने लगे, उस दिन कोई भी माननीय ठेकेदार का कुछ नहीं बिगाड़ सकता। माननीयगण, जब कथित ठेकेदार बन जाएगें तो समस्या सरकार के सामने खड़ी होगी। यह भी सही है, कि माननीयगण और ठेकेदार एक दूसरे के पूरक हैं, दोनों एक दूसरे के सहयोग के बिना नहीं रह सकते। अक्सर चुनाव में नेताजी के साथ ठेकेदार ही डटकर खड़ा रहता। माननीयगण के जनता दरबार में जनता कम और ठेकेदार अधिक दिखाई पड़ते। इस बार हर्रैया क्षेत्र के ठेकेदार पिछली बार की तरह मलाई नहीं काट पाएगें।
अधिकांश‘डाक्टर्स’ दवा ‘कंपनियों’ की ‘गुलामी’ कर ‘रहें’!
-अगर किसी डाक्टर्स को लड़का/लड़की की षादी करनी है, या फिर नर्सिगं होम और आवास का निर्माण करवाना है, या फिर परिवार के साथ विदेष की यात्रा करनी हो, या फिर लक्जरी गाड़ी के सपने को पूरा करना हो तो उन्हें कथित फर्जी दवा कंपनियों की गुलामी स्वीकार करनी होगी
-गुलाम बनने वाले डाक्टर्स की जमीर और ईमान दोनों पूरी तरह मर चुका है, यह लोग पैसे के लिए गरीब मरीजों की जिंदगी और उनकी गुरबत के साथ मजाक कर रहें
-गुलामी करने वाले डाक्टर्स की तिजोरी तो भरती जा रही है, लेकिन गरीब मरीजों का परिवार उजड़ रहा है, गुणवत्ताविहीन दवाओं से तो मर्ज ठीक नहीं हो रहा, अलबत्ता मरीज स्वर्गवासी अवष्य होता जा रहा
-मेलकाम नामक कथित फर्जी दवा की कंपनी की दवा लिख-लिखकर एक नामचीन डाक्टर कहां से कहां पहुंच गए, यह एक ऐसे नामचीन डाक्टर का काम, जिसकी ओपीडी की कमाई डेली चार से पांच लाख
-पैसे के हवष ने इस नामचीन डाक्टर्स को मरीजों की नजर में भगवान से षैतान बना दिया, फिर भी पैसे की भूख नहीं मिटी
बस्ती। आज भी मरीजों के प्रति ईमानदार रहने वाले डाक्टर्स की कमी नहीं है। लेकिन यह भी सही है, कि बेईमान, लालची और पैसे के लिए इमान बेचने वाले डाक्टर्स की भी भरमार है। मरीजों को समझ में ही नहीं आ रहा है, कि कल तक जो डाक्टर भगवान कहलाते थे, आज कैसे वह भगवान से षैतान बन गए? कैसे वह इतना लालची हो गए की मरीज उन्हें सोने की अंडा देने वाली मुर्गी समझ बैठे। आज के कुछ डाक्टर्स ने एक मुष्त करोड़ों कमाने के लिए नया तरीका निकाला, इस तरीके का इस्तेमाल करके भले ही अधिकांष नामचीन डाक्टर्स पांच-दस हजार करोड़ के क्लब हो गए, लेकिन इसके लिए उन्हें अपना ईमान और जमीर दोनों बेचना पड़ा। ऐसे-ऐसे डाक्टर्स ने कथित फर्जी दवा कंपनियों के सामने अपने आप को गिरवी रख दिया, और गुलाम तक बनने को तैयार हो गए, जिनके पास पैसे की कोई कमी नहीं और जिसकी सिर्फ ओपीडी की कमाई ही डेली चार से पांच लाख है। इन लालची डाक्टर्स ने ऐसे दवा कंपनियों की गुलामी को स्वीकारा जिस दवा का एमआरपी तो 600-700 रहता है, लेकिन वह सप्लाई 50-60 रुपये में डाक्टर्स को होती है। इसमें अधिकतर हायर एंटीबायटिक, इंजेक्षन, टेबलेट और सीरप होता है। एक अपुष्ट आकड़ों के अनुसार जिले के 25 फीसदी लालची किस्म के डाक्टर्स दवा कंपनियों के गुलाम हो चुके हैं, और इन्हें गुलाम बनाने में दूबे और गुप्त परिवार जैसे दवा माफियाओं का हाथ है। इन्हीं दोनों परिवारों को अधिकांष डाक्टर्स को भगवान से षैतान बनाने में बहुत बड़ा हाथ रहा। एक तरह से इन्हें अ्रबाला और हिमाचल प्रदेष की कथित फर्जी दवाओं का निर्माण करने वाले कंपनियों का एक तरह से बिचौलिया कहा जाता है। अधिकाषं डीलिगं इन्हीं दोनों परिवार के द्वारा हुई। डाक्टर्स को कौन सी दवा और किस प्रिंट में चाहिए, यह उपलब्ध करा देते है। सूर्या वाले तो जनरेरिक दवाओं को पेटेंट दवा के दाम में बेच रहे है। इनका एक पर्चा वायरल हुआ, जिसमें इन्होंने पर्चे पर उन्हीं दवाओं का नाम प्रिंट करवा रखा, जो इन्हें देना रहता है। देष के यह पहले ऐसे नामचीन डाक्टर हैं, जो पर्चे में पहले से दवाओं का नाम प्रिंट है। यानि मर्ज चाहे जो हो, दवा वही मिलेगी जो पर्चे पर लिखा हैं, डाक्टर को सिर्फ दवा के बगल में टिक करना होता है।
जिले में मषहूर है, कि अगर किसी डाक्टर्स को लड़का/लड़की की षादी करनी है, या फिर नर्सिगं होम और आवास का निर्माण करवाना है, या फिर परिवार के साथ विदेष की यात्रा करनी हो, या फिर लक्जरी गाड़ी के सपने को पूरा करना हो तो उन्हें कथित फर्जी दवा कंपनियों की गुलामी स्वीकार करनी होगी। गुलाम बनने से पहले डाक्टर्स को जमीर और ईमान दोनों बेचना होगा। अधिकांष डाक्टर्स का जमीर और ईमान दोनों पूरी तरह मर चुका है, यह लोग पैसे के लिए गरीब मरीजों की जिंदगी और उनकी गुरबत के साथ मजाक कर रहें। गरीबी और अषिक्षित होने का फायदा उठा रहे है। गुलामी करने वाले डाक्टर्स की तिजोरी तो भरती जा रही है, लेकिन गरीब मरीजों का परिवार उजड़ता ही जा रहा है, गुणवत्ताविहीन दवाओं से तो मर्ज ठीक नहीं हो रहा, अलबत्ता मरीज स्वर्गवासी अवष्य होते जा रहें है। षहर में मालवीय रोड स्थिम एक नामचीन डाक्टर हैं, जिनका मेलकाम नामक कथित फर्जी दवा की कंपनी के साथ दस करोड़ का एग्रीमेंट है। इस एग्रीमेंट के तहत डाक्टर्स को उन्हीं दवाओं को लिखना और बेचना है, जिसे कंपनी कहेगी, और जिसमें कंपनी और डाक्टर्स दोनों का अधिक से अधिक लाभ हो। यह डाक्टर कंपनी की दवा लिख-लिखकर कहां से कहां पहुंच गए, इस डाक्टर्स के ओपीडी की कमाई डेली चार से पांच लाख है। डाक्टर्स भले ही चाहें चेंबर में 11 बजे बैठे लेकिन पर्ची बनने वाला काउंटर सुबह ही खुल जाता है। पर्चो की संख्या जानकर डाक्टर साहब उपर से नीचे आते है। इस नामचीन डाक्टर को पैसे के हवष ने इस मरीजों की नजर में भगवान से षैतान बना दिया, फिर भी पैसे की भूख नहीं मिटी। वहीं पर कुछ ऐसे नामचीन और पैसे वाले डाक्टर्स भी हैं, जिनका न तो अभी तक जमीर मरा और न ही ईमान का सौदा ही किया। आज भी मरीज ऐसे डाक्टर्स को भगवान मानती है। बहरहाल, जिस भी इंसान का जमीर मर गया उसे समाज हेय की निगाह से देखता है। कहा भी जाता है, कि अगर डाक्टर जैसा व्यक्ति मरीजों की जिंदगी के साथ सौदा करने लगे तो फिर मरीज कहां जाएगा?
‘गुजरात’ में ‘अब्दुल रहमान’ और ‘यूपी’ में ‘राम दुलारे चौबे’!
-जमीन हड़पने के लिए फर्जी आईडी से बदलता रहा अपना नाम, बहुत बड़ा नटवरलाल बना राम दुलारे चौबे
-इसका खुलासा राज्य स्तरीय मान्यता प्राप्त पत्रकार बस्ती के फूलचंद्र चौधरी ने करते हुए डीएम बस्ती से एफआईआर दर्ज कराने की मांग की
-यह एक ऐसा मामला है जिसने पूरे प्रशासन और पहचान प्रणाली की नींव को हिला कर रख दिया, कैसे एक मुस्लिम जिंदा आदमी खुद को लगभग 40 साल पहले मरा बताकर रामदुलारे चौबे बनकर फर्जी निर्वाचन पहचान पत्र बनवाया, करोड़ों की जमीन खरीदा और बेचा
बस्ती। आप सभी लोग इस व्यक्ति को अच्छी तरह पहचान लीजिए, इस व्यक्ति असली नाम क्या है, इसका पता नहीं, लेकिन यह व्यक्ति जब गुजरात में रहता है, तो अब्दुल रहमान खान बन जाता है, और जब यूपी में आता है, तो यह राम दुलारे चौबे बन जाता है। फर्जी आईडी बनाने के पीछे इसकी मंषा बस्ती में करोड़ों की जमीन को हथियाने की है। इसका खुलासा राज्य स्तरीय मान्यता प्राप्त पत्रकार बस्ती के फूलचंद्र चौधरी ने करते हुए डीएम बस्ती से एफआईआर दर्ज कराने की मांग की है। यह एक ऐसा मामला सामने आया, जिसने पूरे प्रशासन और पहचान प्रणाली की नींव को हिला कर रख दिया, कैसे एक मुस्लिम जिंदा आदमी खुद को लगभग 40 साल पहले मरा बताकर रामदुलारे चौबे बनकर फर्जी निर्वाचन पहचान पत्र बनवाया, करोड़ों की जमीन खरीदा और बेचा? यह सवाल बना हुआ है।
मामला थाना सोनहा क्षेत्र का है, जहाँ अब्दुल रहमान खान, पुत्र अब्दुल माजिद खान गुजरात के वलसाड़ का रहने वाला, मुस्लिम व्यक्ति साल 2007 में बस्ती पहुंचा और खुद को हिन्दू बनाकर पेश किया। फर्जी निर्वाचन कार्ड स्कैन-एडिट किया और अपने फर्जी नाम से आईडी बनवाया। कहा भी गया है, कि चोर चाहें जितनी बाराकी और चालाकी से चोरी करें, कहीं न कहीं सुराग छोड़ ही जाता है। यही गलती अब्दुल रहमान/ राम दुलारे चौबे ने किया। जब निर्वाचन आयोग वेबसाइट पर चेक किया गया तो असलियत का पता चला। चुनाव आयोग के वेबसाइट पर चेक किया गया तो चौंकाने वाला खुलासा हुआ यह निर्वाचन कार्ड मोहम्मद असलम पुत्र अब्दुल खालिक के नाम से निकला। फिर उसी स्कैन किए गए फर्जी आईडी से कुछ जालसाजों के साथ मिलकर फर्जी राम दुलारे चौबे के नाम से वर्ष 2016 में आधार कार्ड भी बनवाया लिया। अब देखिए इसके दो-दो आधार कार्ड एक मुस्लिम, एक हिंदू दोनों पर नाम और पता अलग अलग है पर आधार नं. एक ही है। अब्दुल रहमान ने सोनहा थाना क्षेत्र के एक गाँव की ही प्रेमा देवी के साथ मिलकर यह खेल खेला। मोहम्मद असलम के वोटर कार्ड को स्कैन किया, एडिट किया, और अपना नाम बदलकर बन गया राम दुलारे चौबे। लेकिन सबसे हैरानी की बात है, कि असल राम दुलारे चौबे तो 35-40 साल पहले ही मर चुका। यह बात खुद उनके गांव के कई लोगों ने व भाइयों रामउजागिर और रामपियारे ने स्पष्ट कही है। कहा कि हमारे भाई रामदुलारे बहुत पहले गुजर गए थे। इन लोगों की मंषा फर्जी आईडी बनाकर हमारी जमीन को हड़पने की रही। फर्जी पहचान पत्र बनने के बाद आरोपी ने साल 2007 कई पत्रकार से मिलकर उसी फर्जी बनाए गए निर्वाचन से न्यूज पेपरों में भी अपने आपको जिन्दा दिखाया ताकि कोई शक न करें। दूसरा बार वर्ष 2016 में मतदाता पहचान पत्र की मदद से फर्जी आधार कार्ड भी बनवाया, और फिर मृतक की पैतृक जमीन पर कब्जा करने का ऑपरेशन शुरू किया। साल 2007 में दौरान चकबंदी में इसी फर्जी पहचान का उपयोग करते हुए आरोपी ने मृतक रामदुलारे बनकर, उनकी जमीन को प्रेमा देवी के नाम बेच दिया, और उसके बाद लापता हो गया। बताते चले कि सूबे में लगभग वर्ष 2009 के पहले जमीन बेचने वाले व्यक्ति को आईडी नहीं देना अनिवार्य नहीं था जिससे ज्यादा धोखाधड़ी होने के चांस होते थे। इस मामले की सबसे बड़ी परत यह सिर्फ जमीन की धोखाधड़ी नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और पहचान प्रणाली पर सीधा हमला है। चुनाव आयोग का वोटर कार्ड स्कैन कर एडिट किया गया, फिर आधार कार्ड फर्जी तरीके से बनवाया। एक मुस्लिम व्यक्ति को हिन्दू मृतक बनाकर पेश किया गया। बताया जा रहा है, कि इस साजिश में बड़े-बड़े गैंग देश के घुस पैठियां शामिल कराने वाले जुड़े हो सकते है। इस पूरे मामले को एक संगठित अपराध माना जा रहा है। एक व्यक्ति का दो दो अलग अलग पते अलग अलग नाम और अगल अलग धर्म का आधार कार्ड बनवाया गया। एक मृत व्यक्ति की पहचान का दुरुपयोग कर जमीन बेचने का यह खेल कैसे वर्षों तक चलता रहा? चुनाव आयोग और आधार प्रणाली में यह सेंध कैसे पड़ी? और इस गिरोह में और कौन-कौन शामिल है?
इसकाखुलासा एफआईआर दर्ज होने के बाद ही हो सकता है।
‘जातिगत’, ‘राजनीतिक’ और व्यक्तिगत ‘स्वार्थ’ की ‘भेंट’ चढ़ रही ‘रेडक्रास सोसायटी’!
-भाजपा नेता राजेंद्रनाथ तिवारी ने राज्यपाल को पत्र लिखकर उनसे तत्काल इसकी उच्च स्तरीय जांच कराने की मांग की
बस्ती। रेडक्रास सोसायटी के सभापति डा. प्रमोद कुमार चौधरी और उनकी टीम के द्वारा की जा रही अनियमितता का मामला अब राज्यपाल तक पहुंच गया। राज्यपाल को लिखे पत्र मेें भाजपा नेता एवं जिला सहकारी बैंक के चेयरमैन राजेंद्रनाथ तिवारी ने कहा कि बस्ती का रेडक्रास सोसयाटी ‘जातिगत’, ‘राजनीतिक’ और व्यक्तिगत ‘स्वार्थ’ की ‘भेंट’ चढ़ रही है। राजनैतिक हस्तक्षेप, फर्जी सदस्यता पंजीकरण एवं नियम विरुद्ध लिए गए निर्णय की तत्काल उच्च स्तरीय जांच करवाई जाए। कहा कि यूनिफार्म रुल्स के प्रतिकूल निर्णय लगातार लिए जा रहे है। जिससे संस्था की विष्वनीयता तटस्थता और सेवा धर्म बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। कहा कि चुनाव से ठीक पूर्व सीएमओ की संलिप्ता से एक ही रात कई आजीवन सदस्य बना दिए गए। प्रदेष कार्यकारिणी चुनाव में बस्ती से अधिकृत मतदाता का नाम हटाकर अवैध रुप से अन्य व्यक्ति का नाम मतदान करने के लिए भेजा गया, जो सीधे-सीधे षक्ति दुरुपयोग की श्रेणी में आता है। लिखा कि वर्तमान सभापति डा. प्रमोद चौधरी के विरुद्ध गंभीर आपराधिक मुकदमों, फर्जी डिग्री के आरोप एवं मीडिया में प्रसाारित अनियमियताओं के कारण संस्था की साख सवालों के घेरे में है। कहा कि इन सबके बीच रेडक्रास जैसे मानवीय संगठन को जातिगत, राजनैतिक और व्यक्तिगत स्वार्थ की भेंट चढ़ाने की सुनियोजित कोषिष चिंता का विषय है। कहा कि दस में से सात सदस्यों के द्वारा अविष्वास प्रस्ताव इस बात का सबूत हैं, कि स्थित कितना गंभीर है। लिखा कि जांच करवाकर दोषी पदाधिकारियों पर कठोर प्रषासनिक कार्रवाई की जाए। इस मामले में राजभवन से हस्तक्षेप करने की अपील की गई। ताकि बस्मती रेडक्रास सोसायटी पुनः अपने मूल सेवा धर्म, तटस्थता और जनहित के अनुरुप कार्य कर सके। रेडक्रास सोसायटी का मामला राज्यपाल तक जाना अपने आप में ही गंभीर विषय है। जिले के अधिकांष लोग रेडक्रास सोसायटी को अनियमितता मुक्त और पहले जैसा देखना चाहते है। वर्तमान रेडक्रास सोसायटी की कल्पना उन लोगों ने भी नहीं की होगी, जिन लोगों ने मिलकर डा. प्रमोद कुमार चौधरी को सभापति बनाया। रेडक्रास सोसायटी में हेल्थी इनवायरमेंट की जरुरत महसूस की जा रही है, और तब तक नहीं होगा, जबतक डा. प्रमोद चौधरी नैतिकता के नाम पर इस्तीफा नहीं दे देते। अब यह डा. प्रमोद चौधरी एंड टीम पर निर्भर हैं, कि रेडक्रास सोसायटी की खोई हुई प्रतिष्ठा किस तरह वापस लाते है।
‘स्नातक’ शिक्षक ‘चुनाव’ विधानसभा चुनाव ‘2027’ का ‘सेमीफाइनल’ःगिरी
बस्ती। स्नातक शिक्षक विधायक निर्वाचन 2026 की तैयारियों को सुदृढ़ गति देने के उद्देश्य से बुधवार को भाजपा कार्यालय बस्ती में जनपदीय बैठक संपन्न हुई। बैठक की अध्यक्षता भाजपा जिलाध्यक्ष विवेकानन्द मिश्र ने की, जबकि मुख्य अतिथि के रूप में इस अभियान के प्रदेश सह संयोजक तथा भाजपा के प्रदेश मंत्री शंकर गिरी उपस्थित रहे। बैठक में सभी ने एक स्वर में संकल्प लिया कि बस्ती जनपद में अधिकतम मतदाता पंजीकरण कराते हुए भाजपा उम्मीदवार को ऐतिहासिक विजय दिलाने के लिए संगठन पूरी निष्ठा से कार्य करेगा।
मुख्य अतिथि श्री शंकर गिरी ने उपस्थित पदाधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि यह स्नातक शिक्षक चुनाव विधानसभा चुनाव 2027 का सेमीफाइनल है, इसलिए संगठन के प्रत्येक कार्यकर्ता तथा जनप्रतिनिधि को पूरे समर्पण के साथ अधिकतम मतदाता बनाने के लिए कार्य करना होगा। उन्होंने कहा कि 10 दिसम्बर तक मतदाता फार्म जमा करने की अंतिम तिथि है, अतः सभी कार्यकर्ता अपने-अपने क्षेत्रों में तेज गति से संपर्क अभियान चलाएं।
जिलाध्यक्ष विवेकानन्द मिश्र ने कहा कि स्नातक शिक्षक निर्वाचन भाजपा के वैचारिक आधार को मजबूत करने का अवसर है। उन्होंने बल देते हुए कहा कि “भाजपा परिवार का प्रत्येक सदस्य अपने विचार परिवार से जुड़े विद्यालयों एवं शिक्षण संस्थानों में संपर्क कर अधिक से अधिक योग्य मतदाताओं का पंजीकरण सुनिश्चित करे।” उन्होंने कहा कि यह निर्वाचन केवल एक चुनाव नहीं, बल्कि संगठन की शक्ति और एकजुटता को प्रदर्शित करने का मंच है।
बैठक के संचालन की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भाजपा शिक्षक प्रकोष्ठ के जिला संयोजक डॉ. रघुवर पाण्डेय ने बखूबी निभाई। बैठक में उनकी सक्रिय और नेतृत्वकारी भूमिका विशेष रूप से सराहनीय रही। बैठक में जिला सह संयोजक मनीष श्रीवास्तव, नन्दलाल कन्नौजिया, राम बृक्ष निषाद, कृष्ण कान्त पाण्डेय, विवेकानन्द शुक्ल, डॉ. अजीत मणि त्रिपाठी, संतोष सिंह, राहुल सिंह, महेन्द्र कुमार गौड़, फागू लाल गुप्ता, शाशंक श्रीवास्तव, उपेन्द्र नारायण, कमलेश चौधरी, राहुल शुक्ल, विनय प्रभाकर त्रिपाठी, डॉ. एस.पी. त्रिपाठी, डॉ. श्रीराम चौहान, विजय सेन सिंह, अमित चतुर्वेदी, नीरज त्रिपाठी, राधेश्याम यादव, डॉ. रमा शर्मा, बृजेश कुमार दुबे, रोहित सिंह, दुर्गेश कुमार, अजय श्रीवास्तव, डॉ. रघुनाथ चौधरी, डॉ. शिवेंद्र मोहन पाण्डेय, सूर्य पाल वर्मा, अमित कुमार दुबे सहित पदाधिकारी एवं कार्यकर्ता उपस्थित रहे।

