‘संजय चौधरी’ के ‘आगे’ बड़े से बड़ा ‘भ्रष्टाचारी’ बौना!
-लोहिया मार्केट के दुकानों के आवंटन में किया भारी गोलमाल, एक-एक दुकान आंवटन में तीन से चार लाख लिया, जिस दुकान की बोली 15 से 20 लाख लगनी चाहिए थी, उस दुकान को न्यूनतम 12 लाख की बोली से कम आठ लाख में दे दिया, ताकि तीन-चार लाख कमाया जा सके
-लाखों कमाने के लिए सरकार को करोड़ों नुकसान किया, ऐसे-ऐसे लोगों से लाखों लिया, जो भ्रष्टाचार के खिलाफ निरंतर आवाज उठाते रहें, दुकान की चाह ने भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी दोनों को बढ़ावा दिया, इसमें भी इन्होंने किसी को भी नहीं छोड़ा
-जो भी दुकान के लिए जाता उसे उपाध्याय नामक बाबू के पास भेज दिया जाता, पैसा खुद नहीं बल्कि बाबू से वसूलवाते, 24 दुकानों में 18 दुकानों के आंवटन में वसूली की, लगभग 60 लाख रुपया बटोरा, यह एक एैसा भ्रष्टाचार निकला जिसे करने वाला भी खुष और कराने वाला भी खुष
-पिछले लगभग पांच साल में इन्होंने जो चाहा और जैसे चाहा वही किया, इनके एजेंडें में कभी जिले का विकास करने का रहा
बस्ती। भ्रष्टाचार करने का अगर किसी को तरीका जानना हो तो वह संजय चौधरी के पास जा सकता है।
यह न सिर्फ भ्रष्टाचार करने के रास्ते बताते हैं, बल्कि विरोधियों कैसे पटकनी दी जाती है, उसका दांव-पेंच भी बताते। जो व्यक्ति पूर्व सांसद जैसे महारथी को पटकनी दे सकता है, वह जाहिर सी बात कि कितना दांव-पेंच वाला व्यक्ति होगा। जिस तरह इन्होंने एक-एक करके उन लोगों को पटकनी दी जिन्होंने जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठाने में मदद की, उससे बड़े-बड़े राजनीतिक भौचक्कें रह गए। लोगों को मानना पड़ा कि इनके भीतर न सिर्फ लोमड़ी जैसी चालाकी भरी हैं, बल्कि कैसे किसी को परास्त किया जाता है, वह गुण भी इनके भीतर छिपा हुआ। यह सिर्फ गिल्लम चौधरी को ही पटकनी नहीं दे पाए, कहना गलत नहीं होगा कि ब्लैकमेल करने में यह गिल्लम चौधरी से पीछे रहे। देखा जाए तो गिल्लम चौधरी ही एक मात्र नेता है, जिसे यह नहीं पटक पाए। चूंकि गिल्लम चौधरी के साथ जिला पंचायत सदस्यों का एक हूजूम रहा, और इसी का गिल्लम चौधरी ने खुद तो लाभ उठाया और सदस्यों को भी लाभ पहुंचवाया। जिस तरह गिल्लम चौधरी एंड पार्टी ने जिला पंचायत अध्यक्ष को समय-समय पर ब्लैकमेल करके लाभ लिया और लाभ दिलवाया, उससे गिल्लम चौधरी को भी संजय चौधरी से कम नहीं आकां जा रहा है। कार्यकाल के अंतिम में एक बार और ब्लैकमेल करने/ब्लैकमेल होने के लिए दोनों को आमना-सामना होना पड़ सकता है। इस अंतिम ब्लैकमेल के खेल में गिल्लम चौधरी एंड पार्टी कितना कामयाब होंती है, यह देखने वाला होगा। यह तो तय है, कि अंतिम बजट का लाभ संजय चौधरी और गिल्लम चौधरी एंड पार्टी अधिक से अधिक लेना चाहेगें। जहां अध्यक्षजी पूरा का पूरा हड़पना चाहेगें, वहीं गिल्लम चौधरी खुद और अपने सदस्यों को अधिक से अधिक लाभ दिलाना चाहेंगे। अब देखना यह होगा कि दो लोमड़ी जैसा दिमाग रखने वाले कौन सी ऐसी चाल चल सकते हैं, जिससे एक दूसरे को पटकनी दी जा सके। असली परीक्षा/लड़ाई को अभी बाकी है। कहना गलत नहीं होगा कि दोनों ने नीजि लाभ के लिए जिले के विकास को बहुत नुकसान पहुंचाया। देखा जाए तो पिछले लगभग पांच साल में संजय चौधरी के एजेंडे में कभी जिले का विकास रहा ही नहीं, इन पांच सालों में इन्होंने जो चाहा और जैसे चाहा वही किया। सांसद और विधायक देखते और हाथ मलते ही रह गए। मीडिया बार-बार पूर्व सांसद को यह एहसास कराती रही है, कि जो व्यक्ति सार्वजनिक रुप से मीडिया के सामने अमित षाह और हरीष द्विवेदी को सरेआम गाली दे चुका हो, वह व्यक्ति कैसे किसी का वफादार हो सकता? लेकिन लालची स्वभाव के चलते आंख पर बंधी बांध ली गई। आज भी लोग गलती संजय चौधरी की नहीं बल्कि पूर्व सांसद और एक वर्तमान सहित पूर्व चार विधायकों की मान रहे है। न यह लोग गरीब जानकर जिले के प्रथम नागरिक की कुर्सी पर बैठाते और न आज जिले की ऐसी हालत होती।
हम बात कर रहे थे, लोहिया मार्केट के दुकानों के आवंटन में किए गए भारी गोलमाल की। जानकर हैरानी होगी कि यह पहला ऐसा गोलमाल हुआ जो जनता के सहयोग और सहमति से हुआ। कहने का मतलब अगर जनता नहीं चाहती तो संजय चौधरी लगभग 60 लाख न कमा पाते, और न सरकार का करोड़ों नुकसान ही होता। एक-एक दुकान आंवटन में तीन से चार लाख लिया, जिस दुकान की बोली 15 से 20 लाख लगनी चाहिए थी, उस दुकान को न्यूनतम 12 लाख की बोली से कम आठ लाख में दे दिया, ताकि तीन-चार लाख कमाया जा सके। आपस में मिलकर बोली लगाया और लाखों देकर दुकान लिया। लाखों कमाने के लिए सरकार को करोड़ों नुकसान करवाया। ऐसे-ऐसे लोगों ने लाखों दिया, जो भ्रष्टाचार के खिलाफ निरंतर आवाज उठाते रहें, दुकान की चाह ने भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी दोनों को बढ़ावा दिया। जो भी दुकान के लिए जाता अध्यक्ष के पास जाता, उसे उपाध्याय नामक बाबू के पास भेज दिया जाता, पैसा खुद नहीं बल्कि बाबू से वसूलवाते, 24 दुकानों में 18 दुकानों के आंवटन में वसूली की गई, लगभग 60 लाख रुपया बटोरा, यह एक एैसा भ्रष्टाचार सामने आया, जिसे करने वाला भी खुष और कराने वाला भी खुष। आठ लाख बोली लगाने वाले को चार लाख, नौ लाख वाले को तीन लाख, 9.50 लाख वाले को 2.50 लाख अतिरिक्त देना पड़ा। छह दुकान पुराने दुकानदारों के लिए आरक्षित किया गया।
‘30 फीसद’ में ‘गुणवत्तापरक’ सड़क ‘बनाने’ वाले ‘ठेकेदारों’ को मिलेगा ‘ईनाम’!
-है, कोई जिले में ऐसा, ‘देषभक्त’ ठेकेदार जो ‘घर’ लुटाकर ‘30 फीसद’ में ‘गुणवत्तापरक’ सड़क बना सके
-पीडब्लूडी के दोनों खंडों में 38 फीसद बिलो पर टेंडर क्या निकला, चर्चा का विषय बन गया, मीडिया की ओर से डीएम को जब यह बताया गया कि जब ठेकेदार 38 फीसद बिलो में टेंडर डालेगा, 12 फीसद क्षेत्रीय माननीय को, 10 फीसद विभाग को और 10 फीसद अपना लाभांष सहित कुल 70 फीसद खर्च करेगा तो कैसे 30 फीसद में ठेकेदार सड़क बनाएगा
-कमीषन का प्रतिषत सुनकर डीएम सहित एडीएम, सीआरओ और दो एसडीएम भी सन्न रह गए, डीएम ने कहा कि हमको सड़कों की सूची उपलब्ध कराइए, हम इसकी जांच कराते है। -सच तो यह है, कि 38 फीसद बिलो वाले टेंडर का एग्रीमेंट ही नहीं होना चाहिए, जेई, एई और एक्सईएन को स्पष्ट ठेकेदार से कह देना चाहिए कि इतने कम बिलो पर सड़क बन ही नहीं सकती, इस लिए टेंडर को निरस्त किया जाता
-पीडब्लूडी के इतिहास में पहली बार 38 फीसद बिलो पर टेंडर फाइनल होने जा रहा, अगर टेंडर फाइनल हो गया तो आप समझ सकते हैं, कि सड़कों का क्या होगा? कोई भी ठेकेदार नहीं चाहता कि टेंडर 38 फीसद बिलो पर फाइनल हो,
-भले ही ठेकेदार चाहें जितना भी यह रोए कि हमको तो 38 फीसद बिलो में ठेका मिला, कहां से कमीषन देंगे, ठेकेदार को भले ही चाहें घर को ही गिरवी क्यों न रखना पड़े या फिर सूद पर ही पैसा लेना पड़े, उसे माननीयजी को 12 और विभाग को 10 सहित कुल 22 फीसद कमीषन देना ही पड़ेगा, नहीं देगा तो इतनी जांच हो जाएगी और भुगतान रोक दिया जाएगा, कि उसे देना ही पड़ेगा
-विभाग के लोग भी कहते हैं, कि भले ही आप जो भी कुछ करो, लेकिन कमीषन तो देना ही पड़ेगा और गुणवत्तापरक निर्माण करना ही होगा, लेकिन माननीयगण को गुणवत्तापरक निर्माण कार्य से कोई मतलब नहीं उन्हें तो क्षेत्र में काम करने के लिए जजिया टैक्स तो देना होगा
-माननीयगण अगर बिलो टेंडर पड़ने के मामले में एक्सईएन पर टेंडर निरस्त करने का दबाव बनाते तो सभी खुष होते और टेंडर निरस्त भी हो जाता, लेकिन अगर इस लिए दबाव बनाया जाएगा कि क्यों नहीं उनकी इच्छानुसार ठेकेदारों को ठेका मिला, तो बात नहीं बनेगी, बदनामी अलग से होगी
बस्ती। इतने सालों में अगर पीडब्लूडी में कुछ नहीं बदला तो वह है, कमीषन का प्रतिषत। माननीयगण ने भले ही जजिया टैक्स को बढ़ा दिया, लेकिन विभाग ने नहीं बढ़ाया। क्यों कि विभाग को कमीषन भी चाहिए और गुणवत्तापरक काम भी। विभाग आज भी 10 फीसद कमीषन लेता, इस मामले में किसी भी ठेकेदार को कोई छूट नहीं मिलती, भले ही ठेकेदार ने चाहें जितना बिलो में टेंडर डाला हो, उसे उसे 10 फीसद कमीषन देना और गुणवत्तापरक निर्माण कार्य करना ही होगा। यह एचएमबी रिकार्ड विभाग में सालों से बजता आ रहा है। जिन ठेकेदारों ने यह कर कमीषन देने से इंकार किया कि बिलो टेेंडर डालने से कुछ नहीं बचा, तो उसे अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ा, अंत में वही हुआ, जो विभाग चाहा। इसी लिए कहा जाता है, कि अगर भुगतान और जांच से बचना है, तो ठेकेदारों को परम्परागत 10 फीसद कमीषन देना ही होगा। आज चर्चा इस बात की हो रही है, कि कैसे कोई ठेकेदार 38 फीसद बिलो और 22 फीसद कमीषन देकर गुणवत्तापरक सड़क का निर्माण कर सकता हैं? सच तो यह है, कि दुनिया का कोई भी ठेकेदार 70 फीसद खर्च करके 30 फीसद में 100 फीसद कार्य कर सकता। इसी लिए उस ठेकेदार को जनता की ओर से ईनाम देने की बात कही जा रही है, जो 30 फीसद में 100 फीसद का कार्य करेगा। कहा जा रहा है, कोई जिले में ऐसा, ‘देषभक्त’ ठेकेदार हैं, जो ‘घर’ लूटाकर ‘30 फीसद’ में ‘गुणवत्तापरक’ सड़क बना सके?े कोई भी ठेकेदार चाहें जितना बड़ा देषभक्त क्यों न हो? वह 30 फीसद में 100 फीसद का कार्य वह भी गुणवत्तापरक नहीं कर सकता।
पीडब्लूडी के दोनों खंडों में 38 फीसद बिलो पर टेंडर क्या निकला, चर्चा का विषय बन गया, मीडिया की ओर से डीएम को जब यह बताया गया कि जब ठेकेदार 38 फीसद बिलो में टेंडर डालेगा, 12 फीसद क्षेत्रीय माननीय को, 10 फीसद विभाग को और 10 फीसद अपना लाभांष सहित कुल 70 फीसद खर्च करेगा तो वह कैसे 30 फीसद में गुणवत्तापरक सड़क बना पाएगा? कमीषन का प्रतिषत सुनकर डीएम सहित एडीएम, सीआरओ और दो एसडीएम भी सन्न रह गए, डीएम ने कहा कि हमको सड़कों की सूची उपलब्ध कराइए, हम इसकी जांच कराते है। सच तो यह है, कि 38 फीसद बिलो वाले टेंडर का एग्रीमेंट ही नहीं होना चाहिए, जेई, एई और एक्सईएन को स्पष्ट ठेकेदार से कह देना चाहिए कि इतने कम बिलो पर सड़क बन ही नहीं सकती, इस लिए एग्रीमेंट नहीं हो सकता और टेंडर को निरस्त किया जाता। पीडब्लूडी के इतिहास में पहली बार 38 फीसद बिलो पर टेंडर फाइनल होने जा रहा, अगर टेंडर फाइनल हो गया तो आप समझ सकते हैं, कि सड़कों का क्या होगा? कोई भी ठेकेदार नहीं चाहता कि टेंडर 38 फीसद बिलो पर फाइनल हो, इस मामले में ठेकेदार संघ को आगे चाहिए और उन्हें इस मामले में प्रषासनिक और विभागीय अधिकारियों को ज्ञापन देना चाहिए, और बिलो रेट की एक सीमा निर्धारित करने की मांग करनी चाहिए, ताकि गुणवत्तापरक सड़कों का निर्माण हो सके। भले ही ठेकेदार चाहें जितना भी यह रोए कि हमको तो 38 फीसद बिलो में ठेका मिला, कहां से कमीषन देंगे, ठेकेदार को भले ही चाहें घर को ही गिरवी क्यों न रखनी पड़े या फिर सूद पर ही पैसा क्यों न लेना पड़े, उसे माननीयजी को 12 और विभाग को 10 फीसद सहित कुल 22 फीसद कमीषन देना ही पड़ेगा, नहीं देगा तो इतनी जांच होने लगेगी और भुगतान रोक दिया जाएगा, मजबूर होकर ठेकेदारों को 22 फीसद कमीषन देना ही पड़ता है। ठेकेदार को न तो विभाग छोड़ेगा और न माननीयगण। विभाग के लोग भी कहते हैं, कि भले ही आप जो भी कुछ करो, कितना ही बिलो क्यों न डालो, लेकिन कमीषन तो देना ही पड़ेगा और गुणवत्तापरक निर्माण भी करना होगा, यहां पर माननीयगण को गुणवत्तापरक निर्माण कार्य से कोई मतलब नहीं, उन्हें तो क्षेत्र में काम करने के लिए जजिया टैक्स चाहिए। अनेक ठेकेदारों का कहना और मानना है, कि माननीयगण अगर बिलो टेंडर पड़ने के मामले में एक्सईएन पर टेंडर निरस्त करने का दबाव बनाते तो सभी खुष होते और टेंडर निरस्त भी हो जाता, लेकिन अगर इस लिए दबाव बनाया जाएगा कि क्यों नहीं उनकी इच्छानुसार ठेकेदारों को ठेका मिला, तो बात नहीं बनेगी, बदनामी अलग से होगी। अपने ठेकेदारों का नुकसान अलग से होगा।
योगीजी ‘नौकरशाहों’ से ‘बचिए’ नहीं तो ‘डुबो’ देगें ‘नैया’
बस्ती। सत्ताधारी पार्टी में रहकर सीएम के क्रियाकलापों के खिलाफ बोलना किसी भी विधायक और एमएलसी के लिए आसान नहीं होता, लेकिन एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह उन नेताओं में से हैं, जिन्होंने हमेषा गलत चीजों का विरोध किया। चाहें मुलायम सिंह रहे हो या फिर चाहें योगीजी हो, इनपर कोई फर्क नहीं पड़ता। नियम विरुद्व और जनहित के खिलाफ काम करने वाले सरकारों पर यह अपनी आदत के मुताबिक निरंतर हमला बोलते रहें। गोरखपुर के मुख्यमंत्री और गोरखपुर के एमएलसी दोनों के विचारों में जमीन आसमान का अंतर है। अगर अंतर नहीं होता तो यह गोरखपुर में ही योगीजी के खिलाफ धरना-प्रदर्षन नहीं करते। कहते भी हैं, कि अगर हम गलत कामों का विरोध नहीं करेगें तो करेगा कौन? हम जनता के प्रतिनिधि है, और जनता ने हम्हें एमएलसी बनाया, किसी सरकार ने हम्हें एमएलसी नहीं बनाया, इस लिए हमारी पहली प्राथमिकता जनता के प्रति हैं, और हम जनता के प्रति पूरी तरह से निष्ठा रखते है। यह भी कहते हैं, कि मैं पिछले कई सालों से योगीजी को आगाह करता आ रहा हूं कि अफसर बेलगाम हो गए, जिसके चलते सरकार और आपकी बहुत बदनामी हो रही है, सरकार की छवि खराब हो रही है, लेकिन योगीजी सुनने को तैयार ही नहीं, इन्हें अपने जनप्रतिनिधियों से अधिक उन अफसरों पर भरोसा है, जो पूरे प्रदेष को लूट रहे हैं, लेकिन योगीजी को कुछ दिखाई ही नहीं देता, जो इनके अफसर कह देते हैं, उसी पर आंख बंद करके हस्ताक्षर कर देतें है। अफसरों की लापरवाही और मनमानी के चलते जनता अब तो जनप्रतिनिधियों को ही भला बुरा कह रही है, और कह रही है, कि जब आप लोग जनहित का कोई काम नहीं करा सकते तो इस्तीफा क्यों नहीं दे देतें? न जिले के और न राजधानी का कोई भी अधिकारी जनहित का काम नहीं कर रहा है। सब योगीजी का खास बनने के चक्कर में पूरे प्रदेष को ही डुबोने में लगें हुए है।
एक दिन पहले नेताजी ने फिर योगीजी को अफसरों की मनमानी को लेकर आगाह करते हुए पत्र लिया, और कहा कि नौकरषाही के मन में विधायिका के प्रति अनादर का भाव जोर पकड़ लिया है, विधायी संस्थाओं के प्रति उनके मन में आदर और सम्मान का भाव अब नहीं रहा। इसी लिए हाल के सालों में विभागाध्यक्ष समितियों की बैठक में आने से बचते रहे। अब यह लोग समिति की बैठक में न आना पड़े इस लिए समितियों को ही पंगु बनाने के उद्वेष्य से उपरोक्त पत्र संसदीय विभाग से जारी करवा दिया। कहा कि योगीजी, संसदीय जनतंत्र मे विधायिका और विधायी संस्थाओं की गरिमा अक्षुण्य बनाए रखना हम सबका का सामूहिक उत्तरदायित्व है, और विधायिका की गरिमा और षक्तियों तथा स्थापित संसदीय परम्पराओं को यथावत् बनाए रखने के लिए मेरी ओर से कुछ सुझाव दिए जा रहे है। अनेक उदाहरण देते हुए कहा कि उपरोक्त से स्पष्ट है, कि प्रमुख सचिव संसदीय कार्य विभाग के द्वारा लिखा पत्र संविधान की मंषा के विपरीत एवं सदन तथा माननीय सभापति एवं उनके द्वारा गठित समितियांे की षक्तियों में हस्तक्षेप करना एवं विषेषाधिकार का हनन तथा सदन एवं समितियों पर नियंत्रण करने की अनाधिकृत प्रयास है। कहा कि उक्त पत्र पर कठोरता पूर्वक निर्णय लेकर विधायिका को संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों की सर्वोच्चता को बनाए रखने के संबध में ऐसा आदेष पारित करे, जिससे भविष्य में इस प्रकार की पुनरावृत्ति कार्यपालिका न कर सके।
मैडम’, सचिव ‘जन्म’ प्रमाण-पत्र का ‘एक हजार’ मांग ‘रहें’!
बस्ती। कुछ दिन पहले महादेवा के एवं सरकार के सहयोगी ओमप्रकाष राजभर पार्टी के विधायक दूधराम ने खुले आम कहा था, कि जो काम पहले पांच सौ रुपये में होता था, वह अब हजार-पांच हजार में होने लगा, यह भी कहा था, कि कोैन कहता है, प्रदेष में रामराज है, कहा कि जब हर जगह भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार हैं, तो रामराज कहां। विधायकजी की बात उस समय सच साबित हुई, जब षहर के सटे ग्राम पंचायत लौकिहवा निवासी राकेष पुत्र बन्नर ने डीएम से षिकायत करते हुए कहा कि वह अपने पुत्र कृष्णा गौड़ के जन्म प्रमाण पत्र के लिए पिछले तीन माह से ग्राम पंचायत अधिकारी रविषंकर षुक्ल के पास जा रहा है, ही बार वह कहते हैं, कि जब तक एक हजार नहीं दोगें तब तक प्रमाण-पत्र नहीं बनेगा, कहा कि मैडम मैं गरीब आदमी ठेले पर सब्जी बेचता हूं, किसी तरह परिवार का भरण-पोषण हो रहा है, कहा कि मैडम अगर उसके पास एक हजार होता तो वह सचिव को दे भी देता, लेकिन उसके पास सब्जी खरीदने को पैसा नहीं तो सचिव को कहां से देगें। राकेष ने मैडम से हाथ जोड़कर कहा कि मैडम प्रमाण-पत्र दिलवा दीजिए, क्यों कि सचिव बिना एक हजार लिए प्रमाण-पत्र नहीं बनाएगे। कहा कि मैडम, एसडीएम साहब से भी आदेष करवा चूका हूं, लेकिन सचिव कहते हैं, कि उनके लिए एसडीएम के आदेष का कोई मतलब नहीं हम्हारे लिए तो एक हजार महत्वपूर्ण है।
आज खखुवा स्कूल में लगेगा रोजगार मेलाःवर्मा
बस्ती। क्षेत्रीय सेवायोजन कार्यालय/माडल कॅरियर सेन्टर एवं राजकीय उ० माध्यमिक विद्यालय खखुवा के संयुक्त तत्वावधान मंे एक दिवसीय रोजगार मेला का आयोजन 28 नवंबर 2025 पूर्वान्ह 10.30 बजे से राजकीय उ० मा० विद्यालय खखुवा बस्ती में किया जायेगा। उक्त जानकारी देते हुए जिला सेवायोजन अधिकारी अवधेन्द्र प्रताप वर्मा ने बताया कि जिसमे यह भर्ती क्विज क्राप लि. द्वारा एन.ए.पी.एस (राष्ट्रीय शिक्षुता संवर्धन योजना) के तहत कौशल्या (कमाएँ और सीखें) कार्यक्रम अपरेंटिस और मेक्ट्रोनिक्स में डिप्लोमा का मुफ्त पाठ्यक्रम के लिए भर्ती है। कंपनी में 3 वर्ष तक ट्रेनी के रूप में कार्य करने के बाद, प्रदर्शन के अनुसार आगे की प्रक्रिया की जाएगी। उन्होने बताया कि अभ्यर्थियों को उनके शैक्षिक योग्यता अनुसार श्रीराम पिस्टन एंड रिंगलिमटेड गाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश व टाटा मोटर्स लिमिटेड लखनऊ मे प्रशिक्षण/ट्रेनी कराया जायेगा। अभ्यर्थियों को प्रशिक्षण के दौरान इसटाइपेंड के रूप में लगभग 12000 रूपए प्राप्त होगा, शैक्षिक योग्यता न्यूनतम इंटर पास पुरुष/महिला अभ्यर्थी अपेक्षित है। कम्पनी के भर्ती अधिकारीगण इंटरव्यू के माध्यम से भर्ती करेंगे। आयु सीमा 18 से 35 वर्ष तक ही होनी चाहिए। उन्होने बताया कि इच्छुक अभ्यर्थी अपने बायोडाटा के साथ उक्त तिथि, स्थान एवं समय पर निःशुल्क प्रतिभाग कर सकते है।

