बिना ‘मां-बाप’ के ‘बन’ गए ‘1.33’ लाख ‘वोटर्स’


बिना ‘मां-बाप’ के ‘बन’ गए ‘1.33’ लाख ‘वोटर्स’

बस्ती। चौकिएं मत! इसे आप लोग दुनिया का आठंवा अजूबा भी कह सकते हैं, कि जिले में एम लाख 33 हजार से अधिक ऐसे वोटर्स हैं, जिनके मां-बाप का पता ही नहीं, यानि यह सभी बिना मां-बाप के वोटर्स बन गए। हैं, न हैरान और चौकाने वाली बात। जो लोग एसआईआर का विरोध कर रहे हैं, और कर रहे थे, और जिनकी समझ में एसआईआर का मतलब नहीं आ रहा था, अब उन्हें समझ में आ गया होगा, कि यह एसआईआर किसी विषेष वर्ग या फिर विरोधी पार्टी के मतदाताओं का नाम काटने के लिए नहीें बल्कि फर्जी मतदाताओं की छटनी करने के लिए कितना जरुरी था।


अगर एसआईआर नहीं हुआ होता तो बस्ती के लोगों को यह पता ही नहीं चलता कि उनके जिले में एक लाख 32 हजार 292 ऐसे मतदाता है, जिनके मां-बाप का पता ही नहीं, यानि यह सभी बिना मां-बाप के मतदाता बन गए, कैसे बन गए? और इनके माता-पिता कहां हैं? यह जानने और उन्हें बीएलओ के सामने प्रस्तुत करने के लिए मतदाताओं को नोटिस भेजी जा रही है, अगर इन लोगों ने अपने मां-बाप को प्रस्तुत नहीं किया तो सभी के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो सकता है। यह लोग एसआईआर से पहले तक वोट भी करते रहे। यह भी सही है, कि अगर एसआईआर न हुआ होता तो तीन लाख चार हजार 283 फर्जी मतदातओं का पता ही नहीं चलता। यह भी पता नहीं चलता कि 58352 मतदाता जीवित न होते हुए भी मतदान कर रहे थे। इस मामले में एसआईआर में लगे कर्मचारी और अधिक बधाई के पात्र है। इन लोगों के कार्यो की जितनी भी प्रसंषा की जाए कम होगा। पूरा प्रषासन बधाई का पात्र है।

एसआईआर ने एक तरह से जिले के मतदाताओं के बारे में सच बताने का काम किया। अब जरा अंदाजा लगाइए कि अभी तक जिले के 19 लाख से अधिक मतदाता वोट करते आ रहें, लेकिन एसआईआर के बाद अब 15 लाख 96 हजार से अधिक ही मतदाता वोट कर पाएगें। तीन लाख चार हजार 283 मतदाताओं पर व्यय हो रहे खर्चा भी बचेगा और प्रषासन के लिए चुनाव कराना भी आसान होगा। यही वह फर्जी मतदाता रहे, जिन्होंने किसी के हार और जीत में महत्वपूर्ण भूमिका अदा किया। जहां पर कुछ सौ और कुछ हजार पर हारजीत होता है, वहां पर तीन लाख फर्जी मतदाताओं का होना अपने आप में ही बड़ा सवाल खड़ा करता है। यह भी सही है, कि इन्हीं फर्जी वोटर्स के बल पर अनेक प्रत्याषी चुनाव जीतने की रणनीति बनाते रहें है। 16 फीसद से अधिक फर्जी मतदाताओं का जिले में होना बहुत बड़ा सवाल खड़ा करता है। बस्ती सदर विधानसभा में 20.55 फीसद फर्जी वोटर का मिलना हैरान करने वाला है। यही वह विधानसभा क्षेत्र हैं, जहां से भाजपा प्रत्याषी की हार मात्र 15-16 सौ वोटों से हुई थी। अगर इस विधानसभा में सबसे अधिक 75669 वोट फर्जी निकलता है, तो इसके लिए कौन जिम्मेदार? प्रत्याषी या फिर बीएलओ? जिन बीएलओ 75669 फर्जी वोटों को काटा उन्हीं बीएलओ ने फर्जी वोट बनाए भी होगें। इस आकड़े के बाद अब फर्जी वोटरों के सहारे चुनाव जीतने की रणनीति बनाने वालों को अपनी रणनीति बदलनी होगी।

जो आकड़े अभी तक सामने आएं हैं, वह काफी चौकाने और हैरान करने वाला है। सबसे अधिक हैरान और चौकाने वाले वे एक लाख 33 हजार का आकड़ा है,जो बिना मां-बा पके वोटर्स न जाने कैसे बन गए। इन सभी वोटर्स को मां-बाप को सामने लाने के लिए नोटिस जारी हो रही है, जो बिना मां-बाप के मतदाता बने हैं, उनमें सबसे अधिक सदर के 26989, हर्रैया के 26816, महादेवा के 26802, कप्तानगंज के 26106 एवं रुधौली विधानसभा में सबसे कम 25579 मतदाता हैं। यह सभी वोटर्स तो मिल गए, लेकिन इनके माता-पिता नहीं मिले। एक और आकड़ा रोचक रहा, पहले चरण में लगभग दो लाख मतदाता फर्जी मिले, अब यह आकड़ा बढ़कर तीन लाख चार हजार 283 हो गया। इनमें सबसे अधिक बस्ती सदर में 75669 कुल वोटर्स की संख्या का 20.55 फीसद, रुधौली में 65345 यानि 15.04 फीसद, हर्रैया में 58054 यानि 15.15 फीसद, महादेवा में 53034 यानि 14.68 एवं सबसे कम कप्तानगंज विधानसभा क्षेत्र में 52181 यानि कुल वोटर्स की संख्या का 14.34 फीसद है। 58352 वोटर्स ऐसे मिले, जिनका नाम तो मतदाता सूची में हैं, लेकिन वे मृत पाए गए, इनमें सबसे अधिक बस्ती सदर में 12531, रुधौली में 12097, हर्रैया में 11589, महादेवा में 11443 और कप्तानगंज विधानसभा क्षेत्र में सबसे कम 10692 है। कहा जाता है, कि सबसे अधिक फर्जी वोटर्स मदरसों दारुलउलूम और मस्जिदों में ही पाए गए, मदरसों और दारुलउलूम में पढ़ने वाले बच्चों को भी वोटर्स बना दिया गया था। यह वोटर्स किस पार्टी के हैं, यह लिखने की नहीं बल्कि समझने की बात है। 58365 वोटर्स तो मिले ही नहीं, इनमें सबसे अधिक बस्ती सदर में 23264, रुधौली में 13478, हर्रैया में 9072, महादेवा में 6869 और कप्तानगंज में सबसे कम 5682 मतदाता है। 149335 मतदाताओं के बारे में पता चला कि वह कहीं और षिफट कर गए, इनमें सबसे अधिक बस्ती सदर में 32847, हर्रैया में 30734, रुधौली में 30389, कप्तानगंज में 29389 और सबसे कम महादेवा में 25976 मतदाता है। 35998 ऐसे वोटर्स मिले जिनका नाम दो स्थानों पर है, यानि यह दो जगहों से वोट कर रहे थे, इनमें सबसे अधिक रुधौली में 8777, महादेवा में 8088, हर्रैया में 6495, बस्ती सदर में 6426 और सबसे कम कप्तानगंज में 6212 मतदाता। 2233 ऐसे मतदाता सामने आए जिनका पता ही नहीं चला, जिसे गैरहाजिर की श्रेणी में डाल दिया गया, इनमें सबसे अधिक महादेवा में 658, रुधौली में 604, बस्ती सदर में 601, कप्तानगंज में 206 और सबसे कम हर्रैया में 164 मतदाता। उक्त आकड़े घट और बढ़ भी सकते है। सही आकड़ा 30 दिसंबर के प्रकाषन के बाद पता चलेगा। यह आकड़ा 19 दिसंबर 25 के सुबह 10 बजे तक का है। अब 19 लाख 430 के स्थान पर 15 लाख 96 हजार 168 ही मतदाता 2027 में वोट कर पाएगें, यानि अगर एसआईआर नहीं हुआ होता तो तीन लाख चार हजार 283 फर्जी मतदाता वोट करते, अब लोगों की समझ में एसआईआर के महत्व का पता आ गया होगा।

आखिर ‘भाजपा’ के ‘करोड़ों’ वोट काटे ‘किसने’?

-सरकार भाजपा की मुख्यमंत्री भाजपा के कमिष्नर, डीएम और बीएलओ सरकार के फिर भाजपा के कट गए लगभग चार करोड़ वोटर्स

-अगर योगीजी की बात को सच मान लिया जाए तो इसका मतलब एसआईआर की प्रक्रिया पूरी तरह ईमानदारी से निभाई गई, क्यों कि एसआईआर से तो सबसे अधिक नुकसान बीजेपी को हुआ

-ऐसे में अगर सपा और कांग्रेस वाले यह कहते हैं, कि यह एसआईआर उनके वोटर्स का नाम काटने के लिए कराया जा रहा

-अगर योगीजी को लगता है, कि उनके सरकारी अमले ने भाजपा के वोट पर कैंची चलाई तो, क्यों नहीं कोई कार्रवाई हुई, हो सकता है, कि कार्रवाई एसआईआर के बाद हो, एसआईआर का भय काम कर गया

बस्ती। अगर भाजपा का कोई मुख्यमंत्री सार्वजनिक रुप से यह कहे, कि एसआईआर के चलते लगभग चार करोड़ में से 80-90 फीसदी वोट भाजपा का कटा तो बहुत बड़ी बात है, अगर योगीजी जैसा सीएम कहते हैं, तो यह माना जाता है, कि एसआईआर की प्रक्रिया पूरी तरह निष्पक्ष और पारदर्षी तरीके से निभाई गई, नहीं तो किसी भी डीएम की इतनी हिम्मत नही की वह भाजपा के वोटर्स का नाम मतदाता सूची से कटवा दें। सवाल यह भी उठ रहा कि सरकार भाजपा की सीएम भाजपा के अधिकारी और बीएलओ भाजपा के माने जाते हैं, तो कैसे भाजपा के करोड़ों वोटर्स का नाम कट गया? सपा और कांग्रेस जिस तरह संसद से लेकर सड़क तक एसआईआर का यह कहकर विरोध कर रहे हैं, कि यह एसआईआर सिर्फ हम लोगों के वोटर्स का नाम काटने के लिए कराया जा रहा, में कितनी सच्चाई हैं, इसका पता यूपी के मुख्यमंत्री के बयान से चलता है। देखा जाए तो इस एसआईआर से सबसे अधिक नुकसान यूपी में भाजपा को हुआ, और इसका प्रभाव 2027 में दिखाई भी पड़ सकता है। एक भी पार्टी के नेता ने अभी तक योगीजी के उस बयान का विरोध नहीं किया, जिसमें योगीजी ने कहा है, कि एसआईआर से सबसे अधिक नुकसान भाजपा को हुआ, क्यों कि काटे गए चार करोड़ वोटर्स में 80 से 90 फीसद वोटर्स भाजपा के रहे। जिस तरह एसआईआर से पहले प्रदेष में यह हौवा खड़ा किया गया, कि एसआईआर के जरिए भाजपा, विरोधी पार्टियों का वोट काटने की साजिष कर रही है। सवाल उठ रहा है, कि जिले में कांग्रेस को छोड़कर सपा ने प्रत्येक बूथ पर अपने लोगों को बीएलओ के साथ लगा रखा था तो कैसे उनके लोगों का वोट कटा? अब सवाल उठ रहा है, कि योगीजी भाजपा का करोड़ों वोट काटने वाले डीएम और बीएलओ को कौन सी सजा देगें? पुरस्कार देगें या फिर दंड, इसका पता एसआईआर के बाद ही चलेगा। यह भी सही है, कि योगीजी 75 जिलों के डीएम के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकते? क्यों कि सभी जिलों में फर्जी वोट काटे गए, अब भाजपा का वोट किस जिले में सबसे अधिक काटे गए, यह किसी को भी पता नहीं चल सकता, क्यों कि यह कोई सरकारी आकड़ा नहीं हैं, बल्कि बयानबाजी है। खास बात यह है, कि इतनी बड़ी संख्या फर्जी वोट कटे। इसका फायदा और नुकसान किस पार्टी को होगा वह अलग बात है। यही वोट 2027 के चुनाव में निर्णायक साबित हो सकता है, बकौल योगीजी इससे नुकसान तो भाजपा को ही सबसे अधिक होगा। एक सवाल यह भी उठ रहा है, कि क्या भाजपा को यह नहीं मालूम था, कि एसआईआर से यूपी में सबसे अधिक नुकसान उनकी पार्टी को ही होगा, इससे पता चलता है, कि एसआईआर करवाने का निर्णय भाजपा का नहीं बल्कि निर्वाचन आयोग का है। एसआईआर कितना जरुरी था, इसका एहसास जिले के लोगों को उस समय हुआ, जब उन्हें पता चला कि उनके जिले में तीन लाख से अधिक फर्जी वोटर्स का नाम काटा गया, इन तीन लाख में से यह कोई भी पार्टी नहीं कह सकती है, उसका कितना वोट कटा, कहने को तो योगीजी भी कहते हैं, लेकिन उन्हें भी अच्छी तरह मालूम नहीं होगा कि उनका कितना कटा और विरोधी का कितना कटा। चूंकि यह कोई सरकारी आकड़ा नहीं हैं, इस लिए इसे सही नहीं कहा जा सकता है। बयानबाजी जो भी कर ले, लेकिन सच तो यही है, तीन लाख फर्जी वोट जिले में काटे गए। यह सच किसी के बयान से झूठा साबित नहीं हो सकता है, क्यों कि यह सरकारी आकड़ा है।

आखिर ‘क्यों’ नहीं एक होकर ‘पत्रकार’ आवाज ‘उठाते’?

बस्ती। बार-बार सवाल उठ रहा है, कि आखिर उत्पीड़न के खिलाफ पत्रकार एक होकर क्यों नहीं आवाज उठाते? क्यों यह सोचते हैं, यह पत्रकार उसके संगठन या फिर उसके गोल का नहीं है? पत्रकार भाइर्यों को यह नहीं भूलना चाहिए कि समाज हन्हें देख रहा है। वैसे भी एक पत्रकार की जो छवि समाज में होनी चाहिए वह नहीं बन पा रही है, ऐसे में अगर अलग-अलग गुटों में बंटे रहेगें तो और भी छवि खराब होगी। कम से कम ऐसे मौके पर तो एकजुटता दिखानी ही चाहिए, जहां पर पत्रकारों के मान और सम्मान की बात होती है। ऐसे मौके पर किसी को यह नहीं देखना चाहिए कि वह हमारे संगठन का हैं, कि नहीं है। क्यों कि अधिकांष समाज के लोगों को यह नहीं मालूम रहता कि पत्रकार भी अलग-अलग गुट के होते है। यहां पर बात सिर्फ सोहन सिंह की नहीं हैं, बल्कि उस बिरादरी की है, जिसे लोग पत्रकार बिरादरी के नाम से जानते हैं, व्यक्ति के रुप में सोहन सिंह बुरा और खराब हो सकते हैं, लेकिन पत्रकार के रुप में नहीं हो सकते। बात अगर खबर को लेकर किसी पत्रकार का उत्पीड़न कोई करता है, तो इसके लिए सभी को एकजुट होकर उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। आप लोगों को जानकर हैरानी होगी कि पत्रकारों से अधिक विभिन्न वगों के लोगों ने संजय चौधरी के द्वारा लिखाए गए एफआईआर को लेकर निंदा किया गया, और कहा कि ऐसे मौके पर सभी पत्रकारों को एक होकर संजय चौधरी को उनकी ही भाषा में जबाव देना चाहिए। लेकिन यहां पर तो जबाव देने को कौन अधिकांष पत्रकारों ने फोन से यह तक नहीं कहा कि हम आप के साथ है। जिन्हें अपना कहा जाता है, उन्हीं लोगों के द्वारा पत्रकारों को सबसे अधिक पीड़ा पहुंचती है। पत्रकारिता के साथ-साथ लोग व्यक्तिगत संबध भी भूलते जा रहे है। इस एक घटना ने कई लोगों के चेहरे सामने आ गए, जो लोग साथ में उठते बैठते और एक दूसरे के काम आते थे, उनमें कईयों ने तो यहां तक कहा कि अच्छा हुआ फंस गया, बहुत उड़ता था। यह भी सही है, कि सोहन सिंह की पत्रकारिता में इससे अधिक गंभीर मामले सामने आए, लेकिन उनका सामना किया, भले ही अपने कहे जाने वाले पत्रकार साथियों ने मदद नहीं किया हो। वैसे भी कुल मिलाकर अंत में लड़ाई तो अकेले पत्रकार को ही लड़नी पड़ती है। समाज को हसंने का मौका मत दीजिए। कम से कम अगर कोई पत्रकार किसी पत्रकार की मदद नहीं कर सकता तो कम से कम उसके जख्मों पर नमक तो मत डालिए। यह भी सही है, कि अगर कोई पत्रकार अपना काम ईमानदारी से करना चाहता है, तो उसके रास्ते में संजय चौधरी जैसे न जाने कितने लोग बार-बार आएगें। बार-बार मैं कहता हूं कि अगर खबर को लेकर कोई भी व्यक्ति पत्रकार पर हमला करता है, तो इसका जबाव सभी को मिलकर देना चाहिए। समाज को भी लगना चाहिए कि पत्रकारों में एकता है। कोई जरुरी नहीं कि धरना-प्रदर्षन और जूलूस के जरिए विरोध जताया जाए या फिर पीड़ित पत्रकार का सहयोग किया जाए, कहने का मतलब जो भी तरीका हो उसी स्तर पर गलत लोगों का विरोध करना चाहिए। नहीं करेगें तो समाज हम लोगों का मजाक उड़ाएगा। विरोध भी ऐसा हो जो पूरे समाज को दिखे। आवष्यकता हम लोगों को आज समाज में मजबूत होने की है। अगर मजबूत नहीं होगें तो हर कोई आरोप प्रत्यारोप और एफआईआर दर्ज कराएगा। यह भी सही है, कि पत्रकारों को कोई सच्चा हित नहीं होता, खासतौर पर संजय चौधरी जैसे लोग, जो इतने बड़े पद पर रहते हुए झूठ का सहारा लेकर एफआईआर दर्ज करवाया।

‘मौत’ को ‘दावत’ दे रही बस्ती-महुली ‘मार्ग’

-सड़क के दोनों ओर सफेद पटटी न लगने से हो रही दुर्घनाएं, कोई अस्पताल पहुंच रहा है, तो कोई पोस्ट मार्टन हाउस

-लालगंज के एसआई इंद्रेश यादव कहतें कि सबसे बड़ी समस्या हम लोगों को हो रही, रात में चलना जान जोखिम से भरा रहता है, कोहरा होने की वजह से सामने दिखाई ही नहीं पड़ता, कहते हैं, कि बीस दिन नौकरी बची है हम तो किसी तरह काट ले गए

बनकटी/बस्ती। अगर किसी को अस्पताल या फिर पोस्ट मार्टम हाउस पहुंचना है, तो वह बस्ती से महुली मार्ग पर सफर करके देख लें। करोड़ों की तो सड़क बन गई, लेकिन आवागमन करने वालों की सुरक्षा का कोई प्रबंध नहीं किया, जिसके चलते इस मार्ग पर आए दिन दुर्घनाएं हो रही, कोई अस्पताल पहुंच रहा है, तो कोई पोस्ट मार्टम हाउस पहुंच रहा। नियमानुसार सड़क के दोनों ओर सफेद पटटी लगनी चाहिए, ताकि लोगों को सड़के होने का पता चल सके। बस्ती से महुली मार्ग पर एक भी स्थानों पर स्कूल हैं, का चिन्हृ नहीं बनाया गया। पीडब्लूडी की यह सड़क लोगों के काल बनती जा रही है, ठंडक और कोरे के कारण सड़क का पता ही चलता, जबकि पटटी लगानी चाहिए।


लेकिन अभी तक सफेद पट्टियां नहीं लगीं है। जो यातायात को नियंत्रित करने व लेन को विभाजित करने और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण होती हैं। यह पट्टी ड्राइवर को भ्रमित होने से भी बचाती हैं और कम रोशनी में भी दृश्यता बढ़ाती हैं। जिसकी वजह से आए दिन दुर्घटनाएं आम बात हो गयी है। अभी दो दिन पहले रात्रि में देईसाड से अपने घर वापस आ रहा इकलौता लड़का जो मुन्डेरवा थाना क्षेत्र के कड़सरी गांव का निवासी था टाले के चपेट में आ गया जिसकी मौके पर ही मौत हो गई। पिता का दो साल पहले ही स्वर्गवास हो गया माँ कैसर से पीड़ित विधवा महिला का रो-रो कर बुरा हाल है। इस प्रकार से आए दिन इस सड़क पर कही न कहीं अप्रिय घटनाएं घटित हो रही हैं। थाना लालगंज के एसआई इंद्रेश यादव ने कहा कि सबसे बड़ी समस्या हम लोगों को हो रही है। रात में चलना जान जोखिम से भरा रहता है, कोहरा होने की वजह से सामने दिखाई ही नहीं पड़ता, कहते हैं, कि बीस दिन नौकरी बची है हम तो किसी तरह काट ले गए हैं। लेकिन औरों के लिए आए दिन बड़ी समस्या बनेगी इसी रोड पर बने बनकटी ब्लाक पर 85 गांव के प्रधान बीडीसी कोटेदार असली नकली ब्लॉक प्रमुख थाना, बैंक, इंटर कॉलेज, अस्पताल, के अलावा हजारों लोगों का हर रोज आना जाना होता है।


 

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