भ्रष्टाचार’ में ‘बहादुरपुर’ बना नंबर वन ‘ब्लॉक’

 ‘भ्रष्टाचार’ में ‘बहादुरपुर’ बना नंबर वन ‘ब्लॉक’

बस्ती। जिस बहादुरपुर ब्लॉक को तीन-तीन नकली प्रमुख संचालन करेगें उस ब्लॉक को नंबर वन बनने से कौन रोक पाएगा? कभी नंबर वन का खिताब एक और नकली प्रमुख वाले ब्लॉक बनकटी के नाम रहा। इस ब्लॉक ने मनरेगा में 24-25 में 56 करोड़ से अधिक खर्च कर पूरे देष में एक नया रिकार्ड बनाया था, इस बार यह रिकार्ड नकली प्रमुखों से भरमार बहादुरपुर 25-26 में बनाने जा रहा है। 17 दिसंबर 25 तक यह ब्लॉक मनरेगा में 25.95 करोड़ खर्च कर चुका, इसमें 17.28 करोड़ अकुषल श्रमिकों पर, एक करोड़ 31 लाख कुषल श्रमिकों पर और छह करोड़ 55 लाख मटेरिएल पर खर्च किया। इस ब्लॉक में 24-25 में 41.43 करोड़ और 25-26 सहित कुल लगभग 68 करोड़ खर्च हो चुका, लेकिन जानकर हैरानी होगी कि एक भी ग्राम पंचायत माडल नहीं बना, यानि जो 68 करोड़ खर्च हुआ, अगर उसमें से 50 फीसद भी ग्राम पंचायतों के विकास पर खर्च कर दिया होता तो ब्लॉक के आधे से अधिक ग्राम पंचायतें माडल बन गई होती। जिन लोगों का मकसद ही भ्रष्टाचार कर अधिक से अधिक धन कमाने का रहता है, वह विकास और समाज के बारे में नहीं सोच सकता। यह ऐसे लोग जो सिर्फ किसी और के नाम पर पैसा कमाना जानते हैं, यही लोग हैं, जिन्होंने हरीष द्विवेदी हरा दिया। अगर यह लोग भ्रष्टाचार न करते तो कोई हरा नहीं सकता था, वैसे भी कहा जाता है, कि जिस टीम में केके दूबे जैसे खिलाड़ी होते हैं, उस टीम का मुखिया कभी जीत ही नहीं सकता। टीम के मुखिया को तीनों नकली प्रमुखों से क्या मिला उसे किसी ने नहीं देखा, लेकिन जो गंवाया उसे सभी ने देखा।

मनरेगा में बनकटी का नंबर दो पर पीेछे रहना चिंता और चर्चा का विषय है। पहली बार यह ब्लॉक नंबर दो आया, इससे पहले अब तक नंबर व नही रहा। कहां यह ब्लॉक 24-25 में 56.29 करोड़ खर्च किया था, कहां यह ब्लॉक अब तक मात्र 23.57 करोड़ में ही आकर सिमट गया। यह ब्लॉक भी दो साल में 80 करोड़ खर्च करके एक भी ग्राम पंचायत को माडल नहीं बना पाया। इस ब्लॉक की असली प्रमुख को क्या मिला? उसे अभी तक लोगों ने नहीं देखा। अब तीसरे नंबर पर रहने वाले नकली प्रमुख वाले ब्लॉक परसरामपुर का हाल जान लीजिए। ताज्जुब होता है, जिस ब्लॉक ने 24-25 में लगभग 50 करोड़ खर्च किया, वह ब्लॉक 23.33 करोड़ पर आ गया। दोनों सालों का मिला दिया जाए तो लगभग 73 करोड़ खर्च और एक भी ग्राम पंचायत माडल नहीं बन पाया। कुदरहा जो कभी नंबर वन हुआ था, वह अब चौथे स्थान पर आ गया। 24-25 में 43 करोड़ से अधिक खर्च करने वाले इस असली प्रमुख वाले ब्लॉक का स्तर इतना नीचे गिर जाएगा, किसी ने सोचा भी नहीं था। यह ब्लॉक मात्र 21.92 करोड़ पर सिमट गया। 62 करोड़ खर्च करने वाले इस ब्लॉक भी एक भी ग्राम पंचायत माडल नहीं बन पाया। पांचवें स्थान पर एक और नकली प्रमुख वाला ब्लॉक हर्रैया है। पिछले साल 35 करोड़ खर्च किया था, और इस साल 19.12 करोड़। कुल 54 करोड़ खर्च किया फिर भी एक भी गांव को माडल नहीं बना पाए। यही हाल छठें स्थान पर रहने वाले नकली प्रमुख वाले ब्लॉक गौर का भी है। 24-25 में 38.36 करोड़ और 25-26 में 16.81 करोड़, कुल 55 करोड़, फिर भी गांव माडल नहीं बना। सातवें स्थान पर रहने वाले नकली प्रमुख वाला ब्लॉक कप्तानंगज की भी यही कहानी है। 24-25 में 25.86 करोड़ ओर 25-26 में 16.29 करोड़ कुल 42 करोड़, फिर भी नहीं बना एक भी गांव माडल। सबसे खराब हालत असली प्रमुख वाले ब्लॉकों की है। यह असली होकर भी वह नहीं कर पा रहे हैं, जो नकली प्रमुख कर दे रहें है। पैसा भी सबसे अधिक नकली प्रमुखों ने ही कमाया। फिर असली होने से क्या लाभ? असली वालों का पैसा न कमा पाने का कारण असली प्रमुख होना, इन्हें हमेषा इस बात का डर रहता है, कि बदनामी तो उन्हीं की होगी, और अगले चुनाव में हो सकता है, फिर से जनता के पास जाना पड़े। इन्हें लोकलाज और समाज का भी डर रहता है, कार्रवाई होने का भी इन्हें खतरा रहता है। अगर इन्हें डर न होता तो सदर ब्लॉक मात्र 7.77 करोड़ खर्च करके 14वें यानि अंतिम स्थान पर नहीं रहते। यही हाल साउंघाट का भी है। 8.09 करोड़ खर्च किया। रुधौली 14.17 करोड़ के साथ नौवें स्थान, रामनगर 12.28 करोड़ खर्च करके 10वें स्थान पर है। सल्टौआ ने 10.86 करोड़ खर्च किया। रही बात नकली प्रमुखों की तो इन्हें न तो समाज और न बदनामी का डर, चुनाव में भी इन्हें नहीं जाना रहता। इसी लिए यह लोग बेखौफ होकर भ्रष्टाचार करते है।

तो ‘क्या’ ‘बोगस’ फर्म गणपति फार्मा ने ‘रची’ ‘साजिश’?

बस्ती। सवाल उठ रहा है, कि जब बीसीडीए के अध्यक्ष और उनकी पत्नी की फर्म सहित अन्य फर्मो ने तथा कथित फर्म गणपति फार्मा को लाखों षीषी कोडीनयुक्त सीरप बिल से बेचा और गणपति ने भुगतान भी फर्मो के खाते में किया, तो फिर दोषी कौन? बेचने वाला या फिर खरीदने वाला? कोडीन बेचने वाली फर्मो का कहना है, कि जो भी गड़बड़ी हुई, वह गणपति फार्मा की ओर से हुई। पुलिस को जिस दिन गणपति फार्मा के मालिक मिल जाएगें, उस दिन सच सामने आ जाएगा। यह भी कहते हैं, कि गणपति फार्मा वाले जो भी सीरप ले जाते थे, वे होलसेल के दुकानों से ही ले जाते थे, एक भी षीषी की डिलीवरी होलसेल के द्वारा गणपति फार्मा को टांसपोर्ट के माध्यम से नहीं की गई। यह भी एक साजिष का हिस्सा हो सकता है। होलसेलर्स यह कहकर पल्ला झाड़ ले रहे हैं, कि हमने माल बेचा और हम्हें एकाउंट के जरिए गणपति फार्मा ने भुगतान किया, अब सीरप कहां गया कौन ले गया, यह हम लोगों को नहीं मालूम, और न हम लोग जानना ही चाहते है। यह भी कहते हैं, कि गणपति को लाइसेंस किसने दिया और कैसे मिला यह भी उन लोगों को नहीं मालूम, यह विषय डीएलए और डीआई का है। डीआई ने बिना मौका मुआयना किए लाइसेंस कैसे दे दिया? यह डीएलए और डीआई ही बता पाएगें, हम लोगों को इतना मालूम हैं, कि हम लोगों ने सीरप गणपति फार्मा को बेचा, और गणपति फार्मा ने हम लोगों को आन एकाउंट भुगतान किया, एक रुपये का भुगतान नकद नहीं लिया गया। कहा कि आजमगढ़ भी जो बेचा गया, उसका भी भुगतान फर्म ने एकाउंट के जरिए किया, कहते हैं, कि खरीद फरोख्त से संबधित जो भी कागजात थे, उसे एसआईटी को उपलब्ध करा दिया गया। इन लोगों की माने तो गलती गणपति फार्मा और विभाग की है। यह भी कहते हैं, कि अगर सौ षीषी भी टांसपोर्ट से जाता तो गणपति फर्म के होने या न होने का पता चल जाता है। चूंकि सारा माल गणपति फर्म वाले दुकान से लेकर गए, इस लिए फर्म के बोगस होने की जानकारी उन्हें नहीं हो सकी। जब इन लोगों से यह पूछा गया कि जब आप लोगों की ओर से कोई गलती नहीं तो आप लोगों का लाइसेंस निरस्त क्यों हुआ? कहने लगे कि औषधि विभाग वाले जल्दबाजी में अपने को बचाने के लिए हम लोगों के खिलाफ आनन-फानन में नियम विरुद्व कार्रवाई कर दिया, यह भी कहते हैं, कि हम लोग लाइसेंस की बहाली के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएगें। यह लोग जोर देकर कहते है, कि कोई भी कारोबार कागजों में नहीं बल्कि माल टांसपोर्ट के जरिए विभिन्न फमों को आया, जिसका उन लोगों के पास रिकार्ड भी है। बार-बार यह सवाल उठ रहा है, कि क्या गणपति इतने बड़े खेल में अकेला है, या फिर और कोई भी हैं? एसआईटी को उपलब्ध कराए गए दस्तावेज से तो यही पता चलता है, कि सारी गड़बड़ी गणपति फर्म के पंकज ने किया। सबसे बड़ा सवाल तो डीएलए और डीआई पर उठ रहा है, कि यह कारोबार पिछले दो सालों से बस्ती में हो रहा है, और इन्हें पता ही नहीं चला, पता तब चला जब लखनउ वालों ने कार्रवाई को कहा। अगर लखनउ वाले नहीं कहते तो नषे का यह कारोबार न जाने कितने महीनों और सालों तक चलता रहता, और न जाने कितने परिवार बर्बाद होते रहते। बहरहाल, अभी भी कई सवालों के जबाव आना बाकी है। अभी तो इसके सरगना का चेहरा सामने आना है। लाइसेंस का निरस्त होना, कहीं न कहीं किसी ओर ईषारा करता है, अगर डीएलए और डीआई ने अपने बचने के लिए गलत कार्रवाई किया, तो विभाग को हाईकोर्ट में इसका जबाव देना पड़ेगा। यह भी साफ हो गया कि अब लाइसेंस की बहाली हाईकोर्ट के जरिए ही होगी। अभी तो पूरे विभाग की किरकीरी समाज में ही हो रही है, लेकिन जैसे ही यह मामला हाईकोर्ट पहुंचेगा, वैसे ही न जाने इसकी चपेट में कितने अधिकारी आएगें।

काश, ‘अरविंद पाल’ जैसा दिल ‘केके दूबे’ के ‘पास’ भी ‘होता’

बस्ती। जिले में अनेक ऐसे नकली प्रमुख और चेयरमैन है, जिन्होंने असली के नाम पर पैसा और सम्मान दोनों कमाया, लेकिन इन्होंने जिसके नाम पर पैसा और नाम कमाया, उसके लिए कुछ नहीं किया, वहीं पर ऐसे भी हैं, जिन्हें यह एहसास रहा कि उन्हें भी उनके लिए कुछ करना चाहिए, जिनकी बदौलत नाम और पैसा मिला। इसी में से एक हैं, नगर पंचायत बनकटी के अरविंद पाल, प्रदेष के षायद यह पहले ऐसे भाजपा नेता होगें, जिन्होंने नगर पंचायत बनकटी की महिला चेयरमैन के लिए लखनउ जैसे मंहगे षहर में नया मकान बनवा दिया। इन्होंने महिला चेयरमैन का पूरा मान और सम्मान का ख्याल रखा। वहीं पर बहादुरपुर के असली प्रमुख रामकुमार के नाम पर केके दूबे जैसे दो और लोग लूटकर तिजोरी भर लिया, लेकिन असली प्रमुख के मान और सम्मान का जरा भी ख्याल नहीं रखा। कहते हैं, कि आज भी असली प्रमुख, नकली प्रमुख के घर में चाकरी कर रहे हैं, पक्का मकान कौन कहे, झोपड़ी तक बनवा कर नहीं दिया। तीनों नकली प्रमुखों ने करोड़ों की संपत्ति बना लिया, लेकिन असली प्रमुख के लिए एक अदद कमरा तक नहीं बनवा सके, वहीं पर नगर पंचायत बनकटी की चेयरमैन के नाम अरविंद पाल ने लखनउ जैसे बड़े षहर में मकान बनवा दिया। पैसा और नाम तो दोनों ने असली के नाम पर ही कमाया, लेकिन जिम्मेदारी अरविंद पाल ने निभाया। यही जिम्मेदारी अगर अन्य नकली प्रमुख और नगर पंचायत चेयरमैन उठा लेते तो कम से कम असली लोगों को सम्मान जनक तरीके से जीवन बिताने का मौका तो मिल जाता। इस मामले में अरविंद पाल की जितनी भी प्रसंषा की जाए कम हैं,


बहुत कम ऐसे लोग होते हैं, जो अरविंद पाल जैसा सोच रखते है। वैसे भी यह भाजपा के ‘सबका साथ और सबका विकास’ के नारे के साथ चलते है। बाबू साहब और पंडितजी में षायद यही फर्क है। अरविंद पाल और केके दूबे दोनों को पूर्व सांसद का करीबी माना जाता है, पंडितजी ने पैसा कमाकर पूर्व सांसद का न सिर्फ नाम खराब किया, बल्कि उन्हें हरवाया भी। दूसरे ने विकास करके पूर्व सांसद के नाम को रोषन किया। अगर ऐसा नहीं होता तो दो दिन पहले बनकटी के एक कार्यक्रम में पूर्व सांसद हरीष द्विवेदी अरविंद पाल को बनकटी का विकास पुत्र नहीं कहते। बहुत कम ऐसे हैं, जो अरविंद पाल की तरह सोच रखते हैं, वरना अधिकांष तो गला काटने में भी परहेज नहीं करते। क्षेत्र की जनता अरविंद पाल को बहुत आगे देखना चाहती है। जिस नेता का काम दिखे उसे ही जनता नेता मानती है। जो मान-सम्मान अरविंद पाल को मिला, वह बहुत कम लोगों को मिला। हर क्षेत्र में इनका बढ़चढ़कर हिस्सा लेना और उसे व्यापक बनाना अगर किसी को सीखना हो तो उसे अरविंद पाल से सीखना चाहिए। अब जरा अंदाजा लगाइए कि असली प्रमुख होने के बाद भी अगर कोई एक कमरे के लिए तरसे और दूसरा नकली होने के बाद भी तिजोरी भरे, तो क्या जनता ऐसे लोगों को मान-सम्मान देगी?

‘ठंडक’ में ‘सुबह’ के ‘तनाव’ से ‘बचे’, नहीं तो ‘फट’ जाएगी ‘नसें’

-ठंडी हवा, धूप की कमी, रजाई में दुबके रहने से और कम शारीरिक श्रम के कारण ठण्ड में बीमार होने का खतरा बढ़ताः डा. वी.के. वर्मा

बस्ती। ठंडक में लोगों को सुबह के समय तनाव से बचना चाहिए, नहीं तो नष के फटने की संभावना अधिक रहती है। यह कहना है, जिला चिकित्सालय में आयुष चिकित्साधिकारी एवं वरिष्ठ समाजसेवी तथा कई शैक्षणिक संस्थानों के संस्थापक साहित्यिक कवि ख्याति लब्ध तमाम पुरस्कारों से पुरस्कृत डा.वी.के. वर्मा का कहना है। ठण्ड के मौसम पर हुई बातचीत में उन्होंने तमाम सावधानियां तथा ठण्डक में रोजमर्रा के आहार से सुरक्षित रहने के उपाय साझा करते हुए कहते हैं, कि सर्दि‍यों के मौसम में कमजोर इम्‍यूनि‍टी का खतरा बना रहता है। जैसे-जैसे दिसंबर में तापमान गिरिता है, वायरल इंफेक्‍शन, फ्लू, सर्दी-जुकाम और थकान जैसी समस्‍याएं बढ़ने लगती हैं। ठण्डी हवा, धूप की कमी, ज्‍यादातर समय रजई में दुबके रहने से और कम शारीर‍िक गत‍िव‍िध‍यों के कारण ठण्ड में बीमार होने का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में कुछ आसान उपायों की मदद से दि‍संबर की हाड़ कंपकपाती ठण्ड और कमजोर प्रतिरोधी क्षमता से बचा सकता है।


कहते हैं, कि विटामिन-डी के लिए प्रतिदिन सुबह 15 से 20 मिनट धूप में बैठना चाहिए, इससे प्रतिरोधी कोशिकाएं सक्रिय बनी रहती हैं। अदरक, हल्दी, लहसुन और आंवला जैसे खाद्य पदार्थों से प्रतिरक्षा बढ़ाएं, भरपूर पानी (गर्म पानी भी) पिएं, तिल का तेल और गुड़ का सेवन करें, भोजन दिन में दो बार तक सीमित करें, और हल्के शारीरिक व्यायाम करते रहें, साथ ही पर्याप्त नींद लें और हाथों की सफाई पर ध्यान दें, ताकि ठण्ड में बीमारियों से बच सकें एवं ऊर्जावान बने रहा जा सके। विटामिन-सी के लिए भरपूर फलों का सेवन करें फल खाने से सर्दी-खांसी होने की संभावना कम होती है, लेकि‍न रात को खट्टे फल खाने से बचें।

आहार और पोषण सुबह की गुनगुनी धूप लें अदरक, लहसुन, हल्दी और आंवला अपने खाने में शामिल करें, खूब पानी पिएं या गर्म नींबू पानी से दिन की शुरुआत करें गाजर, संतरा और अन्य मौसमी फल-सब्जियां खाएं भोजन पश्चात तिल चबाएं और खाड(गुड़) खाएं घर के बने तिल के लड्डू खाएं। खीर, पूड़ी, राजमा, पनीर जैसे भारी भोजन दिन में दो बार तक सीमित रखें, सर्दि‍यों में शरीर को स्‍वस्थ रखने के लिए आंवला का सेवन करें, आंवला में विटामिन-सी एवं एंटी-ऑक्‍सीडेंट्स जैसे गुण पाए जाते हैं। यह शरीर को वायरल इंफेक्‍शन, फ्री-रेड‍िकल डैमेज और मौसमी बीमारियों से बचाने में मदद करता है। सुबह खाली पेट आंवला खाना बहुत असरदार माना जाता है। यदि आहार एवं विहार दिनचर्या में शामिल करेंगे तो शरीर चुस्त रहेगा किसी भी स्वास्थ्य संबंधी समस्या आती है तो नजदीकी योग्य चिकित्सक से परामर्श लेकर तुरंत उपचार लेना आवश्यक है।

कहते हैं, कि ठण्ड में खून गाढ़ा और चिपचिपा हो जाता है, जिससे रक्त वाहिकाओं में थक्के जम जाते हैं। जब खून इन वाहिकाओं से होकर नहीं गुजर पाता, तो स्ट्रोक और लकवा जैसी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। सूर्योदय के बाद सुबह में जरा संभलकर रहें और हर छोटी-बड़ी बात पर तनाव न लें। वरना सुबह का तनाव मस्तिष्क पर भारी पड़ सकता है और जिसके चलते दबाव में दिमाग की नसें फट सकती हैं। सुबह छह बजे से लेकर दोपहर 12 बजे तक का वक्त बेहद संवेदनशील होता है। इस वक्त ही पक्षाघात का अटैक अधिक होता है। इस समयावधि में ही मरीज पक्षाघात से पीड़ित होते हैं। इस अवधि के दौरान पक्षाघात सेहत के लिए अधिक घातक साबित होता है।

‘वोट’ चोर गद्दी-छोड़,‘कांग्रेस’ नेताओं का उग्र ‘प्रदर्शन’, भाजपा कार्यालय ‘घेरने’ की ‘कोशिश’

-ई.डी., सीबीआई जैसी संस्थाओं का दुरूपयोग कर रही है भाजपाःविश्वनाथ चौधरी

बस्ती। प्रदेश नेतृत्व के आवाहन पर कांग्रेस नेताओं, कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस जिलाध्यक्ष विश्वनाथ चौधरी के नेतृत्व में उग्र प्रदर्शन किया। कडाके की ठंड, शीतलहर के बीच कांग्रेस नेता शास्त्री चौक पर एकत्र हुये और भारतीय जनता पार्टी कार्यालय घेर कर प्रदर्शन करने के उद्देश्य से सरकार विरोधी नारा लगाते हुये आगे बढे। भारी पुलिस बल ने कांग्रेस नेताओं को शास्त्री चौक पर ही रोक लेने का प्रयास किया किन्तु कांग्रेस नेता दीवानी कचहरी गेट के निकट तक पहुंचे जहां से उन्हें भारतीय जनता पार्टी कार्यालय तक नहीं जाने दिया गया।


कांग्रेस जिलाध्यक्ष विश्वनाथ चौधरी ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी ई.डी., सीबीआई जैसी संस्थाओं का दुरूपयोग कर लोकतंत्र को तानाशाही की ओर ले जा रही है किन्तु कांग्रेस इसे पूरा नहीं होने देगी। कहा कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्किलार्जुन खरगे, नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के साथ ही समूची कांग्रेस वोट चोर गद्दी-छोड़, ई.डी., सीबीआई के दुरूपयोंग का संदेश गांव- गांव तक पहुंचा रही है। नेशनल हेरल्ड मामले में जिस प्रकार से श्रीमती सोनिया गांधी, राहुल गांधी के साथ ही अनेक नेताओं को फर्जी मनगढन्त मामलों में फंसाने का दुष्चक्र रचा गया। आदलत के आदेश ने सिद्ध कर दिया है कि सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं।

पूर्व विधायक अम्बिका सिंह, ज्ञानेन्द्र पाण्डेय ‘ज्ञानू’, अनिल भारती, डा. वाहिद अली सिद्दीकी, शौकत अली नन्हू, संदीप श्रीवास्तव, अलीम अख्तर, डा. आलोक रंजन, बाबूराम सिंह, नर्वदेश्वर शुक्ल, लक्ष्मी यादव, डा. शीला शर्मा आदि ने कहा कि भाजपा देश के संस्थानों पर कब्जा जमाकर लोकतंत्र का गला घोट रही है। कहा कि नेशनल हेरल्ड मामले में जिस प्रकार से फैसला आया है उससे सिद्ध हो चुका है कि सरकार कांग्रेस और विपक्षी दलों के नेताओं को फर्जी मामलों में फंसा रही है। कहा कि देश की जनता परेशान है, डालर के मुकाबले रूपया लगातार गिर रहा है किन्तु भाजपा उपलब्धियों का ढोल पीट रही है। जनता अब सब समझ चुकी है। भाजपा के मंसूबे कभी पूरे नहीं होंगे। ईडी, सीबीआई के दुरूपयोग आदि मुद्दों को लेकर कांग्रेस द्वारा किये गये आन्दोलन में मुख्य रूप से गिरजेश पाल, रामधीरज चौधरी, अमर बहादुर शुक्ल, शेर मोहम्मद, सुधीर यादव, आलोक तिवारी, दूधनाथ पटेल, रविन्द्र सिंह, डीएन शास्त्री, राहुल चौधरी, राम बचन भारती, अतीउल्ला सिद्दीकी चन्द्रशेखर वर्मा, विनय तिवारी, अनूप पाठक, सलाहुद्दीन, मो. अशरफ अली, सुनील पाण्डेय, जगदीश शर्मा, राम पूरन चौधरी, राम बहादुर सिंह, अफजल हुसेन, यशराज के.के., प्रताप नरायन मिश्र, वृजभान कन्नौजिया, उमेश उपाध्याय, राजकपूर, अजय सिंह, साधू पाण्डेय, दिलीप श्रीवास्तव, प्रशान्त पाठक, विश्वजीत, शुभम गांधी, विशाल गुप्ता, राजेन्द्र गुप्ता, शंकर यादव, निशान्त श्रीवास्तव, राजेन्द्र विक्रम, जय प्रकाश चौबे, दुर्गेश चौधरी, बसन्त चौधरी, विष्णुमणि त्रिपाठी, मनीष दूबे, शोभित चौधरी, फकरूद्दीन खान के साथ ही बड़ी संख्या में कांग्रेस के पदाधिकारी, कार्यकर्ता शामिल रहे। 

‘सुविधा’ शुल्क दीजिए ‘ट्रांसफार्मर’ ले ‘जाइए’

बस्ती। विद्युत विभाग रुधौली की कार्यप्रणाली पर लगातार गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। अवैध रूप से ट्रांसफार्मर लगाए जाने के प्रकरण में अब नए-नए खुलासे सामने आ रहे हैं, जिससे विभागीय मिलीभगत की आशंका और गहरा गई है। आपको बताते चलें कि रुधौली विकासखंड के ग्राम पंचायत टिकरी में आईटीआई स्कूल को जाने वाले रास्ते पर सूत्रों के अनुसार व्यक्ति विशेष को निजी व आर्थिक लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से सुविधा शुल्क लेकर 10 किलोवाट का ट्रांसफार्मर लगाया गया था। मामला जब मीडिया की सुर्खियों में आया तो विभाग में हड़कंप मच गया और रातों-रात लाइनमैन को भेजकर ट्रांसफार्मर हटवा दिया गया, जिससे विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे हैं।

नियमानुसार किसी भी स्थान पर विद्युत पोल या ट्रांसफार्मर लगाने से पहले तकनीकी सर्वे, एस्टीमेट स्वीकृति और उच्चाधिकारियों की अनुमति आवश्यक होती है, लेकिन इन मामलों में नियमों को ताक पर रखे जाने के आरोप लग रहे हैं। बार-बार शिकायत, लेकिन कार्रवाई नदारद, उल्लेखनीय है कि डेढ़ वर्ष पूर्व भी अवैध ट्रांसफार्मर लगाए जाने को लेकर शिकायत की गई थी, लगातार सामने आ रहे मामलों से स्थानीय लोगों और उपभोक्ताओं में आक्रोश है। लोगों का कहना है कि यदि इस बार भी जांच सिर्फ कागजों तक सीमित रही तो यह विभागीय भ्रष्टाचार को खुला संरक्षण देने जैसा होगा। अब निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि उच्चाधिकारी इस पूरे प्रकरण में निष्पक्ष जांच कर दोषियों पर सख्त कार्रवाई करते हैं या फिर यह मामला भी फाइलों में दबकर रह जाएगा। 

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