‘यूं’ तो ‘किसी’ को भी ‘नहीं’ मिलेगा ‘टिकट’?
बस्ती। लखनउ से खबर आ रही है, भाजपा के नए अध्यक्ष पंकज चैधरी उन सासंदों और विधायकों के बारे में गहनता से छानबीन कर रहे हैं, जिन विधायकों ने सांसद को हरवाया और जिन सांसदों ने विधायकों को हरवाने में योगदान दिया। अगर खबर सही है, तो जिले से एक भी पूर्व और वर्तमान विधायक को टिकट नहीं मिलेगा, क्यों कि यहां पर तो सांसद और विधायक दोनों पर एक दूसरे को हरवाने का आरोप लग चुका और लग रहा। सिर्फ सांसद और विधायकों पर ही नहीं जिला पंचायत अध्यक्ष सहित अन्य पदाधिकारियों और प्रमुखों पर भी हरवाने का आरोप लग चुका है। इसी हरवाने के खेल ने जिले में भाजपा को कमजोर और विपक्ष को मजबूत कर दिया। कार्रवाई न होने से भीतरघातियों के हौसले बढ़े हुए है, और अगर इस बार भी कार्रवाई नहीं हुई तो 27 में भाजपा का क्या होगा, इसका अंदाजा लगाना मुस्किल। लेकिन एक बात तो तय हैं, जब तक भीतरघातियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं होगी, तब तक हरवाने का आरोप लगता रहेगा। यह बात नवागत प्रदेष अध्यक्ष जितनी जल्दी समझ ले पार्टी के लिए उतना ही फायदेमंद रहेगा। भीतरघातियों के चलते पार्टी को एक सांसद और चार विधायकों को खोना पड़ा, या कहिए कुर्बानी देनी पड़ी, उसके बाद भी अगर पार्टी के षीर्ष नेता इस पर गंभीरता से विचार नहीं करेगें तो 27 में इससे बड़ी कुर्बानी देनी पड़ सकती है। हारे हुए सांसद और विधायकों की ओर से इस बात की रिपोर्ट भी पूर्व प्रदेष अध्यक्ष को जा चुकी कि उन्हें किसने हरवाया। अगर वाकई अध्यक्षजी इस मामले में गंभीर हैं, तो उन्हें सूक्ष्मता से अध्ययन करने की जरुरत ही नहीं, भाजपा कार्यालय में रिपोर्ट पड़ी हुई, उसी की समीक्षा कर लें, स्थित साफ हो जाएगी। वैसे पार्टी इससे पहले विधानसभा और लोकसभा चुनाव में हारे हुए प्रत्याषियों से रिपोर्ट मांग चुकी, लेकिन आज तक किसी के खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। कहा भी जाता है, कि अगर विधानसभा चुनाव में हारे हुए प्रत्याषियों की रिपोर्ट पर कार्रवाई हो गई होती तो भाजपा के सांसद नहीं हारते, और अगर सांसद के हारने वाले रिपोर्ट पर कार्रवाई हो गई होती तो बगावत का स्वर नहीं सुनाई पड़ता। एक बात तो तय मानी जा रही है, कि 27 में उसी को टिकट मिलेगा जो जीतने की स्थित में होगा।
नवागत प्रदेष अध्यक्ष के सामने सबसे बड़ी चुनौती गैरों से नहीं बल्कि अपनों से है। कहना गलत नहीं होगा कि अपने कहे जाने वाले लोग ही सबसे अधिक घातक साबित हुए है। विधानसभा और लोकसभा चुनाव में लोगों ने देख लिया कि कौन अपना है, और कौन पराया। ऐसे-ऐसे लोगों ने भाजपा प्रत्याषियों को हरवाने और विप़क्ष के प्रत्याषी को जीताने में तन, मन और धन से मदद किया, कि लोगों के होष उड़ गए, हरवाने के लिए सुपारी तक दी गई, 50-50 लाख के काम का आफर तक दिया गया। जिसकी रिपोर्ट मीडिया में भी आई। यूंही नहीं हरीष द्विवेदी, दयाराम चैधरी, सीपी षुक्ल, रवि सोनकर और संजय जायसवाल हारे। इन सभी को हरवाने में भीतरघातियों का ही योगदान रहा। भीतरघातियों को हारने और हरवाने का जरा भी अफसोस न पहले था, और न आज है। आज भी यह लोग मौके की तलाष में दिखाई दे रहें है। पार्टी जब तक इन लोगों को बाहर का रास्ता नहीं दिखाएगी, तब तक भाजपा प्रत्याषी का जीतना कठिन रहेगा। ऐसा भी नहीं कि हरवाने का काम चोरी छिपे या फिर अंदर ही अंदर किया गया, जो भी किया गया खुले आम यह सोचकर किया गया कि अगर इन्होंने हमको हरवाया तो हम भी इन्हें हरवाएगें। विपक्ष की तो एक तरह लाटरी ही निकल गई, वरना दयाराम चैधरी मात्र 1500-1600 वोट से नहीं हारते। जिले में सपा कभी भी इतनी मजबूती से नहीं उभरती, अगर भाजपाई अपने ही प्रत्याषियों का विरोध न करते। कमोवेष यही स्थिति लगभग पूरे प्रदेष की रही। यह तो सही हैं, कि विधानसभा चुनाव में हारे हुए भाजपा प्रत्याषियों ने इसका बदला लोकसभा के चुनाव में भाजपा के प्रत्याषियों को हराकर लिया। जिस पार्टी में एक दूसरे को हराने की होड़ लगी हो, मौके ढूढ़े जाते हों, उस पार्टी के मुखिया के लिए संगठन चलाना और भीतरघातियों से निपटना आसान नहीं होगा। इसके लिए पार्टी को कठोर निर्णय लेने की आवष्यकता है। जिले की जनता फिर कहती हैं, कि अगर पार्टी ने विधानसभा और लोकसभा चुनाव से कोई सबक नहीं लिया तो 27 में बहुत कुछ खोने को पार्टी को तैयार रहना होगा, तब पंकजजी एक सफल अध्यक्ष नहीं कहलाएगें। तब सारा ठीकरा इन्हीं पर ही फूटेगा। अन्य पार्टियां विपक्ष से लड़ने की योजना और रणनीति बनाती है, लेकिन भाजपा में अपनों से कैसे निपटा जाए इसके लिए रणनीति बनाई जाती। पार्टी के प्रति वफादारी दिन प्रति दिन समाप्त होती जा रही हैं। पार्टी को इस बात की भी चिंता करनी चाहिए, कि उसके खाटी कार्यकत्र्ता क्यों अलग होते जा रहे हैं? क्यों नहीं उनमें पार्टी के प्रति उतना जोष-खरोष दिखाई देता जो आज से आठ-दस साल पहले दिखाई देता था? क्यों आज पार्टी को दरी बिछाने वाला कार्यकत्र्ता नहीं मिलता?
आखिर किस ‘मां-बाप’ ने ‘मंडल’ के ‘5.11’ लाख ‘वोटर्स’ को जन्म ‘दिया’?
-सबसे अधिक सिद्धार्थनगर में 4.2 लाख, बस्ती में 3.01 लाख एवं संतकबीरनगर में 88 हजार
-52 लाख वोटर्स में से 5.11 लाख यानि 28.35 फीसद के मां-बाप कहां हैं, इसकी जानकारी वोटर्स बने बच्चे नहीं दे पाए
-मंडल में 9.75 लाख फर्जी वोटर्स का कटने से सभी दलों में हलचल मची हुई, सबसे अधिक सिद्धार्थनगर में 4.2 लाख यानि 20.53 फीसद, बस्ती में 3.01 लाख यानि 15.86 फीसद और संतकबीरनगर में 2.71 लाख यानि 20.31 फीसद फर्जी वोटर्स पिछले कई चुनाव से प्रत्याषियों को हराने और जीताने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहें
-30 दिसंबर को सूची के अनंतिम प्रकाषन के बाद जो बिना मां-बाप के वोटर्स बने हैं, पहले उन्हें नोटिस दिया जाएगा, उसके बाद मां-बाप को तलाषने के लिए अधिकारियों की फौज लगाई जाएगी
-बस्ती में अगर तीन लाख कटे हैं, तो 29054 मतदाता बढ़े भी, इनमें सबसे अधिक 6561 बस्ती सदर में, रुधौली में 5928, हर्रैया में 5894, कप्तानगंज में 5359 एवं सबसे कम महादेवा में 5312, अभी और नये मतदाता बढ़ सकते
-हैरान करने वाली बात यह है, कि 1830 मतदाताओं ने एसआईआर का फार्म तो भरा, लेकिन फॅार्म पर हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया, फार्म ही जमा नहीं किया, इनमें सबसे अधिक 594 महादेवा में, 487 रुधौली में, 441 बस्ती सदर में, 182 कप्तानगंज में और कप्तानगंज में सबसे कम 126
बस्ती। एसआईआर का जो सबसे बड़ा सच सामने आया, वह है, बड़े पैमाने पर बिना मां-बाप के वोटर्स बनना, सवाल उठ रहा है, कि जब मां-बाप ही नहीं हैं, तो किसने मंडल के पांच लाख 11 हजार से अधिक वोटर्स को जन्म दिया। आखिर इतनी बड़ी संख्या में वोटर्स बने तो कैसे बने? किसने बनाया? और बनाने के पीछे मकसद क्या रहा? यह सवाल न सिर्फ मंडल के लोगों को हैरान कर रहा है, बल्कि चुनाव आयोग भी हैरान है। अगर जनपद सिद्धार्थनगर में 19.61 लाख मतदाताओं में से 4.02 लाख यानि 20.53 फीसद वोटर्स, बस्ती में 19 लाख में से 3.01 लाख यानि 15.86 फीसद और संतकबीरनगर में 13.37 लाख वोटर्स में से 2.71 लाख यानि 20.31 फीसद बन गए, तो इसके लिए आखिर कौन जिम्मेदार? जिस मंडल में 28.35 फीसद ऐसे मतदाता हों, जिनके माता-पिता का कोई पता नहीं, और अगर यह सभी पिछले चुनाव में मतदान करते आ रहे हो, चुनाव और मतदाता सूची का भगवान ही मालिक। यह एक ऐसा सच है, जिसे इस लिए पार्टिया झूठ साबित नहीं कर सकती क्यों कि यह सब रिकार्ड में है। बिना मां-बाप के बने 5.11 लाख वोटर्स, बीएलओ को यह नहीं बता पाए कि वह कैसे बिना मां-बप के वोटर्स बन गए? फिलहाल, 30 दिसंबर को सूची के अनंतिम प्रकाषन के बाद जो बिना मां-बाप के वोटर्स बने हैं, पहले उन्हें नोटिस दिया जाएगा, उनके जबाव के अनुसार मां-बाप को तलाषने के लिए अधिकारियों की फौज लगाई जाएगी, हर विधानसभा क्षेत्र में 20-20 अधिकारियों की फौज मां-बाप को तलाषंेगें के लिए लगाए जाने की योजना।
मंडल में 9.75 लाख फर्जी वोटर्स के कटने से सभी दलों में हलचल मची हुई, सबसे अधिक सिद्धार्थनगर में 4.2 लाख यानि 20.53 फीसद, बस्ती में 3.01 लाख यानि 15.86 फीसद और संतकबीरनगर में 2.71 लाख यानि 20.31 फीसद, यह फर्जी वोटर्स पिछले कई चुनाव से प्रत्याषियों को हराने और जीताने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहें है। इसे नेताओं की उपज भी माना जा रहा है। बस्ती में अगर तीन लाख वोट कटे हैं, तो 29054 मतदाता बढ़े भी, इनमें सबसे अधिक 6561 बस्ती सदर में, रुधौली में 5928, हर्रैया में 5894, कप्तानगंज में 5359 एवं सबसे कम महादेवा में 5312, अभी और नये मतदाता बढ़ सकते। हैरान करने वाली बात यह है, कि 1830 मतदाताओं ने एसआईआर का फार्म तो भरा, लेकिन फॅार्म पर हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया, फार्म ही जमा नहीं किया, फार्म न जमा करने और हस्ताक्षर करने का कोई कारण भी इन लोगों ने बीएलओ को नहीं बताया। इनमें सबसे अधिक 594 महादेवा में, 487 रुधौली में, 441 बस्ती सदर में, 182 कप्तानगंज में और कप्तानगंज में सबसे कम 126 है।
इससे पहले मंडल में कुल 52 लाख मतदाता मतदान करते थे, लेकिन एसआईआर के बाद अब 42.25 लाख मतदाता ही मतदान कर पाएगें। यानि एसआईआर ने 9.75 लाख फर्जी मतदाताओं को बाहर का रास्ता दिया। इसका प्रभाव जनसंख्या के आकड़े पर भी पड़ेगा। कम से कम बस्ती मंडल में 9.75 लाख जनसंख्या तो कम हो ही जाएगी, इसी तरह अगर देखा जाए तो पूरे प्रदेष में चार करोड़ से अधिक की जनसंख्या कम हो जाएगी। अब आप लोग एसआईआर के महत्व और उसी उपयोगिता को समझ गएं होगें। एसआईआर के मामले में जिले का 10वां स्थान है। एसआईआर से एक और उपलब्धि सामने आया|
कमालः ‘एसआईआर’ में वोट ‘कटे’, पंचायत में ‘बढ़े’
-इसे देखते हुए ‘एसआईआर’ का फारमूला ‘पंचायत’ चुनाव में भी ‘अपनाया’ जा ‘सकता, चुनाव आयुक्त ने इसका संकेत वीसी में अधिकारियों को दिया
-पंचायत चुनाव में अब 18 लाख 68 हजार 929 के स्थान पर पंचायत चुनाव में 19 लाख 58 हजार 332 मतदाता वोट करेगें, यानि 2021 के मतदाताओं की संख्या से 89403 अधिक मतदाता मतदान करेगें, इनमें सबसे अधिक 46711 पुरुष और 42692 महिला मतदाता, 4.78 फीसदी मतदाताओं की बृद्वि हुई
-पंचायत चुनाव में मतदाताओं का बढ़ना और विधानसभा चुनाव में घटना यह साबित करता है, कि बीलएल और अधिकारियों ने जो ईमानदारी एसआईआर में दिखाया, वह पंचायत चुनाव के मतदाता सूची में नहीं दिखाया
-प्रधानी और बीडीसी का चुनाव लड़ने और जीतने वालों ने जमकर बीएलओ से फर्जी मतदाता बढ़वाया और विरोधियों का कटवाया
-मतदाताओं के बढ़ने का रिकार्ड विकास खंड रामनगर ने बनाया, यहां पर रिकार्ड 11.11 फीसद वोटा बढ़े, जिसमें 9.43 पुरुष एवं 10.90 फीसद महिला वोटर्स बढ़े, जबकि किसी में 3.02 तो किसी ब्लाॅक में 3.42 फीसद मतदाता बढ़े
बस्ती। एसआईआर की सफलता को देख इसका फारमूला पंचायत चुनाव के मतदाता सूची में भी अपनाया जा सकता है, इसका संकेत वीसी में चुनाव आयुक्त की ओर से अधिकारियों को दिया जा चुका है। कहा गया कि भले ही चुनाव की तिथि को आगे बढ़ाना पड़े, लेकिन पंचायत चुनाव में भी उसी तरह की मतदाता सूची तैयार होना चाहिए, जिस तरह विधानसभा चुनाव के लिए तैयार हुआ। अगर चुनाव आयुक्त का फारमूला काम कर गया, तो न जाने कितने प्रधान और बीडीसी के प्रत्याषियों की फर्जी मतदाताओं के सहारे चुनाव जीतने की मंषा पर पानी फिर सकता है। मतदाताओं के बढ़ने का रिकार्ड विकास खंड रामनगर ने बनाया, यहां पर रिकार्ड 11.11 फीसद वोटर्स बढ़े, जिसमें 9.43 पुरुष एवं 10.90 फीसद महिला वोटर्स षामिल, जबकि किसी में 3.02 तो किसी ब्लाॅक में 3.42 फीसद मतदाता बढ़े। यह कितनी हैरानी की बात हैं, कि एसआईआर में जहां बस्ती में तीन लाख से अधिक फर्जी वोट काटे गए, वहीं पंचायत चुनाव में 89403 मतदाता बढ़ाए गए। पंचायत चुनाव में अब 18 लाख 68 हजार 929 के स्थान पर 19 लाख 58 हजार 332 मतदाता वोट करेगें, यानि 2021 के मतदाताओं की संख्या से 89403 अधिक मतदाता मतदान करेगें, इनमें सबसे अधिक 46711 पुरुष और 42692 महिला मतदाता, 4.78 फीसदी मतदाताओं की बृद्वि हुई। पंचायत चुनाव में मतदाताओं का बढ़ना और विधानसभा चुनाव में घटना यह साबित करता है, कि बीलएलओ और अधिकारियों ने जो ईमानदारी एसआईआर में दिखाया, वह पंचायत चुनाव के मतदाता सूची में नहीं दिखाया। कहना गलत नहीं होगा कि पंचायत चुनाव के मतदाता सूची में बीएलओ और तहसील वालों ने जमकर मलाई काटा। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है, कि पंचायत चुनाव में मतदाता सूची में गड़बड़ी करने का आरोप बीएलओ और तहसील पर लगता रहा, लेकिन एसआईआर में एक भी यह षिकायत नहीं आया कि बीएलओ ने पैसा लेकर नाम काटा या फिर बढ़ाया। यह सच है, कि प्रधान और बीडीसी का चुनाव लड़ने और जीतने वालों ने जमकर बीएलओ से फर्जी मतदाता बढ़वाया और विरोधियों का कटवाया। जहां पर लाखों फर्जी वोट कटना चाहिए था, वहां पर कटने को कौन कहे, हजारों वोट बढ़ा दिया। 4.78 फीसद वोट बढ़ना इस ओर संकेत करता है, कि इस बार के पंचायत चुनाव में जमकर फर्जी मतदान होगा। बीएलओ ने जिससे अधिक पैसा पाया, उसका उतना अधिक वोट बढ़ाया और विरोधियों का काटा। वोट बढ़ाने और विरोधियों का वोट काटने का अलग-अलग रेट निर्धारित रहा। विरोधी और गांव वाले चिल्लाते रह गए, लेकिन पैसे के आगे किसी ने भी नहीं सुनी। पंचायत चुनाव में फर्जी वोट होने का खामियाजा कुल मिलाकर गांव वालों को ही भुगतना पड़ता है। फर्जी वोट डालने को लेकर हिंसा जैसा वातावरण रहता है। मारपीट की घटनाएं बढ़ जाती है। मुकदमों की संख्या बढ़ जाती, गांव का आपसी सौहार्द बिगड़ने लगता है।
1226 ग्राम पंचायत और 2959 मतदान स्थलों पर होने वाले पंचायत चुनाव में मतदातओं की जो स्थित सामने आई, उसके अनुसार 19 लाख 58 हजार 332 मतदाता चुनाव में भाग लेंगे, इनमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 10 लाख 36 हजार 290 और महिला मतदातओं की संख्या नौ लाख 22 हजार 042 है। हर्रैया के 88 ग्राम पंचायत में 143536, साउंघाट के 90 ग्राम पंचायतों में 146118, रामनगर के 81 ग्राम पंचायत में 146090, विक्रमजोत के 82 ग्राम पंचायतों में 124610, रुधौली के 77 ग्राम पंचायतों में 122341, कप्तानगंज के 53 ग्राम पंचायतों में 84261, बनकटी के 89 ग्राम पंचायतों में 129953, गौर के 110 ग्राम पंचायतों में 180359, परसरामपुर के 108 ग्राम पंचायतों में 171606, बस्ती सदर के 111 ग्राम पंचायतों में सल्टौआ के 107 ग्राम पंचायतों में 161153, कुदरहा के 77 ग्राम पंचायतों में 117022, बहादुरपुर के 89 ग्राम पंचायतों में 141183 एवं दुबौलिया के 64 ग्राम पंचायतों में 100670 मतदाता चुनाव में भाग लेगें। पंचायत चुनाव का एक सच यह भी है, कोई भी प्रत्याषी चाहे वह प्रधान का हो या फिर बीडीसी का ईमानदारी से चुनाव नहीं जीत सकता है। अगर मतदाता किसी ईमानदार को जीताना भी चाहे तो उसे ईमानदार प्रत्याषी नहीं मिलता, पहले तो अधिकांष ईमानदारी दिखाकर और बताकर वोट की भीख मांगते हैं, लेकिन जैसे ही उन्हें मनरेगा और ग्राम निधि का जस्का लगता है, सारी ईमानदारी धरी की धरी रह जाती है, जो ईमानदार बनने का ढ़ोग रचतें हंै, वही सबसे बड़ा बेईमान निकलता। यह भी सही है, कि जब मतदाता दारु, मीट, मुर्गा और पैसे पर बिकेगा तो प्रधान कहां से ईमानदार होगें। जिस दिन मतदाता अपने वोट की कीमत समझ गया, उस दिन कोई भी बेईमान प्रत्याषी न तो प्रधान और न बीडीसी ही बन पाएगा।
‘डीएम’ ने दिया ‘कोहरे’ से ‘जनहानि’ को ‘रोकने’ का ‘निर्देश’
बस्ती। डीएम कृत्तिका ज्योत्स्ना द्वारा शीत ऋतु में कोहरे के दृष्टिगत दृश्यता कम होने के कारण आम जनमानस की सुरक्षा एवं जनहानि को रोकने के उद्देश्य से परियोजना निदेशक, एन0एच0ए0आई0/परिवहन विभाग/यातायात विभाग/लोक निर्माण विभाग को निर्देशित कियागया कि कोहरा प्रभावित कोरीडोर तथा दुर्घटना बाहुल्य क्षेत्रों में पेट्रोलिंग बढ़ाई जाये, एम्बुलेंस, क्रेन एवं फायर टेण्डर की व्यवस्था उचित स्थानों पर सुनिश्चित की जाये। मार्गों पर पर्याप्त प्रकाश व्यवस्था हेतु सोलर हाई मास्ट लाईट तथा एण्टी फाग लाईट की व्यवस्था सुनिश्चित की जाये। मार्गों पर लेन मार्किंग, रिªलेक्टर-डेलीनेटर, कैट आई इत्यादि तथा समुचित रेट्रो रिªलेक्टिव साइनेज लगाया जाना सुनिश्चित किया जाये। सड़क के किनारे खड़े वाहनों, खराब हो खड़ा कराया जाये।
रोड ओनिंग एजेंसी सड़कों पर पेंट, लेन मार्किंग, रिªलेक्टर और साइनेज लगाया जाना सुनिश्चित किया जाय। ट्रैक्टर ट्रालियों में शत-प्रतिशत रेट्रो रिªलेक्टिव टेप लगाये जायें। पब्लिक एड्रेस सिस्टम का प्रयोग करते हुए वाहन चालकों को कोहरे के सम्बन्ध में चेतावनी दी जाये। उक्त निर्देश के क्रम में परिवहन विभाग के सम्भागीय परिवहन अधिकारी (प्रशासन) फरीदउद्दीन, सम्भागीय 07 वाहनों पर चालान की कार्यवाही की गई। साथ ही हाईवे के किनारे स्थित यूरिया पंप मालिकों को निर्देशित कियागया कि अपने यूरिया टैंक एवं उससे सम्बन्धित उपकरणों को राष्ट्रीय राजमार्ग-27 से तत्काल हटा लिया जाये। माह दिसम्बर में 23 तक ओवरलोड में 29 वाहन, बिना रिय्लेक्टर लगे 58 वाहनों, गन्ना लदे/ओवरहाईट में 67 वाहनों एवं अवैध पार्किंग में 91 वाहनों के विरूद्ध चालान/निरूद्ध की कार्यवाही की गई जिससे प्रशमन शुल्क रू0 5.75 लाख की वसूली की गई।

