एक ‘टेबलेट’ खाइए, 24 घंटे ‘नशे’ में ‘रहिए’!


एक ‘टेबलेट’ खाइए, 24 घंटे ‘नशे’ में ‘रहिए’!

-‘नशे’ के ‘इंजेक्षन’ को ‘षेयर’ करने और एचआईबी के खतरे की संभावना से बचाने के लिए सरकार ‘बूपरेनारफिन सब्लिंगुअल’ टेबलेट खिला रही

-‘नशे’ के लिए जिले के दो सौ से अधिक बच्चे, जवान और बूढ़े एक ही इंजेक्षन का इस्तेमाल अनेक कर रहें

-उ.प्र. राज्य एड्स नियंत्रण सोसायटी के सहयोग से जिला अस्पताल में ओएसटी सेंटर के जरिए सम्पूर्ण सुरक्षा देने के लिए साथियां नाम से अभियान चलाया जा रहा

-इस सेंटर में बकायदा नषेबाजों का पंजीकरण होता है, और उन्हें नषा के लिए रोज एक टेबलेट दिया जाता है, ताकि वह इंजेक्षन का सेवन न करे और न दूसरे को करने दें

-प्रचार प्रसार के अभाव में एनएचएम की इतनी महत्वपूर्ण योजना का लाभ उन लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा है, जो लोग इंजेक्षन के जरिए नषा करते हैं, और उसी इंजेक्षन को दूसरों को इस्तेमाल करने देते

बस्ती। पढ़ने में अजीब लग रहा होगा, लेकिन यह सच है, कि एक सरकारी टेबलेट खाइए और 24 घंटा नषे में रहिए। एचएनएम ने ‘बूपरेनारफिन सब्लिंगुअल’ नामक टेबलेट उन लोगों को खिला रही है, जो किसी वजह से नषा करना नहीं छोड़ सकते, खास तौर से यह टेबलेट उन नषेबाजों को दिया जा रहा है, जो इंजेक्षन के जरिए नषा करते हैं, और फिर उसी इंजेक्षन को दूसरे नषेबाज को षेयर यानि साझा कर देते है, जिससे एड्स जैसी बीमारी फैलती। जिले में इस तरह के लगभग दो सौ नषेबाजों का पंजीकरण है।



ओएसटी सेंटर के मेडिकल आफिसर एपीडी द्विवेदी का कहना है, कि ‘साथिया’ योजना के तहत एनएचएम की ओर से यह योजना उन लोगों के लिए चलाई जा रही है, और उनके जीवन को बचाने का प्रयास कर रही है, जो लोग इंजेक्षन के जरिए खुद तो नषा करते हैं, और उसी इंजेक्षन को दूसरे नषेबाज को इस्तेमाल करने के लिए देते है। कहते हैं, कि अगर एक इंजेक्षन कई लोग इस्तेमाल करते हैं, तो एचआईवी का खतरा बढ़ जाता हैं। एड्स हो जाता है। कहते हैं, कि एनएचएम किसी नषेबाज को उसका नषा छुड़ाना नहीं चाहती, बल्कि उसका जीवन बचाना चाहती है। उन्हें इंजेक्षन का इस्तेमाल करने और दूसरों को करने से रोकना चाहती है। सरकार चाहती है, कि लोग नषा करने के लिए इंजेक्षन का इस्तेमाल न करें, बल्कि निःषुल्क मिलने वाले सरकारी टेबलेट का इस्तेमाल करें। एक टेबलेट खा लेने के बाद फिर किसी नषेबाज को इंजेक्षन लगाने की आवष्यकता नहीं पड़ती।

बताते हैं, कि इंजेक्षन का सेवन करने और दूसरों को इस्तेमाल करने वालों की पहचान के लिए ‘उम्मीद नामक संस्था’ जिले में काम कर रही है। इसके परियोजना निदेषक रमेष वर्मा है, इत्तफाक से इनका मोबाइल नंबर 7388222268 बराबर बंद रहता हैं, कब खुलता इसकी जानकारी मीडिया को भी नहीं हो पाती। इतने महत्वपूर्ण योजना के पीडी का मोबाइल जब बंद रहेगा तो योजना का भगवान ही मालिक। बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि जिले में इस तरह की भी कोई अभियान एनएचएम की ओर से ‘उम्मीद नामक संस्था’ संचालित कर रही है। वैसे यह योजना 2014 से चल रही है, उसके बाद भी योजना की जानकारी जब मीडिया तक को नहीं होगी तो इंजेक्षन लगाने वाले नषेबाजों को कहां से होगी। जिला अस्पताल के कमरा नंबर छह में बाकायदा काउंसिलिगं, पंजीकरण और दवा वितरण होता है। पूरी टीम काम करती है। यहां पर बाकायदा नषेबाजों का पंजीकरण होता है। जानकर हैरानी होगी कि नषेबाजों में बच्चे, जवान और 80 साल तक के बुजुर्ग षामिल है, और यह लोग एक बार में एक माह का टेबलेट ले जाते हैं, यानि एक बार आइए और महीने भर नषे में रहिए। यहां के डाक्टर भी कहते हैं, कि नषा करो लेकिन सरकारी टेबलेट खाकर नषा करो, इंजेक्षन लगाकर नही। अनेक ऐसे मां-बाप हैं, जो कहते हैं, कि मेरे बेटे को मरने से बचा लीजिए। ध्यान में रहे, यह कोई टीटमेंट नहीं हैं, बल्कि उन लोगों को टेबलेट के जरिए नषे में रखकर उन्हें एचआईवी जैसी खतरनाक बीमारी से बचाना है, जो इंजेक्षन का इस्तेमाल करते और उसी इजेंक्षन का दूसरों को करने देते है। यह टेबलेट उन्हीं नषेबाजों का निःषुल्क जिला अस्पताल में दी जाती है, जिनका पंजीकरण है। टेबलेट लेने के लिए कुछ ऐसे नामी गिरामी लोग भी जो मुंह ढ़ककर कमरा नंबर छह में दवा लेने जाते। यह तो अच्छा हुआ कि यह टेबलेट सिर्फ उन्हीं लोगों को जिला अस्पताल में मिलता, जिनका पंजीकरण है। अगर यह टेबलेट खुले बाजार में मिलता तो न जाने कितने दारु की दुकानों पर ताला लगाना पड़ता।

डा. लाल पैथ’ के ‘नाम’ पर ‘जिलेभर’ में हो रही ‘लूट’!

बस्ती। सिर्फ बस्ती में ही नहीं पूरे प्रदेष में ‘डा. लाल पैथ’ के नाम लूट मची हुई। बड़े नाम का फायदा उठाकर मनमाने तरीके से जांच के नाम पर वसूली हो रही है। होम सर्विस के नाम पर तो और भी लूट मची हुई है। जिले में लगभग इसके एक दर्जन सेंटर होगें, और एक भी सेंटर मानकनुसार संचालित नहीं हो रहें, खून निकालने से लेकर जांच करने का कार्य डाक्टर नहीं बल्कि एलटी और अप्रषिक्षित लोग कर रहे है। सेंटर पर तो बड़े-बड़े डाक्टर का नाम लिखा, लेकिन रिपोर्ट अप्रषिक्षत लोग बना रहे है। रिपोर्ट गलत होने से मरीजों के सामने करनी और मरनी जैसी स्थित उत्पन्न हो जा रही है। मालवीय रोड स्थित डा. लाल पैथ लि. पर एक बैनर टांगा गया जिसमें संस्था के इंचार्ज डा. सौम्या गोयल हैं, और इन्हीं के नाम पंजीकरण भी हैं, कायदे से तो इन्हीं लैब में मौजूद रहकर रिपोर्ट बनाना चाहिए, लेकिन यह कब आती और कब जाती है, रिपोर्ट कौन बनाना? किसी को पता नहीं, इस लैब में जिलेभर के कलेक्षन सेंटर से लिए गए खून के नमूनों की जांच और रिपोर्ट बनाई जाती है। इसी तरह जनता होटल के पास भी इनका एक कलेक्षन सेंटर है, जिसके संचालक अमित पटेल हैं, यह खून भी निकालते, और होम सर्विस पर भी जाते, इनके पास कौन सी डिग्री है, इसका पता षायद सीएमओ को भी नहीं होगा। इनके जितने भी कलेक्षन सेंटर हैं, एक भी मानकनुसार संचालित नहीं हो रहे, खून निकालने के बाद इंजेक्षन को या तो नाला सा फिर खुले में फेंक दिया जाता है, जिससे संक्रामक बीमारी फैलने की संभावना बनी रहती है।




जिस तरह बड़े नाम का यह लोग फायदा उठाकर मरीजों का आर्थिक षोषण कर रहे हैं, उससे इनकी संस्था की व्यवस्था पर ही सवाल खड़े हो गए। साफ-साफ का अभाव लगभग सभी सेंटरों पर हैं, जो कि सबसे अधिक आवष्यकता है। हालही में अयोध्या में जिस तरह दो घंटे में दो तरह की रिपोर्ट देने का मामला सामने आया, उससे पूरा प्रषासन और सीएमओ कार्यालय सकते में आ गया, जांच हुई और गड़बड़ी पाए जाने पर सेंटर को सील कर दिया गया, इसी तरह घटनाएं अन्य जनपदों से भी आ रही है। अन्य पैथालाजी का दावा हैं, कि अगर इनके भी क्रियाकलापों और मानकों एवं रिपोर्ट की जांच हो जाए तो एक भी प्रषासन और सीएमओ को सभी सेंटरों पर ताला लगाना पड़ेगा। इनके यहां जो चाहे वही कलेक्षन सेंटर खोल सकता है, भले ही चाहें वह प्रषिक्षित हो या न हो, पैसा दीजिए और लूटिए। इनके सेंटर पर जब भी कोई मीडिया जाता है, उसे भ्रमित जानकारी दी जाती है, मामले को टालने के लिए मालिक से बात कराने को कहा जाता, लेकिन करवाया नहीं जाता, यह कहा जाता है, कि आप अपना नंबर दे दीजिए मालिक खुद आप से बात कर लेंगे। डा. लैब पैथ के लोग अगर जिले वाले को लूट रहे हैं, या फिर उन्हें भ्रमित जांच रिपोर्ट दे रहे हैं, तो उसके लिए सीएमओ कार्यालय को जिम्मेदार माना जाता है। इसके नोडल तो मानो इस संस्था की जांच न करने की कसम खा रखी है, क्यों खा रखी है, यह कहने और लिखने की बात नहीं बल्कि समझने की बात है।

 ‘मत’ करना ‘ससुर’ पर ‘भरोसा’ नहीं तो लुट ‘जाओगे’

बस्ती। समझ में नहीं आता कि आदमी विष्वास और भरोसा करे तो किस पर करें, जिस पर भरोसा और विष्वास करते हैं, वही दगा दे जाता है। ईमानदारी नाम की तो कोई चीज ही नहीं रह गई। कहना गलत नहीं होगा कि आज सबसे अधिक खून रिष्तों का ही हो रहा है। पैसे के चकाचौंध ने अच्छे खासे इंसान को बेईमान और लालची बना दे रहा है। कोई भी ऐसा रिष्ता नहीं बचा जिस पर दाग न लगा हो। इसी लिए आज अगर कोई ईमानदारी की बात करता है, तो लोग उस पर हंसने लगते हैं। कोई किसी को नहीं छोड़ रहा है, जिसके चलते रिष्तों में तो खड़ास आ ही रही है, कि आपसी दुष्मनी भी बढ़ रही है। ऐसे में अगर ईमानदार हैं, तो उसे भी बेईमानों की श्रेणी में रखा जाता है। जिस तरह रोज एफआईआर के जरिए रिष्तों का खून होते पढ़ा और देखा जा रहा है, उससे एफआईआर दर्ज करने वाला भी एक बार हैरान होगा। सवाल उठ रहा है, कि दामाद अगर ससुर या फिर उनके भाई पर भरोसा नहीं करेगा तो किस पर करेगा।

एफआईआर दर्ज करवाने वाले आदर्ष उपाध्याय पुत्र नरेंद्रनाथ उपाध्याय निवासी पकड़ी हृदयी थाना कोतवाली ने कहा कि उसका विवाह संग्रह अनुदेषक सदर तहसील रनजीत प्रताप पांडेय के बड़े भाई जगदीष पांडेय की पुत्री के साथ माह फरवरी 25 में हुई। कहा कि मुझे क्या मालूम था, कि उसके ससुर का छोटा भाई जालसाज निकलेगा। कहा कि उसने हमसे आन लाइन नौकरी और जमीन का बैनामा कराने के नाम पर सात लाख लिया। जब नौकरी नहीं मिली और बैनामा नहीं हुआ तो पैसा मांगने पर मारपीट पर अमादा हो गए। कहा कि आप ही बताइए कि अगर दामाद अपने ससुर के सगे भाई पर विष्वास नहीं करेगा तो किस पर करेगा। कहा कि पैसा और जमीन के साथ-साथ पवित्र रिष्ता भी चला गया। कहा जाता है, जो रनजीत प्रताप पांडेय जैसे लोग होते हैं, उन्हें रिष्तों से उतना प्यार नहीं जितना पैसे से रहता है। ऐसे लोगों को इस बात की कोई चिंता नहीं होती कि अगर एफआईआर दर्ज हो गया तो समाज क्या कहेगा? गलत काम करने वालों का नतीजा भी गलत होता है, जैसा कि रनजीत प्रताप पांडेय के साथ हुआ। एक सरकारी कर्मचारी पर अगर फ्राड के आरोप में मुकदमा दर्ज होता तो बदनामी तो तहसील की भी होगी।

योगीजी ‘बेजुबान’ को बचा ‘लीजिए’, नहीं तो मर ‘जाएगी’

बस्ती। जिस जनपद में बीमार बेजुबानों के इलाज के लिए दवा न हो, और जिसके पैर टूटने पर एक्सरे करने का कोई साधन न हो, उस जनपद के बेजुबान के सुरक्षित और जीवित रहने पर सवाल खड़ा हो रहा है। सवाल तो योगीजी पर भी खड़े हो रहे हैं, और पूछा जा रहा है, जब सरकार के पास संसाधन और आर्थिक अभाव है, तो गौमाता को संरक्षित करने वाली योजना ही क्यों लागू किया? आज जो हालत गौषालाओं की है, उसके लिए किसे जिम्मेदार माना जाए, गौसेवा के पांच उपाध्यक्ष और एक अध्यक्ष नामित करने के बाद लगाने लगा था, कि अब गौषालाओं की स्थित में सुधार होगा, कम से कम अब तो गौषालाओं में बेजुबानों की मौत तो नहीं होगी, मरने की तो बात ही छोड़िए, गौषालाओं में बेजुबानों को चील कौवा और कुत्ते नोंच रहे है। जब सरकार को उपाध्यक्षों की रिपोर्ट पर कार्रवाई ही नहीं करनी थी, और संसाधन नही नहीं बढ़ाना था, तो फिर इन लोगों को क्यों उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई? मीडिया और जनता तो सवाल उपाध्यक्षों से ही कर रहे है। बनकटी क्षेत्र के बेहिल का एक ऐसा मामला सामने आया, जिसने सभी की पोल खोलकर रख दी। बेहिल में 27 नवंबर से विनोद गुप्ता के घर के पास आवारा पशु भैंसा का दोनों पैर काम न करने की वजह से जिंदगी और मौत से जंग लड़ रहा है। 29 नवंबर को पशु चिकित्सक बनकटी से आए कुछ इलाज किया। पहली दिसंबर से 1962 एम्बुलेंस की टीम इलाज कर रही है, लेकिन पशु को कुछ फायदा नहीं हुआ, पशु चिकित्सक बनकटी यादवजी कह रहे है की एक्सरे और और अन्य सुविधा मेडिकल कालेज फैजाबाद में ही मिलेगा। जनपद में कोई पशु मेडिकल कॉलेज नहीं है। 1962 पशु वैन के पास दवा का भी आभाव है, ग्रामीणों को इंजेक्शन लाने को लिखकर दे दिए, गांव वाले चंदा लगाकर दवा मंगाए। इसकी षिकायत गंगा राम यादव द्वारा जनसुनवाई पर शिकायत की गई। कहा कि पशु का इलाज बहुत जरूरी है, जनपद में पशु एक्सरे जैसी सुविधा ब्लाकों पर न होना अचंभित करता है। ऐसी में कितने पशु, गाय, भैंस को समुचित इलाज की सुविधा न मिल पाने से काल के गाल में समाते जा रहे है। भैंस के दोनों पैर टूटने के लिए गांव वाले पुलिस को जिम्मेदार मान रहे हैं, और कह रहे हैं, कि जिस समय भैंस का वध करने के लिए वाहन से ले जाया जा रहा था, उस समय पुलिस कहां थी, दोनों पैर टूटने का कारण गांव वालों ने भैंस का वाहन से कूद जाना मान रहे है।

योगीजी ‘बेजुबान’ को बचा ‘लीजिए’, नहीं तो मर ‘जाएगी’

बस्ती। जिस जनपद में बीमार बेजुबानों के इलाज के लिए दवा न हो, और जिसके पैर टूटने पर एक्सरे करने का कोई साधन न हो, उस जनपद के बेजुबान के सुरक्षित और जीवित रहने पर सवाल खड़ा हो रहा है। सवाल तो योगीजी पर भी खड़े हो रहे हैं, और पूछा जा रहा है, जब सरकार के पास संसाधन और आर्थिक अभाव है, तो गौमाता को संरक्षित करने वाली योजना ही क्यों लागू किया? आज जो हालत गौषालाओं की है, उसके लिए किसे जिम्मेदार माना जाए, गौसेवा के पांच उपाध्यक्ष और एक अध्यक्ष नामित करने के बाद लगाने लगा था, कि अब गौषालाओं की स्थित में सुधार होगा, कम से कम अब तो गौषालाओं में बेजुबानों की मौत तो नहीं होगी, मरने की तो बात ही छोड़िए, गौषालाओं में बेजुबानों को चील कौवा और कुत्ते नोंच रहे है। जब सरकार को उपाध्यक्षों की रिपोर्ट पर कार्रवाई ही नहीं करनी थी, और संसाधन नही नहीं बढ़ाना था, तो फिर इन लोगों को क्यों उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई? मीडिया और जनता तो सवाल उपाध्यक्षों से ही कर रहे है। बनकटी क्षेत्र के बेहिल का एक ऐसा मामला सामने आया, जिसने सभी की पोल खोलकर रख दी। बेहिल में 27 नवंबर से विनोद गुप्ता के घर के पास आवारा पशु भैंसा का दोनों पैर काम न करने की वजह से जिंदगी और मौत से जंग लड़ रहा है। 29 नवंबर को पशु चिकित्सक बनकटी से आए कुछ इलाज किया। पहली दिसंबर से 1962 एम्बुलेंस की टीम इलाज कर रही है, लेकिन पशु को कुछ फायदा नहीं हुआ, पशु चिकित्सक बनकटी यादवजी कह रहे है की एक्सरे और और अन्य सुविधा मेडिकल कालेज फैजाबाद में ही मिलेगा। जनपद में कोई पशु मेडिकल कॉलेज नहीं है। 1962 पशु वैन के पास दवा का भी आभाव है, ग्रामीणों को इंजेक्शन लाने को लिखकर दे दिए, गांव वाले चंदा लगाकर दवा मंगाए। इसकी षिकायत गंगा राम यादव द्वारा जनसुनवाई पर शिकायत की गई। कहा कि पशु का इलाज बहुत जरूरी है, जनपद में पशु एक्सरे जैसी सुविधा ब्लाकों पर न होना अचंभित करता है। ऐसी में कितने पशु, गाय, भैंस को समुचित इलाज की सुविधा न मिल पाने से काल के गाल में समाते जा रहे है। भैंस के दोनों पैर टूटने के लिए गांव वाले पुलिस को जिम्मेदार मान रहे हैं, और कह रहे हैं, कि जिस समय भैंस का वध करने के लिए वाहन से ले जाया जा रहा था, उस समय पुलिस कहां थी, दोनों पैर टूटने का कारण गांव वालों ने भैंस का वाहन से कूद जाना मान रहे है।

‘दो हजार’ दीजिए ‘बीटीसी’ का ‘अंक पत्र’ ले ‘जाइए’

बस्ती। बेसिक विभाग का कोई भी ऐसा विंग नहीं जहां पर धन उगाही न होती हो, ऐसा लगता है, कि मानो धन उगाही करना इन लोगों के खून में समा गया है। षिक्षक नेता भले ही चाहें कितना भ्रष्टाचार को लेकर आवाज उठाऐं दरी बिछाए, लेकिन धन उगाही करने वालों और कार्यालय के मुखिया पर कोई फर्क नहीं पड़ता। कहा भी जाता है, जब अधिकारी धन उगाही करेगें तो मातहत भी करेगें। धन उगाही के आरोप में न जाने कितने एडी बेसिक, बीएसए, एबीएसए और पटल सहायक के चेहरे सामने आ रहें हैं, पकड़े तक जा रहे हैं, लेकिन कोई सुधार नहीं हो रहा है। जब सब लोग धन उगाही करने में लगे हैं, तो डायट के बाबू और प्राचार्य क्यों पीछे रहें। माना जाता है, कि अगर किसी कार्यालय का पटल सहायक धन उगाही करता हैं, तो उसके पीछे कार्यालय प्रमुख की हामी रहती है।

उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष चन्द्रिका सिंह और मंत्री बालकृष्ण ओझा के नेतृत्व में शिक्षकों ने गुरुवार को मंडलायुक्त, जिलाधिकारी और मुख्य विकास अधिकारी को ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन के माध्यम से शिक्षकों ने डायट के पटल सहायकों पर विशिष्ट बीटीसी अंकपत्र देने के बदले धन उगाही का आरोप लगाते हुए जांचकर कार्यवाई की माँग किया। सीडीओ सार्थक अग्रवाल ने शिक्षकों को आश्वासन दिया कि वह इस मामले में जांच कराकर आवश्यक कार्यवाई करेंगे।


ज्ञापन देने के बाद शिक्षक नेताअें ने कहा कि विशिष्ट बीटीसी का अंक पत्र प्राप्त करने के लिए प्रत्यावेदन देकर लंबे समय से लगातार संस्थान का चक्कर लगा रहे हैं परंतु उन्हें अंक पत्र प्रदान नहीं किया जा रहा है। अंक पत्र के लिए जो शिक्षक 500 से 2000 रुपए पटल सहायकों को दे रहे हैं, उन्हें आधे घंटे के अंदर उनके व्यक्तिगत मोबाइल पर अंक पत्र उपलब्ध करा दिया जा रहा है। शिक्षकों का कहना है कि 2010 से पहले नियुक्त शिक्षकों के लिए उच्चतम न्यायालय द्वारा दो वर्ष के भीतर टेट पास करना अनिवार्य कर दिया गया है। मौके पर केंद्रीय शिक्षक पात्रता परीक्षा का फॉर्म निकला हुआ है, और 2004 और 2007 बैच के शिक्षकों को टीईटी का फॉर्म भरने के लिए विशिष्ट बीटीसी अंक पत्र की आवश्यकता है। जिलाध्यक्ष ने कहा कि पटल सहायकों का यह कृत्य न केवल अनियमितता को दर्शाता है, बल्कि यह भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है। इसमें डायटके प्राचार्य की पूर्णतः मिलीभगत है। उन्होंने कहा कि अन्य जनपदों में अंक पत्र वितरण का कार्य पूर्ण किया जा चुका है। किंतु बस्ती में पटल सहायकों द्वारा अंक पत्र देने में हीला हवाली की जा रही है और शिक्षकों से धन उगाही की जा रही है।

जिला मंत्री बालकृष्ण ओझा ने कहा कि संगठन द्वारा डायट प्राचार्य से वार्ता करने पर उन्होंने अंक पत्र और प्रमाण पत्र डायट में न होने की बात कही इसके उपरांत भी पटल सहायकों द्वारा धन लेकर अंक पत्र शिक्षकों को जारी किए जा रहे हैं। उन्होंने संबंधित अधिकारियों से उच्च स्तरीय जांच कर कर दोषी कर्मचारियों और पटल सहायकों के विरुद्ध आवश्यक कठोर कार्रवाई करने की मांग किया। ज्ञापन देने वालो में सुधीर तिवारी, शिवप्रकाश सिंह, हरेंद्र यादव, मंगला मौर्य, मुरलीधर, अखिलेश पाण्डेय, विवेक सिंह, गिरजेश सिंह, देवेंद्र सिंह, अनिल कुमार, प्रमोद सिंह, अटल उपाध्याय, रवि सिंह, रंजन सिंह, दुर्गेश यादव, प्रवीण श्रीवास्तव, गिरजेश चौधरी, सनद पटेल, सुरेश गौड़ एवं उमाकांत शुक्ल उपस्थित रहे।


  


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