‘नशे’ के कारोबारी ‘दंपत्ति’ के ‘बचाव’ में उतरे ‘नेता’, ‘अधिकारी’ और ‘पत्रकार’!
-यह लोग ऐसे लोगों की मदद कर रहें जो समाज और सरकार दोनों के दुष्मन के साथ उन गरीब परिवार के भी दुष्मन, जिनका घर नषे के चलते बर्बाद हो गया, जो लोग साथ दे रहे हैं, वह भी कम दोषी नहीं, जो लोग बचाव में उतर रहें, उन्हें जनता और मीडिया अच्छी तरह पहचानती और जानती
-डीएम और एडीएम तक नहीं बता पाए कि कैसे बोगस फर्म गणपति को लाइसेंस मिल गया, यह भी नहीं बता पाए कि क्यों सिर्फ बोगस फर्म पर ही मुकदमा हुआ? और किसके दबाव में हुआ?
-दोनों जिम्मेदार अधिकारी यह भी नहीं बता पाए कि क्यों नहीं बीडीए के अध्यक्ष एवं हर्ष मेडिकल सेंटर के राजेष सिंह, उनकी पत्नी दिव्या सिंह, गोपाल फार्मा की खुषबू गोयल, आईडिएल फार्मा के हुष्न आरा पत्नी इकबाल, मेसर्स संस फार्मा के मोहम्मद फैसल इकबाल, के खिलाफ दर्ज हुआ मुकदमा
-इन लोगों ने बस्ती से लेकर आजमगढ़ तक सिर्फ बोगस फर्म को ही नषे की दवा यानि कोडिन सीरप बेचा, ताकि भविष्य में किसी भी कार्रवाई से बचा सके, एक भी चलती फर्म को सीरप नहीं बेचा
-नषे के कारोबार को बढ़ाने और उसके कारोबारियों को पनपने और बचाने में डीएलए और डीआई की भूमिका रही, यह दोनों पार्टनर की भूमिका अदा किया, पहले भी इन दोनों पर आरोपियों को बचाने का आरोप लग रहा था, आज भी लग रहा, जब कि इस विभाग को प्रषासन देखता
बस्ती। यूंही कोई किसी नषे का कारोबार करने वाले दंपत्ति के बचाव में नहीं उतरता, क्यों कि बचाव करने वालों को अच्छी तरह मालूम हैं, कि इसके छीटें उस पर भी पड़ सकते है। इसके बावजूद भी अगर नषे का कारोबार करने वाले दंपत्ति के पक्ष या बचाव में कोई उतरता है, तो यह माना जाता है, कि उसने इसकी भारी कीमत वसूली होगी। जिस तरह बीसीडीए के अध्यक्ष और उनकी पत्नी सहित अन्य नषे का कारोबार करने वालों के बचाव में नेता अधिकारी और पत्रकार और एक विषेष वर्ग के उतरने की बातें छन कर आ रही है, उससे पूरा समाज हैरान हैं, और कह रहा है, कि ऐसे लोग नषे के कारोबार करने वालों से अधिक दोषी है। यह भी कहते हैं, कि अधिकारी भले ही किसी लाभकारी योजना के चलते आखंे बंद किए हुए हैं, लेकिन समाज और मीडिया सबकुछ देख रहा है, यह भी देख रहा है, कि यह लोग ऐसे लोगों की मदद कर रहें जो समाज और सरकार दोनों के दुष्मन के साथ उन गरीब परिवार के भी दुष्मन हैं, जिनका घर नषे के चलते बर्बाद हो गया। मीडिया ने जब डीएम और एसडीएम से यह पूछा कि कैसे बोगस फर्म गणपति को लाइसेंस मिल गया, और यह लाइसेंस किसके दबाव में दिया गया? नहीं बता पाए, यह भी नहीं बता पाए कि क्यों सिर्फ बोगस फर्म पर ही मुकदमा दर्ज हुआ? और क्यों नहीं, बीडीए के अध्यक्ष एवं हर्ष मेडिकल सेंटर के राजेष सिंह, उनकी पत्नी दिव्या सिंह, गोपाल फार्मा की खुषबू गोयल, आईडिएल फार्मा के हुष्न आरा पत्नी इकबाल, मेसर्स संस फार्मा के मोहम्मद फैसल इकबाल, के खिलाफ दर्ज हुआ? दोनों अधिकारियों को मीडिया की ओर से यह भी बताया गया, कि इन लोगों ने बस्ती से लेकर आजमगढ़ तक सिर्फ बोगस फर्म को ही नषे की दवा यानि कोडिन सीरप बेचा, ताकि भविष्य में किसी भी कार्रवाई से बचा सके, एक भी चलती फर्म को सीरप नहीं बेचा। नषे के कारोबार को बढ़ाने और उसके कारोबारियों को पनपने और बचाने में डीएलए और डीआई की महत्वपूर्ण भूमिका रही, इन दोनों ने पार्टनर की भूमिका अदा किया, पहले भी इन दोनों पर आरोपियों को बचाने का आरोप लग रहा था, आज भी लग रहा, जब कि यह विभाग प्रषासन के अंडर में है।
संगठित गिरोह की तरह नषे के कारोबार करने वालों ने गरीबों के घरों को बर्बाद और बच्चों की मौत पर करोड़ों कमाया। अगर इसकी एसआईटी और आईटी विभाग से जांच हो जाए तो धनवान और इज्जतदार कहे जाने वालों की चढढी औेर बनियाइन दोनों उतर जाएगी, और यह लोग जेल में नजर आएगें। सवाल यह नहीं हैं, कि कारोबार कागजों में हुआ या फिर गलत को सही करने के लिए बस्ती और आजमगढ़ में बोगस फर्म खोला गया, सवाल यह उठ रहा है, कि दवा का होलसेल का कारोबार करने वालों के सामने ऐसी कौन सी पैसे की मजबूरी आ गई, कि उन्हें नषे का कारोबार करना पड़ा, वैसे भी इनके पास पैसे की कोई कमी नहीं होती, यह अपने आप में ही धनवान होते है। तो फिर ऐसी कौन सी मजबूरी हो गई, जो इन नामचीन लोगों को नषे का कारोबार करना पड़ा, वह भी ऐसा कारोबार जिसके करने से न जाने कितने परिवार उजड़ जाते हैं, और न जाने कितने मासूम बच्चों की मौत हो जाती? क्या ऐसे लोगों को परिवार और अपनी बदनामी का कोई खौफ नहीं? इसी लिए ऐसे लोगों के खिलाफ समाज कड़ी से कड़ी कार्रवाई करने की मांग कर रहा, जो लोग पैसे के लिए कुछ भी कर सकते हैं, उन्हें समाज से बहिष्कार कर देना चाहिए। कहा भी जाता है, कि जो लोग पैसे के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं, उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए, कि उनका भी परिवार हैं। नषे का कारोबार करके परिवारों को तबाह और बर्बाद करने वाले यह भूल जाते हैं, इसका खामियाजा उन्हें या फिर उनके परिवार को भी किसी न किसी रुप में अवष्य मिलेगा। बचाव में उतरने वाला एक ऐसा विषेष वर्ग हैं, जिनपर पहले भी कहीं न कहीं और किसी न किसी रुप में आरोप लग चुके हैं, कहने का मतलब वही लोग बचाव कर रहे हैं, जो खुद कहीं न कहीं और कभी न कभी गलत रहें है। एक गलत व्यक्ति ही गलत व्यक्ति का साथ दे सकता है। चर्चा तो बचने के लिए चंदे के रुप में 20 लाख एकत्रित करने की भी है।
‘तीन’ भूखे ‘बच्चों’ को ‘पिता’ ने ‘करना’ चाहा ‘दफन’
-एक पिता जब भूखे बच्चों का दर्द नहीं सह पाया, तो घर के भीतर दो पुत्री और एक पुत्र का गढढ़े में दफन करना चाहा, चौकीदार मदन मोहन की तहरीर पर परसरामपुर पुलिस ने पिता मो. इरफान के खिलाफ बच्चों को जान से मारने के आरोप में मुकदमा दर्ज किया
बस्ती। सुनकर दिल दहल जाता है, कि कोई बाप अपने तीन मासूम बच्चों को इस लिए घर में गढढ़ा खोदकर दफन करना चाहता कि वह बच्चों को समय से भोजन नहीं दे पाता, जिसके चलते बच्चे भूखे रहते और बच्चों का देखभाल नहीं कर पाता। आसपास के लोग अगर 112 को न बुलाते तो तीनों बच्चे आज जिंदा न होते। जैसे ही बच्चों को गढढ़े में डालकर उस पर मिटटी डाल रहा था, वैसे ही पुलिस पहुंच गई, और तीनों बच्चों को जिंदा गढढ़े से निकाला। चौकीदार मदन मोहन की तहरीर पर पिता मो. इरफान पुत्र षुभराती निवासी नंदनगर चौरी।
तीन मासूम बच्चों के हत्या का प्रयास बच्चों के पिता के द्वारा करने का सनसनीखेज मामला सामने आया। 11 साल की हासिमी, नौ साल का पुत्र मो. अमीन और सात साल की पुत्री माहेजवी को 10 दिसंबर 25 को षाम साढ़े छह बजे बच्चों के पिता मो. इरफान ने लगभग जिंदा दफन कर दिया था, अगर 112 की पुलिस न पहुंच जाती। तहरीर में तो बच्चों के दफन करने के पीछे बच्चों को समय से भोजन न देना और बच्चों का देखभाल न करना बताया गया है। जबकि अगल-बगल के लोगों का कहना है, कि मो. इरफान बच्चों के लिए ठीक से भोजन की व्यवस्था नहीं कर पा रहा था, जिसके चलते उसने बच्चों की जीवनलीला को ही समाप्त करने का निर्णय लिया होगा। इसे एक पिता की मजबूरी समझी जाए या फिर गरीबी। जिस परिवार में जब पत्नी नहीं होती उस परिवार के बच्चों का यही हाल होता है। यह बच्चों की किस्मत ही थी, बच्चे बच गए, वरना मो. इरफान ने बच्चों को जिंदा दफन करने में कोई कोर कसर नहीें छोड़ा था, इसे कहते हैं, जिसका रखवाला उपर वाला होता है, उसे कोई नहीं मार सकता। इस तरह की घटना षायद पहली बार हुआ होगा।
‘आखिर’ अधिकारी ‘एक्शन’ मोड में कब ‘आएगें’ और कब ‘उन्हें’ गुस्सा ‘आएगा’?
बस्ती। जिले की जनता बार-बार सवाल कर रही है, कि अधिकारी आखिर एक्षन मोड में कब आएगें और कब उन्हें गुस्सा आएगा? पूरा जिला भ्रष्टाचार की आग में जल रहा है, लेकिन प्रषासनिक और विकास के अधिकारियों को लगता ही नहीं जिले में भ्रष्टाचार नाम की कोई चीज भी है। पहले के कमिष्नर, डीएम, सीडीओ और एडीएम को गलत बात सुनकर गुस्सा आता है, और त्वरित एक्षन मोड में आ जाते थे, लेकिन आज के अधिकारियों को कोई गुस्सा नहीं आता, अगर कोई मीडिया या आम आदमी भ्रष्टाचार या फिर गलत होने की जानकारी देता है, तो गुस्से में आना तो दूर की बात सुनना तक पसंद नहीं करते, हंसकर टाल जाते है। मीडिया ने जब डीएम और एडीएम को नषे के कारोबारियों के खिलाफ कार्रवाई न होने की बात कही, तो सुनने के बजाए कहा कि एफआईआर दर्ज हो गया, आईओ अपना काम करेगा, अब इन अधिकारियों को कौन समझाने जाए कि आईओ तो कानूनी कार्रवाई करेगा, लेकिन प्रषासनिक कार्रवाई तो प्रषासन के लोग ही करेंगें, बहरहाल, मीडिया को जब अपेक्षित जबाव नहीं मिला तो कहा कि मैडम सच तो यह है, कि आप लोग मीडिया की बात सुनना ही नहीं चाहती, जब कि मीडिया जिले में काम करने का एक आईडिएल माहौल बनाने में आप की मदद कर रहा। कहने लगी कि नहीं हम लोग आपकी बात को एवाइड नहीं कर रहे है। यही मीडिया हैं, जब तत्कालीन डीएम पंकज यादव से कहा था कि हमारे जिले में हवाई अडडे की जमीन पर लोगों ने न सिर्फ कब्जा कर रखा, बल्कि उसे तहसील और चकबंदी वालों की मदद से बेच भी रहे है। सुनते ही नाराज हो गए, लगभग कुर्सी से उठ गए थे, कहा कि हमारे जिले में हवाई अडडे की जमीन पर कब्जा। आप लोगों को जानकर हैरानी होगी कि उन्होंने त्वरित तत्कालीन डीडीसी बाजपेईजी को चंेबर में बुलाया कि कहा कि एक सप्ताह का समय देता हूं, अगर हवाई अडडे की जमीन हवाई अडडे के नाम नहीं हुई, तो पंखे से उल्टा टांग दूंगा। एक सप्ताह कोैन कहे, चार दिन में ही जमीन हवाई अडडे के नाम हो गई, खतौनी लाकर डीएम को दे दिया। उसके बाद हवाई अडडे की जमीन बिकनी बंद हो गई, जो काम पिछले कई सालों से नहीं हो रहा था, और जिसके चलते सरकारी जमीन बेची जा रही थी, वह काम मात्र चार दिन में हो गया। इसी लिए कहा जाता है, कि जब तक अधिकारियों के भीतर काम करने का जज्बा नहीं होगा, तब तक न तो अधिकारी और न जिला आईडिएल बन सकता है। पंकज यादव जैसा जज्बा तत्कालीन डीएम रोषन जैकब में भी था, जिले के अब तक के इतिहास में यह पहली ऐसी डीएम साबित हुई, जिनके कार्यकाल में जनता दरबार में मिलने के लिए टोकन जारी होता था, तीन दिन पहले किसी का नंबर नहीं आता है, स्कूली बच्चे मिलने जाते थे, मैडम, उन्हें चाकलेट देती थी। इनके कार्यकाल में काम करने का एक आईडिएल माहौल, जिले में बना था, यह बात वर्तमान डीएम को भी बताया जा चुका। कहना गलत नहीं होगा कि कमिष्नर और डीएम अपने उस आदेष की भी समीक्षा तक नहीं करते, जो उन्होंने जनता दरबार में फरियादियों के लिए किया था। अधिकारियों को पता ही नहीं रहता कि किस अधिकारी ने उनके आदेष का पालन किया और किसने नहीं किया? क्यों कि ऐसे अधिकारी फरियाकदयों के प्रति संवेंदनषील नहीं होते। कमिष्नर और डीएम को तब पता चलता, जब फरियादी दुबारा यह फरियाद करने आता है, कि साहब आप ने जो आदेष किया था, उसका कुछ नहीं हुआ, फिर आदेष होता और फिर कुछ दिन बाद फरियादी जनता दरबार में पहुंचता है, और कहता है, कि साहब अभी तक आपके आदेष का पालन एसडीएम ने नहीं किया। फिर आदेष होता और फिर फरियादी यह कहने आता हैं, कि साहब क्या करुं, कोई सुनता ही नहीं। अगर साहब लोग दूसरी बार के आने के बाद ही एसडीएम को फोन लगाते और कहते, थे, कि अगर इस बार पालन नहीं हुआ तो तुम्हारी खैर नहीं। जिस तरह से फरियादियों के प्रति अधिकारियों का रर्वैया होता जा रहा है, उससे सरकार की छवि तो खराब हो ही रही है, साथ ही अधिकारी की भी छवि खराब होती। मजबूर होकर पीड़ितांे को यह कहना पड़ता है, ऐसे सीएम और अधिकारी के होने से क्या फायदा जब इनकी बात एसडीएम और लेखपाल नहीं सुनते।
‘रैन बसेरे’ की ‘होगी’ जियो ‘टैगिंग’ःएडीएम
-‘प्रषासन’ ने की ‘कमजोर वर्ग’ को ‘ठंड’ से ‘बचाने’ की ‘तैयारी’
बस्ती। अत्यधिक ठण्ड एवं शीतलहरी से उत्पन्न होने वाली समस्याओं के कारण निराश्रित असहाय एवं समाज के कमजोर वर्ग के असुरक्षित व्यक्तियों को राहत पहुंचाने हेतु कम्बल वितरण एवं रैन बसेरों की व्यवस्था हेतु कार्यवाही किये जाने की अपेक्षा है। उक्त जानकारी देते हुए अपर जिलाधिकारी (वि०/रा०) प्रतिपाल सिंह चौहान ने मुख्य चिकित्साधिकारी, समस्त उप जिलाधिकारी एवं समस्त अधिशासी अधिकारी, नगर पालिका परिषद/नगर पंचायत को निर्देषित किया है कि इस हेतु पर्याप्त व्यवस्था सुनिष्चित की जायें।
उन्होने बताया है कि आश्रयहीन व्यक्तियों हेतु कम्बल वितरण एवं रैन बसेरों की पर्याप्त व्यवस्था सुनिश्चित की जाये। कोई भी व्यक्ति रात में सड़क अथवा फुटपाथ पर सोने के लिए बाध्य न हो। इन रैन बसेरों, शेल्टर होम में रुकने वाले कमजोर वर्ग के लोगों को ठण्ड से बचाने के लिए आवश्यक समस्त उपाय में रुकने वाले कमजोर वर्ग के लोगों को ठण्ड से बचाने के लिए आवश्यक समस्त उपाय जैसे-गद्दे, कम्बल, स्वच्छ पेयजल, शौचालय एवं किचन आदि का प्रबन्ध निःशुल्क किया जाये तथा इन रैन बसेरों के आस-पास अधिक ठंड पड़ने पर अलाव जलाने की व्यवस्था की जायें। उन्होने बताया है कि प्रत्येक रैन बसेरों/शेल्टर होम के लिए एक उपायुक्त वरिष्ठता का नोडल अधिकारी नामित किये जाये, जिस पर रैन बसेरे/शेल्टर होम के लिए संचालन का उत्तरदायित्य होगा। इस हेतु नगर क्षेत्र में अपर नगर आयुक्त, नगर निगम एवं समस्त अपर नगर मजिस्ट्रेट जनपद बस्ती तथा तहसील क्षेत्रों में समस्त उप जिलाधिकारी एवं समस्त अधिशासी अधिकारी नगर पालिका परिषद/नगर पंचायतें नामित किये जाते है। उन्होने बताया कि समस्त रैन बसेरों में केयर टेकर भी तैनात किये जाये, जिसका नाम, पदनाम, मोबाइल नम्बर रैन बसेरों के गेट पर अवश्य दर्शाया जाये। रात्रि में जनपद के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा रैन बसेरों का औचक निरीक्षण अवश्य किया जाये। रैन बसेरों के केयर टेकर के पास निरीक्षण रजिस्टर भी रखा जाये, जिसका निरीक्षण अधिकारी अपनी टिप्पणी भी अंकित करें। समस्त चिकित्सालयों, मेडिकल कॉलेजों, बस स्टेशनों, रेलवे स्टेशनों, श्रमिकों के कार्य स्थलों, एवं बाजारों में अनिवार्य रुप से रैन बसेरों संचालित किये जाये। इस हेतु स्वास्थ्य विभाग. नगर निगम एवं विकास प्राधिकरण आदि विभाग अपेक्षित सहयोग करेंगे। उन्होने बताया है कि रैन बसेरा में समस्त सुविधाएं अच्छी व गुणवत्ता पूर्ण हो तथा इसमें साफ-सफाई, साफ सुधरे बेड सीट, कम्बल, गरम पानी तथा सुरक्षा आदि की व्यवस्था की जाये। वर्तमान में मच्छरों के कारण डेंगू के बढ़ते प्रकोप को दृष्टिगत रखते हुये निर्देशित किया जाता है कि रैन बसेरों का सेनिटाईजेशन एवं फागिंग प्रतिदिन अनिवार्य रूप से कराया जाये। रैन बसेरों में सोशल डिस्टेसिंग का अनिवार्य रुप से पालन किया जाये। रैन बसेरों में सोशल डिस्टेसिंग के अनुपालन में कठिनाई को दृष्टिगत रखते हुये आवश्यकतानुसार रैन बसेरों की संख्या बढ़ायी जाए। बताया कि रैन बसेरों में महिलाओं एवं पुरुषों को सोने व शौचालय आदि की पृथक-पृथक व्यवस्था, शीतलहरी एवं ठण्ड से बचाव कार्यक्रमों का व्यापक प्रचार-प्रसार भी किया जाए तथा स्थानीय समाचार पत्रों, इलेक्ट्रानिक मीडिया आदि के माध्यम से इससे सम्बन्धित सूचनायें प्रचारित करायी जाये, ताकि शासन द्वारा जन-सामान्य की ठण्ड से बचाव हेतु किये जा रहे व्यापक उपायों की जानकारी आम-जन को हो सके। शीतलहर के दौरान इसके बचाव हेतु रैन बसेरों के आस-पास एवं अन्य सार्वजनिक स्थानों पर समय से पर्याप्त अलाव प्रतिदिन जलाने की समुचित व्यवस्था सुनिश्थित की जाये। उन्होने बताया कि शीतलहरी में सामाजिक तत्व भी सक्रिय हो जाते है। अतः रैन बसेरों की सुरक्षा व्यवस्था भी कराना सुनिश्चित करें। उन्होने बताया कि शासन द्वारा जारी दिशा निर्देशों के परिप्रेक्ष्य में राहत कार्यो के क्रियान्वयन सम्बन्धी सूचना/विवरण यथा कंबल वितरण, अलाव जलाना एवं संचालित रैन बसेरों की व्यवस्था सुनिश्चित किये जाने की स्थिति तथा विवरण राहत आयुक्त कार्यालय की वेबसाइट पर उपलब्ध करायी जायें। प्रत्येक रैन बसेरे की जियो टैगिंग करते हुये फोटोग्राफ आपदा प्रहरी ऐप के माध्यम से अपलोड किये जायें। उन्होने कहा है कि उक्त दिशानिर्देशों का अक्षरशः अनुपालन करते हुये रैन बसेरों/शेल्टर होम का संचालन तत्काल सुनिश्चित किया जाये तथा रैन बसेरों शेल्टर होम में तैनात किये गये केयर टेकर का नाम/पदनाम/मोबाइल नम्बर की सूची कलेक्ट्रेट स्थिति जिला आपदा प्रबन्धन प्रकोष्ठ की उपलब्ध कराया जाये।
‘योग’ ही ‘जीवन’ःडा. नवीन सिंह
बस्ती। जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान बस्ती द्वारा आयोजित जनपद स्तरीय योगाभ्यास प्रतियोगिता 2025-26 का आयोजन 12 दिसम्बर 2025 को उत्साहपूर्ण वातावरण में सम्पन्न हुआ। इस प्रतियोगिता में योगाचार्य डॉ. नवीन सिंह, अध्यक्ष (पूर्वी जोन), इंडियन योग एसोसिएशन उत्तर प्रदेश चौप्टर, को निर्णायक मंडल के सम्मानित सदस्य के रूप में आमंत्रित किया गया। आयोजक संस्था की ओर से नोडल प्रभारी अमन सेन तथा उप शिक्षा निदेशक प्राचार्य संजय कुमार शुक्ल ने डॉ. सिंह का स्वागत करते हुए उन्हें यह विशेष जिम्मेदारी प्रदान की। प्रतियोगिता में विभिन्न विद्यालयों के प्रतिभागियों ने उत्कृष्ट योगाभ्यास प्रस्तुत किया। निर्णायक मंडल द्वारा मूल्यांकन के बाद निम्न परिणाम घोषित किए गए। प्रथम स्थान हरीश कुमार जूनियर हाई स्कूल शेरवा डीह सेकेंड, विक्रमजोत। द्वितीय स्थान अमित कुमार प्राथमिक विद्यालय रामपुर रेवती। तृतीय स्थान अजीत कुमार वर्मा प्राथमिक विद्यालय चरकैला कुदरहा
डॉ. नवीन सिंह ने बताया कि प्रतिभागियों का उत्साह, अनुशासन और योग के प्रति समर्पण अत्यंत प्रेरणादायक रहा। उन्होंने कहा कि “योग ही जीवन है, और इसे जनदृजन तक पहुँचाने का संकल्प हम सभी को मिलकर पूरा करना होगा। कार्यक्रम के सफल संचालन में बस्ती की पूरी टीम, अध्यापकों और योग प्रशिक्षकों का महत्वपूर्ण योगदान रहा। प्रतियोगिता के माध्यम से बच्चों में स्वास्थ्य, संतुलन और मानसिक एकाग्रता के प्रति जागरूकता बढ़ाने का सकारात्मक संदेश प्रसारित हुआ। इस अवसर पर डायट प्रवक्ता डॉ गोविन्द प्रसाद, डॉ रविनाथ, कल्याण पाण्डेय, अलीउद्दीन खान, कुलदीप चौधरी, वर्षा पटेल, अमन सेन, सरिता चौधरी, वंदना चौधरी, मो इमरान खान, अनिल चौधरी, नवनीत कुमार आदि उपस्थित रहे है।
