क्या ‘दिव्या सिंह’ ने सिर्फ ‘नषे’ का ‘कारोबार’ करने को ‘ही’ लिया ‘लाइसेंस’?

 क्या ‘दिव्या सिंह’ ने सिर्फ ‘नशे’ का ‘कारोबार’ करने को ‘ही’ लिया ‘लाइसेंस’?

-आखिर राजेष सिंह की पत्नी दिव्या सिंह ने बोगस गणपति फार्मा को ही क्यों बेचा 48 लाख का कोडीनयुक्त सीरप? क्यों नहीं इन्होंने कोडीनयुक्त सीरप के आलावा एक पत्ता पैरासीटामाल का कारोबार नहीं किया, जबकि इनके पास होलसेल का लाइसेंस

-बीसीडीए के अध्यक्ष राजेष सिंह ने भी बोगस फर्म गणपति फार्मा को बेचा 49 हजार कोडीनयुक्त सीरप

-गोरखधंधा करने के लिए बोगस फर्म गणपति फार्मा को नषे के कारोबारियों ने मिलकर खोला, यूपी जीएसटी नंबर नहीं लिया, सीजीएसटी यानि केंद्र से पोंर्टल पर आन लाइन सीजीएसटी का नंबर लिया, यह इस लिए किया ताकि छानबीन न हो

-भारी रकम लेकर पहले डीएलए और डीआई ने बोगस फर्म गणपति फार्मा को लाइसेंस दिया, और इसी आधार पर नषे के कारोबारियों ने सीजीएसटी नंबर प्राप्त किया, जबकि यूपीजीएसटी और सीजीएसटी दोनों का पंजीकरण होना चाहिए,

-अगर यूपी जीएसटी में पंजीकरण कराने के लिए आवेदन किया होता तो पकड़ में आ जाता, क्यों कि यूपीजीएसटी का नंबर आईडी और स्थलीय जांच के बाद ही मिलता, और सीजीएसटी में बिना आईडी और स्थलीय जांच के मिल जाता

बस्ती। जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे नषे के कारोबारियों की पोल खुलती जा रही है। जिस तरह चार लोगों ने मिलकर नषे का कारोबार करने के लिए खेल खेला, उससे बड़े-बड़े खिलाड़ी दंग रह गए। ऐसा लगता है, कि मानो अमीर बनने के लिए कुछ नामचीन लोगों ने नषे का कारोबार करने का गोरखधंधा किया। आप लोगों को जानकर हैरानी होगी कि जीएसटी पोर्टल से मिली जानकारी के अनुसार बीसीडीए के अध्यक्ष एवं हर्ष मेडिसिन के थोक विक्रेता राजेष सिंह की पत्नी दिव्या सिंह के नाम यष मेडिसिन सेंटर खीरीघाट ने कोडीनयुक्त सीरप के कारोबार के आलावा और कोई कारोबार नहीं किया, इन्होंने एक पत्ता पैरासीटामाल तक नहीं बेचा, और 48 लाख का सीरप अवष्य बेच दिया, वह भी गणपति नामक ऐसे बोगस फर्म को बेचा जो अस्तित्व में ही नहीं है। अब सवाल उठ रहा है, कि क्या दिव्या सिंह ने सिर्फ नषे का कारोबार करने के लिए ही होलसेल का लाइसेंस लिया, कम से जीएसटी पोर्टल तो यही कह रहा है। पति और पत्नी का बोगस फर्म को लाखों रुपये का सीरप बेचना यह बताता है, कि यह सबकुछ एक संगठित होकर सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाने/बनाने के लिए हजारों गरीब परिवारों को बर्बाद किया गया। इन लोगों की बर्बादी में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका पार्टनर के रुप में डीएलए और डीआई ने अदा किया। अब जरा अंदाजा लगाइए कि बोगस फर्म के जरिए गोरखधंधा करने के लिए गिरोह के लोगों ने जानबूझकर गणपति फार्मा का यूपीजीएसटी में पंजीकरण नहीं कराया, क्यों कि गिरोह के सदस्यों और मुखिया को अच्छी तरह मालूम था, कि अगर यूपीजीएसटी में आवेदन किया तो निरस्त हो जाएगा, क्यों कि यूपीजीएसटी में जब भी कोई आवेदन करता है, तो सबसे पहले उसके आईडी की जांच पड़ताल होती है, उसके बाद एक पूरी टीम स्थलीय निरीक्षण करने जाती है, और देखती है, कि जिस व्यक्ति ने जिस स्थान के लिए आवेदन किया, वह व्यक्ति और स्थान हैं, कि नहीं, अगर नहीं मिलता तो आवेदन निरस्त हो जाता हैं, इसी लिए गिरोह के लोगों ने यूपीजीएसटी में आवेदन नहीं किया, सीजीएसटी यानि केंद्र की जीएसटी में आनलाइन आवेदन किया, गिरोह के सरगना को अच्छी तरह मालूम था, कि सीजीएसटी में आवेदन करने पर न तो कोई आईडी की जांच पड़ताल होती है, और न मौका मुआयना ही किया जाता है। इसी का फायदा नषे का कारोबार करने वाले गिरोह ने उठाया, और सीजीएसटी नंबर ले लिया। जबकि कोई भी होलसेल का कारोबार करने के लिए यूपीजीएसटी और सीजीएसटी नंबर दोनों का होना अनिवार्य है। यहां पर इस लिए बार-बार डीएलए और डीआई पर भारी रकम लेकर लाइसेंस देने का आरोप लग रहा, क्यों कि अगर यह लोग ईमानदार होते तो बिना यूपीजीएसटी के लाइसेंस ही नहीं देते, चूंकि इन दोनों ने नषे का कारोबार करने वालों का साथ पार्टनर की तरह दिया, इस लिए यह दोनों भी उतना ही दोषी और गुनहगार है, जितना नषे का कारोबार करने वाले। इस पूरे मामले में यूपीजीएसटी की भारी चोरी की गई, इसी लिए इस पूरे प्रकरण की जांच एसआईटी और आईटी विभाग से कराने की मांग आम जनमानस और अधिवक्तताओं के द्वारा हो रही है। गिरोह के लोग भले ही चाहें जितना कहे कि उन्हें फंसाया गया, लेकिन समाज अब नषे के कारोबारियों का सच जान चुका है। आमजन में यह भी चर्चा हो रही है, कि आखिर पति और पत्नी दोनों के नाम होलसेल का लाइसेंस लेने की क्या आवष्यकता पड़ गई? सवाल तो डीएलए और डीआई पर भी उठ रहे है। भाजपा के जिलाध्यक्ष के करीबी ने खुदरा दवा की विक्रय करने के लिए लाइसेंस के लिए आवेदन किया, जाहिर सी बात है, अगर जिलाध्यक्ष के करीबी है, तो सिफारिष भी किया होगा, आप लोगों को जानकर हैरानी होगी कि लाइसेंस तब जारी हुआ, जब डीआई ने पूरी तरह छानबीन कर लिया। एक तरफ डीएलए और डीआई एक बेरोजगार को लाइसेंस देने के लिए महीनों दौड़ाया, वहीं पर इन्हीं दोनों ने बोगस फर्म गणपति बिना किसी जांच पड़ताल के होलसेल का लाइसेंस जारी कर दिया। इतना सबकुछ जानने के बाद अगर कोई नेता, अधिकारी और पत्रकार नषे का कारोबार करने वाले के बचाव में उतरता तो ऐसे लोगों को समाज और मीडिया डीएलए और डीआई की तरह समझेगी।     

‘पकंज चौधरी’ के ‘अध्यक्ष’ बनते ही ‘हवा’ में ‘उड़ने’ लगेंगे ‘संजय चौधरी’!

-पंकज चौधरी के अध्यक्ष बनते ही संजय चौधरी के आवास और कार्यालय पर उसी तरह हूजूम जुटने लगेगा, जिस तरह पूर्व सांसद के आवास पर जुटता, तब संजय चौधरी का अधिकांष समय पंकज चौधरी के साथ भाजपा कार्यालय लखनउ में बीतेगा

-किस्मत के धनी जिला पंचायत अध्यक्ष संजय चौधरी के किस्मत का सितारा उस समय और भी चमकने लगेगा जब पंकज चौधरी प्रदेष अध्यक्ष बनेगें, माना जाता है, कि इनके किस्मत का सितारा चमकने में मात्र कुछ ही घंटे रह गएं

-संजय चौधरी वह व्यक्ति हैं, जिन्होंने उस पूर्व सांसद हरीष द्विवेदी को अपना नेता मानने से इंकार कर दिया, जिन्होंने इनकी किस्मत को चमकाते हुए जिले के प्रथम नागरिक की कुर्सी पर बैठाया, इन्होंने मीडिया से कहा था, कि उनका नेता हरीष द्विवेदी नहीं बल्कि पंकज चौधरी

-वैसे भी संजय चौधरी को पंकज चौधरी का सबसे करीबी माना जाता हैं, क्यों कि पंकज चौधरी जब भी बस्ती आए, संजय चौधरी के आवास पर अवष्य गए, एक तरह से संजय चौधरी के गाड फादर के रुप में पंकज चौधरी को लोग जानते

-अगर संजय चौधरी के किस्मत का दरवाजा एक बार फिर खुल गया, तो इनके कदमों में दौलत का ढ़ेर होगा, तब इनका क्षेत्र जिला पंचायत बस्ती नहीं पूरा प्रदेष होगा, जहां से भी चाहेंगे अध्यक्षजी का हवाला देकर ब्रीफकेष ले आएगें

-भले ही यह हरीष द्विवेदी और गिल्लम चौधरी के वफादार न साबित हुए, लेकिन पंकज चौधरी के वफादार अवष्य साबित होगें, क्यों कि इन्हें पंकज चौधरी से लाभ जो लेना हैं, प्रमुखी और विधायकी चुनाव में इनका जलवा देखने लायक होगा

-प्रमुख और विधायक का टिकट पाने के लिए लोग इनके आवास पर ब्रीफकेष लेकर लाइन में खड़े हुए मिलेगें, तब इन्हें जिला पंचायत अध्यक्ष का पद बहुत छोटा लगने लगेगा, यह खुद टिकट पा सकते है, और दूसरों को भी दिला सकतें

बस्ती। किस्मत के धनी जिला पंचायत अध्यक्ष संजय चौधरी की किस्मत ने अगर एक बार फिर कहीं साथ दे दिया तो लोग इन्हें जमीं पर नहीं बल्कि हवा में उड़ते देखेंगंे, बस इनके नेता पंकज चौधरी को प्रदेष अध्यक्ष बनने की देरी है। चंद घंटों में पंकज चौधरी और संजय चौधरी दोनों की लाटरी लगने वाली है। अगर पंकज चौधरी प्रदेष अध्यक्ष बन गए, तो सबसे अधिक खुषी संजय चौधरी को होगी, यह खुषी अपने नेता के प्रदेष अध्यक्ष बनने को लेकर कम और लूटने की अधिक होगी। तब इन्हें जिला पंचायत अध्यक्ष का पद छोटा नजर आने लगेगा। पंकज चौधरी के अध्यक्ष बनते ही संजय चौधरी के आवास और कार्यालय पर उसी तरह हूजूम जुटने लगेगा, जिस तरह पूर्व सांसद के आवास पर जुटता, तब संजय चौधरी का अधिकांष समय पंकज चौधरी के साथ भाजपा कार्यालय लखनउ में या फिर उनके साथ में बीतेगा। भ्रष्टाचार में पीएचडी करने वाले संजय चौधरी के किस्मत का सितारा उस समय और भी चमकने लगेगा जब पंकज चौधरी प्रदेष अध्यक्ष बनेगें, माना जाता है, कि इनके किस्मत का सितारा चमकने में मात्र कुछ ही घंटे ही रह गएं हैं। संजय चौधरी वह व्यक्ति हैं, जिन्होंने उस पूर्व सांसद हरीष द्विवेदी को अपना नेता मानने से इंकार कर दिया, जिन्होंने इनकी किस्मत को पहली बार चमकाया और जिले के प्रथम नागरिक की कुर्सी पर बैठाया। इन्होंने मीडिया से कहा था, कि उनका नेता सांसद हरीष द्विवेदी नहीं बल्कि पंकज चौधरी है। वैसे भी संजय चौधरी को पंकज चौधरी का सबसे करीबी माना जाता हैं, क्यों कि पंकज चौधरी जब भी बस्ती आएं हैं, संजय चौधरी के आवास पर नाष्ता या फिर भोजन अवष्य किया। एक तरह से पंकज चौधरी को संजय चौधरी अपना गाड फादर मानते आ रहें है।


अगर संजय चौधरी के किस्मत का दरवाजा एक बार फिर खुल गया, तो इनके कदमों में दौलत का ढ़ेर लग जाएगें, भाजपा को फायदा हो या न हो, लेकिन संजय चौधरी का खजाना अवष्य भर जाएगा। तब इनका क्षेत्र जिला पंचायत बस्ती नहीं बल्कि पूरा प्रदेष होगा, जहां से भी चाहेंगे अध्यक्षजी का हवाला देकर ब्रीफकेष लेकर चले आएगें। तब लोगों को पाला बदलने में देर नहीं लगेगा। भले ही यह हरीष द्विवेदी और गिल्लम चौधरी के वफादार साबित नहीं हो पाएं, लेकिन पंकज चौधरी के वफादार अवष्य साबित होगें, और यह वफादारी लाभ पाने के लिए होगी। तब यह किस व्यक्ति को प्रमुखी और किसे विधायकी का टिकट मिलेगा, निर्णय करने लगेंगे। तब इनका जलवा देखने लायक होगा। प्रमुख और विधायक का टिकट पाने के लिए लोग इनके आवास पर ब्रीफकेष लेकर लाइन में खड़े हुए दिखाई देगें, यह खुद टिकट पा सकेगें और दूसरों को भी दिला सकेगें। वैसे यह भाजपा है, यहां पर जो दिखता है, वह होता नहीं और जो नहीं दिखता वह होता है। चमत्कार करने में भाजपा के नेताओं को माहिर माना जाता है। भले ही चाहें पंकज चौधरी के सिर पर ताज बैठाने की तैयारी हो रही हो, लेकिन अंतिम समय में किसी और के सिर पर ताज सजने से इंकार भी नहीं किया जा सकता। अगर कहीं यह ताज संजय चौधरी के विरोधी माने जाने वाले या फिर किसी और के सिर पर सज गया तो सबकुछ उलट-पलट जाएगा। तब संजय चौधरी का करोड़पति, अरबपति और विधायक बनने और दूसरों को प्रमुख एवं विधायक बनाने का सपना अधूरा ही रह जाएगा। कहने का मतलब सबकुछ संजय चौधरी और पंकज चौधरी के किस्मत पर निर्भर करता है। अगर संजय चौधरी की किस्मत जग गई तब वही अधिकारी इनसे मिलने के लिए समय मांगेंगे, जिनके पास यह खुद तो उनके आवास या फिर कार्यालय जाते थे। देखा जाए सबसे अधिक किस्मत वाले बेईमान और भ्रष्टाचारी ही होते हैं। वैसे भी इन लोगों के दरवाजों पर ही किस्मत बार-बार दरवाजा खटखटाती है। बार-बार सवाल उठ रहा है, कि आखिर क्यों बेईमानों और भ्रष्टाचारियों की ही लाटरी बार-बार निकलती?

‘क्यों’ भाजपा ‘मतदान’ कराने का ढ़कोसला ‘करती’?

बस्ती। अपने आप को दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी कहलाने का एचएमबी बजाने वाली भाजपा पर सवाल उठ रहे हैं, कि क्यों पार्टी जिलाध्यक्ष और प्रदेष अध्यक्ष का चयन मतदान प्रक्रिया के तहत करने का ढ़कोसला करती है? जब पर्ची के जरिए जिलाध्यक्ष और प्रदेष अध्यक्ष का निर्णय होना है, तो फिर पार्टी क्यों पूरे प्रदेष को भ्रम में उलझाए रखती है? सवाल उठ रहा है, कि आखिर कब तक जिलाध्यक्ष का निर्णय लखनउ और प्रदेष अध्यक्ष का निर्णय दिल्ली से होता रहेगा? इसी निर्णय के चलते न जाने कितने योग्य जिलाध्यक्ष नहीं बन पाए। पता नहीं क्यों पार्टी जिलाध्यक्ष और प्रदेष अध्यक्ष का चयन चुनाव के जरिए नहीं कराना चाहती? प्रक्रिया तो निभाती है, लेकिन मतदान नहीं कराती। जिले और प्रदेष स्तर पर जो अंसतोष उभर कर सामने आता है, वह मतदान के जरिए चयन न करने को लेकर होता। जिला स्तर पर जिस तरह प्रत्याषियों से जिलाध्यक्ष बनने के लिए यह कहकर नामांकन करवााया जाता है, कि पार्टी इस बार जिलाध्यक्ष का चयन मतदान के जरिए करेगी। ऐसे-ऐसे योग्य प्रत्याषी नामांकन करते हैं, जिन्हें कार्यकर्त्ता और पार्टी के नेता भी पसंद करते हैं, और कहते भी है, कि जिले को इस बार योग्य जिलाध्यक्ष मिलेगा। लेकिन जब मतदान करने की बारी आती है, तो कह दिया जाता है, 12 बजे कार्यालय पहुंचइए, लखनउ से पर्ची आएगी। अनेक कार्यकर्त्ता कहते हैं, कि जब सबकुछ लखनउ वाले फैसला करेगें तो जिले वाले क्या करेगें? मतदान होने से कम से कम उन प्रत्याषियों और कार्यकर्त्ताओं में असंतोष तो नहीं होगा, जो इस बात का आस लिए रहते हैं, कि अबकी उनकी बारी है। अगर मतदान के जरिए चुनाव होगा तो कार्यकर्त्ताओं को लगेगा कि कम से कम उसकी पंसद का जिलाध्यक्ष हुआ। जिलाध्यक्ष का चुनाव हो जाने से कम से कम उन लोगों के सच का भी पता चलता है, जो यह कहते हैं, कि अगर चुनाव हो गया तो वही जिलाध्यक्ष होते। पार्टी एक तरह से मतदान करने का भी अधिकार छीनती है। जब विवेकानंद मिश्र के नाम की पर्ची लखनउ से आई तो अनेक लोग ऐसे भी रहे, जिन्होंने खुलकर कहा कि अगर मतदान हो जाता तो विवेकानंद मिश्र किसी भी कीमत पर अध्यक्ष नहीं बन पाते। उपर से थोपने का सबसे अधिक खामियाजा पार्टी को ही भुगतना पड़ता है। अगर पार्टी कार्यकर्त्ताओं की पसंद का जिलाध्यक्ष नहीं बनाएगी तो असंतोष उभरना लाजिमी है। पार्टी में आज भी अनेक ऐसे कार्यकर्त्ता और नेता है, जो विवेकानंद मिश्र के क्रियाकलापों को पसंद नहीं करते। पार्टी ने भले ही किसी के पंसद का जिलाध्यक्ष बना दिया, लेकिन अंसतोष समाप्त नहीं हुआ। कार्यकर्त्ताओं का कहना है, कि अगर पार्टी को किसी को थोपना ही है, तो किसी के खास को नहीं थोपना चाहिए। ऐसे को जिलाध्यक्ष बनाना चाहिए, जिसके पास संगठन चलाने की क्षमता और योग्यता हो। ऐसे लोगों का चयन करना चाहिए जो कार्यकर्त्ताओं का खुद तो सम्मान करें ही और जिले के अधिकारियों से भी करवाए। लेकिन यहां पर तो एक मंडल अध्यक्ष चौकी या फिर थाने से अपनी या फिर कार्यकर्त्ता की मोटर साइकिल तक नहीं छुड़वा सकता। जिलाध्यक्ष के कहने पर एसओ मुकदमा तक दर्ज नहीं करता। कहा भी जाता है, अगर किसी भी पार्टी का जिलाध्यक्ष मजबूत होता है, तो उसका प्रभाव सरकार और कार्यकर्त्ताओं पर पड़ता। सवाल, उठ रहा है, कि कार्यकर्त्ता क्यों चुनाव में पार्टी के प्रत्याषी के लिए घर से निकले, जिसने एक अदद ढंग का जिलाध्यक्ष भी नहीं दिया। विधानसभा और लोकसभा चुनाव में पार्टी की जो दुर्गति हुई, उसके पीछे खाटी कार्यकर्त्ताओं का नजरअंदाज करना, जब भी खाटी कार्यकर्त्ताओं को पद देने की बारी आती है, तो उनके स्थान पर आयातित नेताओं के चालक, रसोईया चपरासी और मनईतनई को खड़ा कर दिया जाता। पार्टी को यह नहीं भूलना चाहिए, वे लोग कभी पार्टी के प्रति वफादार नहीं हो सकते जो पद पाने के लिए पार्टी में आते हैं, वफादार वही कार्यकर्त्ता हो सकता है, जिसने अपनी पूरी जवानी पार्टी के नाम कर दी हो। अगर पार्टी ऐसे लोगों को भूलकर आयातित लोगों पर भरोसा करेगी तो सांसद भी हारेगें और चार-चार विधायक भी हारेगंे। अगर इसी तरह कार्यकत्ताओं में असंतोष पनपता रहा तो 27 में पार्टी का जो एक मात्र विधायक बचे हैं, उससे भी कहीं हाथ न धोना पड़े। कहा भी जाता है, किसी भी पार्टी का प्रदेष अध्यक्ष चाहें जैसा हो, अगर जिले के अध्यक्ष ठीक नहीं रहा तो नुकसान तो पार्टी का ही होगा। इसी लिए बार-बार कहा जा रहा है, जिलाध्यक्ष वही होना चाहिए, जो कार्यकर्त्ताओं की पंसद का हो, न कि किसी खास के पसंद का हों।

‘बहादुरपुर’ के ‘बीडीओ’ पर लगा ‘25 हजार’ का ‘जुर्माना’

बस्ती। जनसूचना अधिकार के तहत सूचना न देना कितना भारी पड़ सकता है, यह तत्कालीन बहादुरपुर के बीडीओ विनय द्विवेदी के उपर लगे 25 हजार जुर्माने के रुप में देखा जा सकता है। यह जुर्माना सुदृष्टिनरायन त्रिपाठी को मांगी गई जानकारी न देने के आरोप में राज्य सूचना आयुक्त मोहम्मद नदीम ने लगाया। राज्य सूचना आयोग में यह प्रकरण 21 जुलाई 23 से ही चल रहा है। 11 सुनवाई हुई, लेकिन एक भी सुनवाई में बीडीओ आयोग के समक्ष उपस्थित नहीं हुए। पांच जून 25 की सुनवाई में हाजिर हुए। कारण बताओ नोटिस का भी बीडीओ ने कोई जबाव नहीं दिया। आयोग का मानना है, कि ऐसा प्रतीत होता है, जनसूचना अधिकारी आरटीआई एक्ट के प्रति गंभीर नहीं है। इस लिए बीडीओ को अवहेलना के आरोप में 25 हजार का जुर्माना लगाया। यह जुर्माना बीडीओ के वेतन से वसूला जाएगा। कहा भी जाता है, वही अधिकारी सूचना नहीं देता जो चोर होता है। किसी भी अधिकारी को यह नहीं भूलना चाहिए कि वह जुर्माना देकर बरी हो सकता है, जुर्माना देने के बाद भी उसे हर हाल में इच्छित जानकारी देनी होती है। जुर्माना लगने से अधिकारी का प्रमोषन रुक जाता है।

‘सेरेब्रल’ पाल्सी ‘पीड़ित’ बच्चों को मिला ‘उपचार’

बस्ती। आस्था आयुर्वेदिक एक्यूप्रेशर हॉलिस्टिक सेंटर के तत्वावधान में मूंग बाधित विद्यालय रिहैब प्लस डे केयर सेंटर, सुरती हट्टा, पुरानी बस्ती में एक निरूशुल्क चिकित्सा शिविर का आयोजन किया गया। इस शिविर में सेरेब्रल पाल्सी (सीपी चाइल्ड) सहित अन्य न्यूरोलॉजिकल समस्याओं से पीड़ित 26 बच्चों एवं उनके अभिभावकों को न केवल रोगों के बारे में जागरूक किया गया, बल्कि उन्हें एक्यूप्रेशर पद्धति से उपचार भी प्रदान किया गया। शिविर में मुख्य चिकित्सक के रूप में उपस्थित प्रो. डॉ. नवीन सिंह ने बताया कि सेरेब्रल पाल्सी जैसी बीमारियाँ लाइलाज नहीं हैं। यदि सही समय पर और सही पद्धति से उपचार किया जाए तो बच्चों की स्थिति में उल्लेखनीय सुधार संभव है। उन्होंने कहा कि मस्तिष्क की कार्यप्रणाली को समझते हुए बिना दवा के एक्यूप्रेशर विद्या के माध्यम से उपचार किया जाए तो निश्चित रूप से मरीजों को लाभ मिल सकता है। उन्होंने विशेष रूप से इस बात पर जोर दिया कि सेरेब्रल पाल्सी से पीड़ित बच्चों का उपचार जितना जल्दी शुरू किया जाए, परिणाम उतने ही बेहतर होते हैं।


डॉ. सिंह ने अभिभावकों को बच्चों के नियमित अभ्यास, धैर्य और निरंतर उपचार के महत्व के बारे में भी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि केवल चिकित्सा शिविर तक सीमित न रहकर, घर पर भी नियमित रूप से बताए गए बिंदुओं पर एक्यूप्रेशर करने से बच्चों की शारीरिक और मानसिक क्षमता में सुधार देखा जा सकता है। इस अवसर पर केंद्र की संचालिका नीलम मिश्रा ने कहा कि एक्यूप्रेशर एक अद्भुत और सरल चिकित्सा पद्धति है, जिसे हर व्यक्ति को जानना चाहिए। उन्होंने बताया कि यह उपचार पद्धति सुरक्षित है और इसे घर पर भी सीखा एवं अपनाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि उनके सेंटर पर जिन बच्चों का उपचार किया गया है, उनमें सकारात्मक परिणाम दिखाई देने लगे हैं, जो अभिभावकों के लिए आशा की नई किरण है। चिकित्सा शिविर के दौरान रागिनी पांडे, शताक्षी, अश्क्रिता मिश्रा सहित अन्य शिक्षिकाएं एवं प्रशिक्षक उपस्थित रहीं। सभी ने शिविर के सफल आयोजन में सहयोग किया और अभिभावकों को बच्चों की देखभाल से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियाँ दीं। शिविर का उद्देश्य समाज में दिव्यांग बच्चों के प्रति जागरूकता बढ़ाना और उन्हें बेहतर जीवन की दिशा में आगे बढ़ाने का संदेश दिया|

हर ‘तीन’ माह में लगेगा ‘पत्रकार’ हेल्थ ‘कैंप’

बस्ती। प्रेस क्लब बस्ती में अध्यक्ष विनोद कुमार उपाध्याय की अध्यक्षता में मासिक बैठक सम्पन्न हुई। जिसमें पत्रकारों के स्वास्थ्य के लिए प्रत्येक तीन महीने पर स्वास्थ्य कैम्प का आयोजन कराने पर सहमति जतायी गयी। इसके साथ ही पत्रकार कल्याण कोष के संदर्भ में विस्तार से चर्चा की गई और इसको बड़े पैमाने पर आगे बढ़ाने की बात कही गयी।


बैठक में महामंत्री महेन्द्र तिवारी, विपिन बिहारी तिवारी, बशिष्ठ पाण्डेय, सर्वेश श्रीवास्तव, राघवेन्द्र मिश्रा, राजेन्द्र उपाध्याय, जीशान हैदर रिजवी आदि पदाधिकारीगण उपस्थित रहे।

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