‘एसआईआर’ ने ‘दो लाख’ फर्जी ‘वोटर्स’ को किया ‘बाहर’!
-बीएलओ, सुपरवाइजर और अधिकारियों की रात दिन की मेहनत रंग लाई, पहली बार मतदाता पुनरीक्षण अभियान में इतनी बड़ी संख्या में फर्जी मतदाता बाहर हुए, पूरे प्रदेष में लगभग डेढ़ करोड़ से अधिक फर्जी मतदाता, 99 फीसद मतदाताओं की फीडिगं भी हो चुका
-जो लोग एसआईआर पर सवाल उठा रहे थे, उन्हें एसआईआर में लगे लोगों ने जबाव दे दिया, यह एसआईआर पहली बार नहीं हो रहा, इसके पहले भी 1950 और 2003 के बीच नौ बार एसआईआर हो चुका,
-50 साल में जब नौ बार एसआईआर हुआ तो किसी ने सवाल नहीं उठाया, लेकिन तब 22 साल में पहली बार हुआ तो सबसे अधिक बवाल कांग्रेस ने मचाया, जबकि इससे पहले सबसे अधिक एसआईआर कांग्रेस के कार्यकाल में ही हुए, जब तक एसआईआर गलत नहीं था, तो अब क्यों?
-जो पार्टियां यह भ्रम फैला रही थी, कि एसआईआर के जरिए भाजपा अन्य पार्टियों के वोटर्स का नाम कटवाना चाहती है, पहले उन्हें यह फैसला करना होगा कि जिन बीएलओ ने दो लाख फर्जी वोट काटा क्या वे सभी भाजपा थे, या फिर जिन लेखपाल सुपरपाइजर से ओके किया, क्या वे सभी भाजपाई थे?
-एसआईआर के चलते ही अब 19 लाख में से मात्र 17 लाख ही मतदाता मतदान कर पाएगें, अभी और भी फर्जी मतदाता बाहर हो सकते, इसका सही आकड़ा 16 दिसंबर को होगा, जब सूची कपा प्रकाषन होगा
बस्ती। भले ही चाहें 2156 बीएलओ और 219 सुपरवाइजर्स को अनेक परेषानियों का सामना करना पड़ा हो, अधिकारियों और पत्नियों की डांट डपट ही क्यों न खानी पड़ी हो, 18-18 घंटे तक काम ही क्यों न करना पड़ा हो? लेकिन उनकी मेहनत सफल हुई। तीन-तीन बार वोटर्स तलाषने के लिए घर-घर जाना ही बीएलओ की सफलता का राज रहा। 100 से अधिक बीएलओ के द्वारा समय से पहले काम पूरा करना यह बताता है, कि एसआईआर को लेकर कितना गंभीर रहें। अनेक बीएलओ ने बताया कि उन्हें सपने में भी एसआईआर नजर आता था। प्रषासन की जितनी भी प्रषंसा की जाए कम होगा। एसआईआर को लेकर इससे पहले बीएलओ और सुपरवाइज में कभी इतनी गंभीरता नहीं देखी गई। समय-समय पर इसकी मानिटरिगं ने एसआईआर को और भी आसान कर दिया। कहा भी जाता है, कि अगर बीएलओ ने एसआईआर को गंभारता से नहीं लिया होता तो दो लाख फर्जी मतदाता सामने नहीं आते और न ही उन्हें मतदाता सूची से बाहर ही किया जा सकता था। कहा भी जाता है, कि अगर एसआईआर जैसी पारदर्षिता बीएलओ ने पंचायत चुनाव में दिखाई होती तो न जाने कितने प्रत्याषियों का प्रधान बनने का सपना अधूरा रह जाता। जो बीएलओ एसआईआर में लगे हैं, वही पंचायत चुनाव में भी लगे रहे। यही बीएलओ हैं, जिन्होंने एसआईआर में दो लाख फर्जी वोटर्स को काटा, और यही बीएलओ हैं, जिन्होंने पंचायत चुनाव में दो लाख से अधिक नय मतदाता बनाया।
बीएलओ, सुपरवाइजर और अधिकारियों की रात दिन की मेहनत रंग लाई, पहली बार मतदाता पुनरीक्षण अभियान में इतनी बड़ी संख्या में फर्जी मतदाता बाहर हुए, पूरे प्रदेष में लगभग डेढ़ करोड़ से अधिक फर्जी मतदाता, 99 फीसद मतदाताओं की फीडिगं भी हो चुका। जो लोग एसआईआर पर सवाल उठा रहे थे, उन्हें एसआईआर में लगे लोगों ने जबाव दे दिया, यह एसआईआर पहली बार नहीं हो रहा, इसके पहले भी 1950 और 2003 के बीच नौ बार एसआईआर हो चुका है। 50 साल में जब नौ बार एसआईआर हुआ तो किसी ने सवाल नहीं उठाया, लेकिन तब 22 साल में एक बार हुआ तो सबसे अधिक बवाल कांग्रेस ने मचाया, जबकि इससे पहले सबसे अधिक एसआईआर कांग्रेस के कार्यकाल में ही हुए, जब तब का एसआईआर गलत नहीं था, तो अब क्यों और कैसे गलत हो गया? जो पार्टियां यह भ्रम फैला रही थी, कि एसआईआर के जरिए भाजपा अन्य पार्टियों के वोटर्स का नाम कटवाना चाहती है, पहले उन्हें यह फैसला करना होगा कि जिन बीएलओ ने दो लाख फर्जी वोट काटा क्या वे सभी भाजपाई थे, या फिर वे लेखपाल जिन्होंने सुपरपाइजर की भूमिका निभाया, क्या वे सभी भाजपाई थे? एसआईआर के चलते ही अब 19 लाख में से मात्र 17 लाख ही मतदाता मतदान कर पाएगें, अभी और भी फर्जी मतदाता बाहर हो सकते, इसका सही आकड़ा 16 दिसंबर को होगा, जब सूची का प्रकाषन होगा। बीएलओ को सबसेअधिक कठिनाईयों का सामना उन मतदाताओं को तलाषने में हुई, जो तीन-तीन स्थानों पर वोटर्स बने हुए, यही लोग हैं, जिन्होंने बीएलओ को जरा सी भी सहयोग नहीं किया, कल आओ परसो आओ कह कर टालते रहे। यह निर्णय ही नहीं ले पा रहे थे, कि वह कहां से फार्म भरे। एसआईआर को लेकर कभी न भ्रातियां होती, अगर राजनैतिक दलों के लोगों ने यह अफवाह न उड़ाया होता कि एसआईआर के जरिए भाजपा वाले विरोधियों का वोटर्स काटना चाहती है। एसआईआर से सबसे अधिक मुस्लिम वर्ग के लोग डरे हुए नजर आए, और इन्हीं लोगों में एसआईआर फार्म को भरने को लेकर जागरुकता देखी गई। जो वर्ग एसआईआर को लेकर सबसे अधिक डरा हुआ था, उसी वर्ग के लोगों ने सबसे पहले फार्म को भरा। देखा जाए तो एसआईआर को लेकर सबसे अधिक कांग्रेस के लोगों ने सड़क से लेकर सदन तक होहल्ला मचाया। लेकिन जब बीएलओ के सहयोग के लिए बीएलए को नामित करने की बारी आई तो कांग्रेस सबसे पीछे रही, जानकार हैरानी होगी कि जिले में कांग्रेस ही एक मात्र पार्टी रही जिसने 2156 बीएलए के सापेक्ष मात्र सौ का ही नाम दिया, यानि जिले में इस पार्टी के पास 2156 कार्यकर्त्ता नहीं हैं, ऐसे में कैसे कोई पार्टी जीत सकती है। सपा और बसपा ने 100 फीसद बीएलए की सूची उपलब्ध करा दी। आप और सीपीएम एम तो एक भी बीएलए की सूची नहीं दे पाई। कहा भी गया है, कि अगर मतदाता सूची में बने रहना है, तो बीएलओ को सहयोग करना होगा।
‘डा. एके चौधरी’ ने ‘24’ साल में ‘कमाया’ 100 ‘करोड़’!
-पैथालाजी और अल्टा साउंड के नोडल डिप्टी सीएमओ डा. एके चौधरी पिछले लगभग 24 साल से बस्ती में ही नौकरी कर रहें, एक बार इनका तबादला खलीलाबाद हुआ, लेकिन इन्होंने पैसे के बल पर अपना अटैचमेंट रुधौली करवा लिया
-बस्ती में नौकरी करते इन्होंने अकूत संपत्ति अर्जित किया, खुद के नाम तो संपत्ति बनाया ही भाई, पुत्री और पुत्र के नाम पर करोड़ों की संपत्ति बनाया, लखनउ में इनका करोड़ों रुपये का गोमतीनगर में मकान
-इनके संपत्तियों की जांच भाकियू भानु गुट के जिला उपाध्यक्ष उमेष गोस्वामी की षिकायत पर एडी हेल्थ की अध्यक्षता में हो रही, बयान भी दर्ज हो चुका, संपत्तियों का साक्ष्य के साथ व्यौरा भी दिया जा चुका
-इन्हें सीएमओ टीम का सबसे कमाउपूत नोडल माना जा रहा है, यह कहते हैं, कि जब तक सपा के सांसद और विधायकगण उनके साथ, तब तक उनका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता, इन्हें जिले के सबसे भ्रष्टम सरकारी डाक्टर माना जाता
बस्ती। बार-बार सवाल उठ रहा है, कि क्या तबादला नीति पैथालाजी और अल्टासाउंड के नोडल और जिले के भ्रष्टम डिप्टी सीएमओ डा. एके चौधरी पर लागू नहीं होता? 24 साल पहले इन्होंने बस्ती से नौकरी षुरु किया, और अभी तक बस्ती में डटे हुए है। इस बीच इनका एक बनाया खलीलाबाद तबादला हुआ, एक दिन भी खलीलाबाद में नौकरी नहीं किया, और पैसे के बल पर एडी हेल्थ से इन्होंने अपना अटैचमेंट रुधौली सीएचसी पर करवा लिया। तब से यह बस्ती में रह कर बस्ती वालों को लूट रहें है। सवाल यह भी उठ रहा है, क्या योगीजी ने इन्हें जीरो टालरेंस नीति से मुक्त कर रखा है? डा. एके चौधरी जैसे भ्रष्ट डाक्टर को देखकर ही विधायक दूधराम ने कहा था, कि कौन कहता है, कि प्रदेष में रामराज है, अगर रामराज होता तो कुदरहा सीएचसी के एमओआईसी डा. फैज और डिप्टी सीएमओ एके चौधरी जैसे लोग भ्रष्टाचार न करते। षिकायतकर्त्ता उमेष गोस्वामी ने जांच टीम को जो इनकी अवैध संपत्तियों का हिसाब-किताब दिया उसे देख कहा जा सकता है, इन्होंने पिछले 24 सालों में लगभग 100 करोड़ की चल और अचल संपत्ति अर्जित किया, इन्होंने भाई, पुत्र और पुत्री के नाम करोड़ों की जमीने खरीदी, रुधौली बखिरा मार्ग पर आलीषान मकान बनवाया, जिसमें अवैध रुप से नर्सिगं और पैथालाजी इनके भाई संचालित कर रहे है। इन्होंने सबसे अधिक संपत्ति रुधौली के आसपास अर्जित किया। षिकायतकर्त्ता का दावा है, कि अगर उनके द्वारा उपलब्ध कराए साक्ष्य की ही जांच हो जाए तो इन्हें जेल जाने से कोई रोक नहीं पाएगा, तब इनके आका सांसद और विधायकगण भी नहीं बचा पाएगें। सवाल उठ रहा है, कि निष्पक्ष जांच होगी कैसे? जब जांच करने वाले अधिकारी इन्हें बचाने में लगे हुएं है। षिकायतकर्त्ता को समझ में नहीं आ रहा है, कि अब षिकायत करे तो किससे करे, सीएम से लेकर डीएम और कमिष्नर से लेकर एडी हेल्थ एवं सीएमओ षपथ पत्र के साथ षिकायत कर चुके है। षिकायतकर्त्ता कमिष्नर और डीएम को चुनौती दे चुका है, कि अगर उसके षपथ-पत्र में की गई षिकायत गलत हो तो वह जेल जाने को तैयार है। अधिकारी न तो षिकायतकर्त्ता को गलत षिकायत करने के आरोप में जेल भेज रहे हैं, और न डिप्टी सीएमओ के खिलाफ ही कोई कार्रवाई कर रहे है। षिकायकर्त्ता को लगता है, कि जो लोग उसे बचाने में लगे हैं, उन लोगों को डिप्टी सीएमओ बखरा देते होंगें। यह भ्रष्टाचार तो कर ही रहें हैं, साथ में अपनें कार्यालय में जातिवाद भी फैला रहे हैं, इनके कार्यालय में अधिकांष लोग इनके ही बिरादरी के हैं, जैसे अंगद वर्मा और गरिमा चौधरी, गरिमा चौधरी तो बकायदा डा. एके चौधरी की काली कमाई का हिसाब किताब रखती है। अगंद वर्मा को वसूली प्रभारी बनाया गया। आठ बिस्वा जमीन रुधौली कला में और एक बिघा जमीन निपैनिया खुर्द रुधौली में सामने आया, जो पुत्र आरयन चौधरी और पुत्री अदिती चौधरी के नाम है। इसके आलावा सिद्वार्थनगर के तिलौली चौराहा पर जषोदा पाली क्लिनिक है, जिसे डा. एके चौधरी के भाई डा. पवन चौधरी और उनकी पत्नी डा. रोली चौधरी मिलकर संचालित कर रहे हैं।
आखिर ‘सीएमओ’ करना क्या ‘चाहते’? क्यों ‘गलत’ काम कर ‘रहें’?
बस्ती। सीएमओ डा. राजीव निगम के आने के बाद लोगों को लगने लगा था, जो गंदगी पूर्व सीएमओ दूबेजीे करके गए, यह उस गंदगी को साफ करेगें, मगर गंदगी को साफ करने के कौन कहे, यह तो और फैला रहे है। षुरुआत के कुछ दिन तो इन्होंने खूब ईमानदारी दिखाई, लेकिन जैसे-जैसे यह नोडल डा. एके चौधरी, डा. एसबी सिंह और बाद में डा. बृजेष षुक्ल के चंगुल में फंसते गए, वैसे-वैसे इनकी ईमानदारी, बेईमानी में बदलती गई। नतीजा इनकी बेईमानी के चलते इनकी लूट गैंग ने खूब फायदा उठाया। कभी जांच के नाम पर तो कभी फर्जीवाड़े के नाम पर खूब नाम कमाया। सीएमओ साहब की सारी ईमानदारी तीन बेईमानों के आगे धरी की धरी रह गई। जिसका परिणाम सीएमओ को बदनामी के रुप में भुगतना पड़ा। लेबिल थ्री को लेबल फोर और लेबिल टू को लेबिल थी्र का प्रभार देने के मामले में सीएमओ की सबसे अधिक बदनामी हुई। पैसा लेकर प्रभार देने तक आरोप लगा।
इसी को लेकर तहसील दिवस में भाकियू भानु गुट के जिला उपाध्यक्ष उमेष गोस्वामी ने सीएमओ और आरसीएच एवं सीएमएसडी के प्रभारी डा. बृजेष षुक्ल को निलंबित करने और मस्टिेरिएल जांच कराने की मांग की। कहा कि सीएमओ अपने नीजि लाभ के लिए षासनादेषों की धज्जियां उड़ा रहें है। कहा कि सीएचसी हर्रैया के प्रभारी डा. बृजेष षुक्ल को 29 लुलाई 25 को आरसीएच एंव सीएमएसडी का अतिरिक्त प्रभार दे दिया, जब मेरे द्वारा इसकी षिकायत की गई तो सीएमओ ने आनन-फानन में सीएचसी हर्रैया के लेबिल टू के डाक्टर अभय सिंह को हर्रैया का प्रभारी एमओआईसी बना दिया, जबकि सीएचसी हर्रैया में लेबिल थ्री के डा. आरके सिंह मौजूद है, लेकिन सीनियर होते हुए भी जूनियर को नीजि लाभ के लिए प्रभार दे दिया। इसी तरह लेबिल फोर के डाक्टर के उपलब्धप होने के बावजूद सीएमओ ने नीजि लाभ के लिए लेबिल थी्र के एवं सीएचसी हर्रैया के प्रभारी डा. बृजेष षुक्ल को आरसीएच एवं सीएमएसडी का प्रभार दे दिया। भले ही चाहें डा. षुक्ल को लेबिल फोर का वेतनमान मिल रहा है, लेकिन अभी तक उनका प्रमोषन लेबिल फोर पर नहीं हुआ। वर्तमान में लेबिल फोर के डा. एके मिश्र, डा. राजन बाबू श्रीवास्तव एवं डा. एके गुप्त है, जो पूरी तरह मेडिकली फिट है। लिखा है, कि जब से सीएमओ बस्ती आए और जब से डा. बृजेष षुक्ल को आरसीएच एवं सीएमएसडी का प्रभार मिला है, तब से इनके द्वारा किए गए वित्तीय अनियमितता की जांच किसी मजिस्टेट से कराई जाए, और दोनों के निंलबन के लिए षासन से पत्राचार किया जाए। उमेष गोस्वामी के द्वारा स्वास्थ्य विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाते आ रहे हैं, जिस तरह यह साक्ष्य और षपथ-पत्र के साथ मामले को उजागर कर रहे हैं, अगर उसकी जांच हो जाए तो न जाने कितने अधिकारी निलंबित और न जाने कितने जेल में नजर आएगें। कमिष्नर और डीएम के पास जाते ही अधिकारी घबड़ा जाते हैं, कि अब किसकी जांच कराने आया। बार-बार कहा जा रहा है, कि अगर उमेष गोस्वामी जैसा दो चार और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाला सामने आ जाए तो काफी हद तक भ्रष्टाचार पर लगाम लग सकता है। तरह अगर अधिकारी भी ईमानदारी से जांच और कार्रवाई कर दे तो भी भ्रष्टाचार पर लगाम लगाया जा सकता है। षिकायतकर्त्ता तो ईमानदारी बरतने को तैयार है, क्या अधिकारी भी ईमानदार होना चाहेगें?
‘दो’ दिन चले ‘अढ़ाई’ कोस, यह है, ‘टांडा’ पुल के ‘मरम्मत’ का ‘सच’
-छह माह में भी दो किमी. मरम्मत का कार्य पूरा नहीं कर पाए, ‘टांडा’ पुल को लेकर पूर्व ‘सांसद’ को ‘आगे’ आना ‘पड़ा’ डीएम को लिखा पत्र
बस्ती। आखिर पूर्व सांसद हरीष द्विवेदी को टांडा पुल को लेकर आगे आना ही पड़ा। इस पुल लंबे समय से मरम्मत कार्य हो रहा है, जिसके चलते लाखों लोगों को अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। दो किमी. के सड़क मरम्मत में छह माह लग गए, फिर भी पूरा नहीं हुआ। एक दिन में अगर दस मीटर भी मरम्मत हुआ होता तो कार्य पूरा हो गया होता। कारण क्षेत्र की जनता गंभीर समस्याओं से जूझ रही है। इसी समस्या को दृष्टिगत रखते हुए पूर्व सांसद हरीश द्विवेदी ने जिलाधिकारी बस्ती को पत्र लिखकर पुल के निर्माण कार्य को तत्काल प्राथमिकता के आधार पर पूरा कराने की मांग की है। यह जानकारी भाजपा कार्यालय प्रमुख अमृत कुमार वर्मा ने दी। श्री द्विवेदी ने अपने पत्र में उल्लेख किया है कि बस्ती-टांडा पुल जनपद का अत्यंत महत्वपूर्ण मार्ग है, जिसका उपयोग प्रतिदिन लाखों नागरिक करते हैं। यह मार्ग न केवल आम जनजीवन की दैनिक आवश्यकताओं से जुड़ा है, बल्कि व्यापार, शिक्षा, स्वास्थ्य और प्रशासनिक गतिविधियों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। पुल का लंबे समय से बंद होना क्षेत्र के निवासियों के लिए बड़ी परेशानी का कारण बन गया है। उन्होंने बताया कि स्कूल कॉलेज जाने वाले छात्र, अस्पतालों में उपचार के लिए पहुँचने वाले मरीज, नौकरी एवं कार्यालयों के लिए निकलने वाले कर्मचारी तथा व्यापारियों को प्रतिदिन वैकल्पिक लंबा मार्ग अपनाना पड़ रहा है। इससे न केवल समय और ऊर्जा की बर्बादी हो रही है, बल्कि जाम की समस्या भी लगातार बढ़ रही है। नागरिकों में इस अव्यवस्था के प्रति भारी आक्रोश व्याप्त है, क्योंकि मरम्मत कार्य की धीमी गति जनहित की अवहेलना प्रतीत होती है। पूर्व सांसद ने जिलाधिकारी से अपेक्षा किया है कि मरम्मत कार्य को तुरंत तेज किया जाए, जिम्मेदार अधिकारियों को निर्देशित करते हुए कार्य को समयबद्ध रूप से पूरा कराया जाए। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि जब तक मरम्मत कार्य पूर्ण नहीं हो जाता, तब तक आवागमन के लिए सुरक्षित एवं व्यवस्थित वैकल्पिक व्यवस्था सुनिश्चित की जाए, ताकि लोगों को अनावश्यक कष्ट न उठाना पड़े। श्री द्विवेदी ने विश्वास व्यक्त किया कि जिला प्रशासन द्वारा शीघ्र कार्रवाई किए जाने पर यह समस्या जल्द ही समाप्त होगी और जनता को राहत मिलेगी। उन्होंने कहा कि टांडा पुल का समयबद्ध पुनर्निर्माण जनहित के लिए अत्यंत आवश्यक है तथा प्रशासन की सक्रिय पहल से लाखों नागरिक लाभान्वित होंगे।
अधिकारी मौके पर जाकर षिकायतों का निस्तारण करेःडीएम
बस्ती। डीएम कृत्तिका ज्योत्स्ना ने प्राप्त शिकायतों को निर्धारित समय सीमा में गुणवत्तापूर्ण निस्तारण के लिए सभी विभागीय अधिकारियों को निर्देशित करते हुए कहा कि सम्पूर्ण समाधान दिवस में प्राप्त शिकायत से सम्बंधित अधिकारी मौके पर जा कर निस्तारण करवाना सुनिश्चित करें। उन्होने तहसील भानपुर में सम्पूर्ण समाधान दिवस की अध्यक्षता करते हुए उक्त निर्देश दिया। उन्होने सभी अधिकारियों को निर्देशित किया कि जन शिकायतों का निस्तारण प्रत्येक दशा में निष्पक्षता, समयबद्धता, पारदर्शिता एवं गुणवत्ता के साथ सुनिश्चित करें, प्रत्येक प्रकरण की जांच के समय शिकायतकर्ता का पक्ष अवश्य सुना जाए तथा सभी तथ्यों की भॅलीभॉति जांच करने के उपरान्त ही प्रकरण का निस्तारण नियमानुसार सुनिश्चित किया जाए।
पुलिस अधीक्षक अभिनन्दन ने प्रार्थना पत्रों की सुनवाई करते हुए पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया है कि विभाग से संबंधित शिकायतों को गम्भीरता से सुने और त्वरित निस्तारण करना सुनिश्चित करें। निस्तारण में किसी प्रकार की समस्या आने पर तत्काल संज्ञान में लाये, जिससे प्रकरण का समयान्तर्गत निस्तारण हो सके। उप जिलाधिकारी हिमांषु कुमार ने बताया कि कुल 55 प्रार्थना पत्र प्राप्त हुआ, जिसमें से 3 का मौके पर निस्तारण किया गया। इसमें राजस्व के 38, पुलिस के 5, विकास के 8, कृषि के 1 तथा नगर पंचायत के 3 प्रार्थना पत्र प्राप्त हुये। सम्पूर्ण समाधान दिवस में परियोजना निदेशक राजेश कुमार, उप निदेशक कृषि अशोक कुमार गौतम, कृषि अधिकारी डा. बी.एल. मौर्या, तहसीलदार सहित संबंधित जनपदीय अधिकारीगण उपस्थित रहें।
